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बेबी लारा सिखाती है स्कूली बच्चों को

३१ मई २०१३

संवेदना और सहानुभूति, जर्मनी के कुछ स्कूलों में इनकी कमी दिखती है. खास कर ऐसे इलाकों में जो सामाजिक और आर्थिक मुश्किलों की चपेट में हैं. जर्मन प्रांत ब्रेमेन के एक स्कूल में एक बेबी स्कूली बच्चों को ट्रेनिंग दे रही है.

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तस्वीर: DW/Ramona Schlee

हरे चादर से छेड़ छाड़ नहीं करनी है, यह क्लास के सभी 25 बच्चों को पता है जो चादर के चारों ओर घेरा बनाकर बैठ गए हैं. हरा चादर सिर्फ लारा के लिए है, जो इतनी छोटी है कि अभी चल फिर भी नहीं सकती. सारी नजरें उस पर टिकी हैं, माहौल निश्चिंत और शांत है. बच्चे सावधानी से अपने जूतों से आवाज निकालते हैं, क्लप, क्लप, क्लप. एक लड़की बताती है, "लारा को जूतों से प्यार है." पहला पाठ हो गया, दूसरों की जरूरतों और इच्छाओं को समझना.

लारा इस समय स्टार है. बच्चे उसे तब से जानते हैं, जब वह 8 हफ्ते की थी. वे उसका ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं, उसे आकर्षित करना चाहते हैं. और उन्हें कामयाबी मिलती है. लारा जूतों की तरफ रेंगती है, उन्हें पकड़ने की कोशिश करती है. बच्चों को पता चलता कि लारा ने एक नई बात सीख ली है, वह रेंग सकती है, मां मेलानी का हाथ पकड़कर वह पैरों पर खड़ी भी हो सकती है.

ट्रेनर की मदद

लारा की हर गतिविधि पर 25 जोड़ी आंखें टिकी हैं. रूट्स ऑफ एम्पैथी प्रोग्राम इसका फायदा उठा रहा है. बच्चे स्वाभाविक रूप से लारा के बारे में सोच विचार करते हैं. रूट्स ऑफ एम्पैथी प्रोग्राम के ट्रेनर फिलिप ग्रेसहोएनर बच्चों से पूछते हैं कि लारा क्या चाह सकती है, वह किस हाल में है? जवाब के उन्हें लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता. एक साथ कई हाथ ऊपर उठ जाते हैं, खासकर लड़के भी इसमें हिस्सा ले रहे हैं.

फिलिप ग्रेसहोएनर लारा के साथ ट्रेनिंग की तैयारी क्लास के साथ करते हैं. बच्चे 9 मुद्दों की चर्चा करेंगे. परिवार में सुरक्षा या बच्चे का पालन पोषण उनमें शामिल है. आज मुद्दा है एक दूसरे को समझना और संवाद. इस पर आरंभिक तैयारी और बातचीत के बाद अब बारी थी लारा और उसकी मां से मिलने की. बच्चे लारा से इस तरह बात करने की कोशिश कर रहे हैं कि वह समझ सके. मसलन जूते से आवाज निकालना. वह अपना नाम भी समझने लगी है और जब उसे कुछ अच्छा नहीं लगता तो वह बस नजरें फेर लेती है. और बच्चे जब उसके लिए गाना गाते हैं, वह हंसती है.

रिश्ते लायक इंसान

बच्चे बेबी लारा के साथ संपर्क में हैं. स्कूल की डिप्टी प्रिंसिपल रोजी लांगे कहती हैं कि यही लक्ष्य है, "हम संबंध बनाने और जीवन जीने में सक्षम इंसान शिक्षित करना चाहते हैं," और उसके लिए जरूरी है कि दूसरों के साथ सहानुभूति हो, उसके साथ संवेदना हो. उनके स्कूल में दूसरों को समझना खास कर जरूरी है, क्योंकि वहां का माहौल बहुत मुश्किल है. स्कूल के करीब आधे बच्चे प्रवासी परिवारों से आते हैं. इसलिए सहिष्णुता और दूसरों का ख्याल रखना जरूरी है. लारा बच्चों को इसकी ट्रेनिंग देती है.

