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बीमार होता जा रहा है भारत

१२ जनवरी २०११

तेज रफ्तार से विकास के बावजूद भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. देश में अभी भी नवजात बच्चों की मौत, मलेरिया, टीबी और पुरानी बीमारी का शिकार होने वालों की तादाद काफी ज्यादा है.

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तस्वीर: DW

स्वास्थ्य से जुड़ी प्रमुख पत्रिका द लैंसेट में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की स्वास्थ्य सेवाएं इतनी बड़ी आबादी का ख्याल रख पाने में नाकाम साबित हो रही हैं. स्वास्थ्य सेवाओं की ऊंची कीमतें हर साल करीब चार करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल रही हैं. इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 तक दिल, सांस की लंबी बीमारियों, शुगर और कैंसर से ही 75 फीसदी मौतें होंगी. इस रिपोर्ट में सरकार से लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने की अपील की गई है.

Small room of hospital filled by people in West Midnapur
तस्वीर: DW

लंदन स्कूल ऑफ हाइजिन ने ये रिसर्च किया है जिसका नेतृत्व विक्रम पटेल ने किया. रिपोर्ट में कहा गया है, "2030 तक 60 साल से कम उम्र में दिल की बीमारी से मरने वालों की तादाद करीब 1.79 करोड़ तक पहुंच जाएगी. 2004 में इस तरह से मरने वाले लोगों की संख्या 71 लाख थी. इसका मतलब है कि 2030 तक बीमारियों का शिकार होकर लोगों की उम्र घटने की रफ्तार चीन, रूस और अमेरिका इन तीनों को मिलाकर जो संख्या बनती है उससे भी ज्यादा होगी.

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तरक्की करते भारत की यह भी एक तस्वीर हैतस्वीर: AP

लैंसेट में भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में कुल सात रिपोर्ट छापी गई है. इनमें से एक रिपोर्ट पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के श्रीनाथ रेड्डी के नेतृत्व वाली टीम ने किया. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा हालात में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा शुरू करके ही इस समस्या से लड़ा जा सकता है.

रेड्डी की टीम ने अपने रिपोर्ट में सलाह दी है, "हम 2020 तक के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के गठन और निश्चित लक्ष्यों को हासिल करने का प्रस्ताव देते हैं. बेहतर स्वास्थ्य सेवा हर इंसान की पहुंच में हो, और स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले खर्च की जिम्मेदारी उसके ऊपर न रहे, लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल करने में सक्षम बनाया जाए इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवा देने वाली एजेंसियों को जिम्मेदार बनाया जाए.ये सब प्रस्ताव रेड्डी की टीम ने अपनी रिपोर्ट में दिए हैं.

भारत का पड़ोसी देश चीन भी बहुत तेजी से विकास कर रहा है. उसने 2003 में ही स्वास्थ्य सेवा में सुधार को लागू कर दिया. इसके बाद 2009 में 124 अरब डॉलर खर्च करके इसे और बेहतर बनाया गया. अब देश के 92 फीसदी लोग मूलभूत स्वास्थ्य सेवा के दायरे में हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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