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बेटे के लिए फिट रहती हूं: किरण राव

११ फ़रवरी २०१५

फिल्म निर्माता, निर्देशक, स्क्रिप्ट राइटर और आमिर खान की पत्नी किरण राव इन दिनों बर्लिनाले का लुत्फ उठा रही हैं. हमने बात की उनसे बॉलीवुड की छवि और उनके निजी जीवन के बारे में.

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Kiran Rao
तस्वीर: DW/I. Ahmad

नीले रंग का हाई नेक स्वेटर और काली जींस पहने अपने होटल की लॉबी में बैठी किरण राव वैसी ही लगती हैं जैसे किसी यूनिवर्सिटी की कैंटीन में कोई स्टूडेंट बैठी हो. 41 साल की किरण राव ना केवल देखने में फिट हैं, बल्कि जेहनी तौर पर भी खूब ऊर्जा और फुर्ती से भरी हैं. जर्मन सरकार की ओर से उन्हें बर्लिनाले में आमंत्रित किया गया है. 15 देशों के लोगों के साथ किरण फिल्म जगत के अलग अलग पहलुओं पर नजर डाल रही हैं. पेश है डॉयचे वेले के साथ उनकी बातचीत के कुछ अंश.

डॉयचे वेले: बॉलीवुड की धूम पूरी दुनिया में है. मेनस्ट्रीम के अलावा पैरेलल सिनेमा में भी काफी काम हो रहा है. इसके बावजूद बर्लिनाले में भारत की कोई खास छाप देखने को नहीं मिल रही है. इसकी क्या वजह हो सकती है?

किरण राव: मैं भी कई सालों से इस सवाल से जूझ रही हूं कि आखिर हमारी फिल्मों में ऐसा क्या है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को अच्छा नहीं लग रहा है. बॉलीवुड की फिल्में दुनिया भर में देखी जाती हैं, ना तो उन्हें फेस्टिवल की जरूरत है और ना ही फेस्टिवल वाले उनको चाहते हैं. जहां तक आर्ट फिल्मों की बात है, तो हर फेस्टिवल का अपना एक अलग रूप होता है. मैंने यहां कॉम्पिटिशन की दो फिल्में देखीं, मुझे दोनों ही पसंद नहीं आईं लेकिन फेस्टिवल वालों ने कुछ सोच कर ही उन्हें लिया होगा. इसलिए फिल्म का फेस्टिवल तक पहुंचना आयोजकों की सोच पर निर्भर करता है. इसके अलावा एक स्टीरियोटाइप भी बन गया है. कॉम्पिटिशन की फिल्में अक्सर वही होती हैं जिसमें किसी बड़ी हस्ती ने काम किया होता है. या तो फिल्म का कोई अदाकार स्टार होगा या फिर निर्देशक. लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि फिल्म बेहतरीन होगी.

भारत के बाहर और खास कर जर्मनी में बॉलीवुड को या तो शाहरुख खान की नाच गाने वाली फिल्मों के साथ जोड़ कर देखा जाता है या फिर स्लमडॉग मिलियनेयर जैसी गरीबी दिखाने वाली फिल्मों के साथ. बॉलीवुड के इस स्टीरियोटाइप को तोड़ने के लिए क्या कुछ किया जा रहा है?

लोग वैसी फिल्में बनाते हैं, जैसी उन्हें बनाना पसंद है. कोई यह सोच कर फिल्म बनाने नहीं निकल पड़ता कि मुझे लोगों की सोच बदलनी है. और ये भारत के दर्शकों के लिए बनाई जाती हैं. पीके इस लिहाज से जरूर अलग है. धोबी घाट एक ऐसी फिल्म थी जो फेस्टिवल के लिहाज से बनी थी. हालांकि मैंने फेस्टिवल को मन में रखकर स्क्रिप्ट नहीं लिखी थी. मैं बस उस तरह की एक फिल्म बनाना चाहती थी. और भारत में उस दौरान ऐसी फिल्में नहीं बन रही थी. इसलिए मैंने उम्मीद नहीं की थी कि भारतीय दर्शक भी उससे जुड़ेंगे. हां, आमिर के कारण फायदा मिला. जो लोग, शायद फिल्म ना देखने जाते, वे भी आमिर के कारण देखने चले गए. लेकिन मैं यह नहीं कह सकती कि उन्हें फिल्म पसंद आई ही होगी.

आमिर बर्लिनाले की जूरी का हिस्सा रह चुके हैं. क्या उन्होंने आपको बर्लिनाले के बारे में कुछ टिप्स दे कर भेजा है?

नहीं, टिप्स तो मुझे नहीं मिले. पर उस दौरान मैं भी उनके साथ आई थी. हमने साथ कई फिल्में देखी थीं. काफी मजा आया था. वे जूरी के सदस्य थे, इसलिए उन्हें तो हर फिल्म देखनी थी लेकिन मैंने बर्लिन भी घूमा था. मैंने कई म्यूजियम देखे जो आमिर नहीं देख पाए थे.

बर्लिन आपको कैसा लगता है?

मुझे बर्लिन बेहद पसंद है. पिछली बार जब मैं आई थी तो कई म्यूजियम देखे, बाजारों में घूमी, फ्ली मार्किट गयी, कई तरह का खाना खाया था. उस वक्त मेरे लिए आसानी यह थी कि मैं मासाहारी थी, अब मैं वीगन हो गयी हूं.

आपने कभी कहा था कि आमिर के साथ जीना बहुत मुश्किल है, ऐसा क्यों?

जी हां, जाहिर सी बात है कि एक ऐसा शख्स, जिसे पूरी दुनिया चाहती हो, उसके साथ जीना आसान नहीं है. वे हर वक्त मसरूफ रहते हैं, लोग उनसे मिलना चाहते हैं. ये नौ से पांच की आम जिंदगी जैसा नहीं है. इसलिए दस दिन के लिए बर्लिन आना मेरे लिए एक अच्छा ब्रेक है.

आप परिवार और काम के बीच संतुलन कैसे बनाती हैं?

काम के सिलसिले में मैं ज्यादा बाहर जाती नहीं हूं और अगर कहीं जाती भी हूं तो अपने बेटे आजाद को साथ ही ले जाती हूं. मुझे उन्हें अकेला छोड़ने की आदत नहीं है, इसलिए जब मैं दूर होती हूं तो बहुत तड़प होती है. लेकिन मैं सुबह शाम फेसटाइम करती हूं. इस वक्त आमिर हैं, इसलिए मैं आजाद को दस दिन के लिए छोड़ आई हूं लेकिन यह मेरे लिए आसान नहीं है.

आपकी फिटनेस का क्या राज है?

मैं आजाद के लिए फिट रहने की कोशिश करती हूं. बहुत सालों के इंतजार के बाद आजाद मेरे जीवन में आया और मैं समझती हूं कि बच्चे के लिए खुद को फिट रखना बहुत जरूरी होता है. मैं कुर्सी पर बैठी नहीं रह सकती, मैं उनके पीछे भागती हूं, उनके साथ खेलती हूं. इससे पहले मैंने जिंदगी में कभी फिटनेस के बारे में सोचा नहीं था. लेकिन अब मैं कोशिश कर रही हूं.

इंटरव्यू: ईशा भाटिया, बर्लिन