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बुझते चायना टाउन में उम्मीद की लौ

१९ अक्टूबर २०१३

कोलकाता में कभी चीनी लोगों की एक बड़ी आबादी रहा करती थी. चायनीज खानपान और संस्कृतियों के आंगन में अब लोग भी कम हैं और वो रौनक भी नहीं रही. हालांकि इसे फिर संवारने की एक उम्मीद जगी है.

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तस्वीर: DW/M. Krishnan

चायना टाउन में रह रहे दसियों हजार से ज्यादा लोगों के पास अपने स्कूल और क्लब तो थे ही चीनी त्योहारों की भी धूम रहती थी. कोलकाता के चायना टाउन में अब तो अनुमान है कि कोई 2000 लोग ही बचे हैं. यहां रहने वाली तीसरी पीढ़ी की चीनी महिला गिना हुआन हर रोज बिना नागा सुबह तड़के से ही अपने रसोइयों और सहायकों को हुक्म देने में व्यस्त हो जाती हैं. उनके रेस्तरां में बड़े सारे चीनी पकवान बिकते हैं और उसके लिए तैयारी जल्दी शुरू हो जाती है.

रेस्तरां व्यस्त इलाके तिरेती बाजार में है, जो शहर से थोड़ा हट कर है और मोटे तौर पर असली चायना टाउन के नाम से जाना जाता है. यह भारत की गिनी चुनी जगहों में है, जहां असली स्टीम्ड पोर्क बन्स, डिमसुम और हल्के मीठे तिल के दानों वाले डीप फ्राइड बाटर बॉल्स जैसे असली चायनीज पकवान बिकते हैं. हुआन ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरे कुछ भरोसेमंद ग्राहक हैं लेकिन कारोबार अब वैसा नहीं रहा जैसा 10 साल पहले हुआ करता था. बहुत से युवा लड़के लड़कियां अच्छी जगह की तलाश में इसे छोड़ कर चले गए."

Indien China town in Kalkutta
तस्वीर: DW/M. Krishnan

डोमिनिक ली की यहां राशन की दुकान है जिसमें खास सॉस और चायनीज खाने में इस्तेमाल होने वाली दूसरी चीजें बिकती हैं. डोमिनिक बताते हैं कि कभी चीनी लोगों की जगमगाती बस्ती रहा यह इलाका अब बुझ रहा है. हालत यह है कि यहां के कुछ विख्यात मंदिर और चर्च भी जो कोई आधी सदी पहले बने थे, अब देखभाल के अभाव में दुर्दशा के शिकार हैं. ली ने डीडब्ल्यू से कहा, "हम आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और सरकार से रोजगार के सिलसिले में कोई ज्यादा मदद नहीं लेते. जाहिर है कि इसकी वजह से युवा पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा काम और अच्छी पढ़ाई के लिए विदेशों में चला गया है." एक बार विदेश में पांव जम जाए तो फिर कोई वापस भी नहीं लौटना चाहता.

सरकारी सूत्रों के मुताबिक मध्य चीन में 18वीं सदी में पड़े अकाल के बाद बहुत से चीनी लोग भारत प्रवासियों के रूप में आए. इनमें से ज्यादातर हक्का समुदाय के थे. इनमें से बहुतों को पोर्ट पर काम मिल गया तो कुछ ने रेस्तरां और कुछ लोगों ने चमड़े की फैक्ट्री खोल ली. भारत चीन संघ के अध्यक्ष पॉल चुंग ने डीड्ब्ल्यू से कहा, "वो बड़े शानदार दिन थे, मेरे दादा और उनके परिवार ने बड़ी आसानी से कोलकाता को अपना लिया, लेकिन भारतीय नागरिक होने के बावजूद हमें अपना उद्यम शुरू करने के लिए सरकार से ज्यादा सहयोग नहीं मिलता."

Chinatown in Kalkutta, 1945

चीनियों की नई उम्मीद

जब भारत और चीन के बीच 1962 में दुश्मनी हो गई और एक छोटी सी जंग भी लड़ ली गई तो चीनी समुदाय को यहां लोगों की नापसंदगी झेलनी पड़ी और लोग उन्हें शक की निगाह से भी देखने लगे. बहुत से लोगों की तो नागरिकता छीन ली गई और यहां तक कि उनके संपत्ति रखने पर भी रोक लगा दी गई. चुंग कहते हैं, "हमारे पास समझौता करने के अलावा और कोई उपाय नहीं था क्योंकि हम वापस चीन जाने की स्थिति में नहीं थे."

हालांकि इस अलगाव और उदासी के बावजूद जल्दी ही इस समुदाय के लिए उम्मीद और खुशी का रास्ता बन सकता है. इसी साल के शुरूआत में कुछ प्रमुख नागरिकों और इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज की तरफ से चायना टाउन की साज सज्जा करने का प्रस्ताव भेजा गया है जिससे कि यहां पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है. स्थानीय सरकार इस योजना में साझीदार बनने पर राजी हो गई है.

इस परियोजना को "चा प्रोजेक्ट" यानी "चाय परियोजना" नाम दिया गया है और उम्मीद की जा रही है ना सिर्फ यह पुराने चायना टाउन को बचाएगी बल्कि नए चायना टाउन को विकसित करने पर भी ध्यान लगाएगा. स्थानीय संरक्षक अनिर्बन रॉय ने डीडब्ल्यू से कहा, "पश्चिमी देशों के चायना टाउन की तुलना में कोलकाता का चायना टाउन अनोखा है और इतिहास में नहाया हुआ है. हम इस महत्वपूर्ण इलाके की अनदेखी नहीं कर सकते. निश्चित रूप से यहां सुधार की जरूरत है." चीनी समुदाय के लोग भी बड़ी बेसब्री से अपने इलाके के संवरने की राह तक रहे हैं जिसे उन्होंने अपना घर बनाया है.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन/एनआर

संपादनः आभा मोंढे

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