Ein Baby im Unterricht: das Projekt Roots of Empathy
तस्वीर: DW/Ramona Schlee

क्लास टीचर वेरेना गैर्डेस भी इसकी पुष्टि करती हैं. स्वाभाविक रूप से बच्चे अब भी एक दूसरे से झगड़ते हैं, लेकिन झगड़े में अपने अंदर भी झांकते हैं, दूसरों के बारे में सोचते हैं. लारा उनके लिए सहानुभूति लाने वाली है. लारा के साथ होने वाली ट्रेनिंग से क्लास टीचर भी प्रभावित हैं. आम तौर पर शोर मचाते और क्लास पर ध्यान न देने वाले बच्चे यहां एकदम एकाग्र हैं. जैसे ही लारा के हाथ से छूटकर खिलौना दूर जाता है, बच्चे कूद पड़ते हैं और उसे तुरंत लारा की ओर खिसका देते हैं, लेकिन पूरी सावधानी से. कहीं उसे चोट न लग जाए. उन्हें यह भी पता चल गया है कि लारा को क्या पसंद है, वह किस चीज से हंसेगी.

शिक्षा में बेबी की मदद

ब्रेमेन के स्कूल का यह क्लास जर्मनी में पहले क्लासों में है जो रूट ऑफ एम्पैथी के इस प्रोग्राम में हिस्सा ले रहा है. ब्रेमेन मॉडल शहर है. पिछले साल से यहां के तीन स्कूलों और 9 क्लासों में बेबी की मदद सहानुभूति सीखने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अगले सेशन से और तीन स्कूलों तथा 12 क्लासों में यह ट्रेनिंग होगी. प्रोजेक्ट लीडर अनेटे सू सोल्म्स खुश होकर कहती हैं, "हमें और शिशुओं की जरूरत है." उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही जर्मनी के और स्कूलों में यह ट्रेनिंग दी जाएगी.

मूल रूप से रूट्स ऑफ एम्पैथी प्रोग्राम की शुरुआत कनाडा में हुई. वहां मेरी गॉर्डन ने 1996 में इसकी शुरुआत की. तब से यह ट्रेनिंद तीन महाद्वीपों के कई देशों में दी जा रही है और यह सफल है. बेबी के साथ ट्रेनिंग के बाद बच्चे उतने आक्रामक नहीं रहते, वे सहिष्णु हो जाते हैं. कई सर्वे में इस ट्रेनिंग से उनकी सामाजिक क्षमता बढ़ने की पुष्टि हुई है.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 31/05 और कोड 8283 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिर
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 31/05 और कोड 8283 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw.de पर या फिरतस्वीर: Fotolia/Xaver Klaußner

आलोचक कह सकते हैं कि बेबी का ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं है. लारा की मां मेलानी इस पर हंस देती है. वे बच्चे की मदद से बच्चों को कुछ सिखाने को गलत नहीं मानती और कहती हैं कि उन्हें नहीं लगता कि इससे लारा को कोई नुकसान होता है. "उस पर यहां इतना ध्यान दिया जाता है कि कोर्स खत्म हो जाने के बाद शायद वह बच्चों को मिस करेगी." बच्चे भी उसे हमेशा याद रखेंगे, क्योंकि यह कोर्स उनके लिए स्कूली रोजमर्रे में क्लाइमेक्स है.

शिक्षा में बेबी की मदद

ब्रेमेन के स्कूल का यह क्लास जर्मनी के उन शुरुआती क्लासों में है जो रूट ऑफ एम्पैथी के इस प्रोग्राम में हिस्सा ले रहा है. ब्रेमेन मॉडल शहर है. पिछले साल से यहां के तीन स्कूलों और नौ क्लासों में बेबी की मदद सहानुभूति सीखने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अगले सत्र से और तीन स्कूलों तथा 12 क्लासों में यह ट्रेनिंग होगी. प्रोजेक्ट लीडर अनेटे सू सोल्म्स खुश होकर कहती हैं, "हमें और शिशुओं की जरूरत है." उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही जर्मनी के और स्कूलों में यह ट्रेनिंग दी जाएगी.

मूल रूप से रूट्स ऑफ एम्पैथी प्रोग्राम की शुरुआत कनाडा में हुई. वहां मेरी गॉर्डन ने 1996 में इसकी शुरुआत की. तब से यह ट्रेनिंद तीन महाद्वीपों के कई देशों में दी जा रही है और यह सफल है. बेबी के साथ ट्रेनिंग के बाद बच्चे उतने आक्रामक नहीं रहते, वे सहिष्णु हो जाते हैं. कई सर्वे में इस ट्रेनिंग से उनकी सामाजिक क्षमता बढ़ने की पुष्टि हुई है.

आलोचक कह सकते हैं कि बेबी का ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं है. लारा की मां मेलानी इस पर हंस देती है. वे बच्चे की मदद से बच्चों को कुछ सिखाने को गलत नहीं मानती और कहती हैं कि उन्हें नहीं लगता कि इससे लारा को कोई नुकसान होता है. "उस पर यहां इतना ध्यान दिया जाता है कि कोर्स खत्म हो जाने के बाद शायद वह बच्चों को मिस करेगी." बच्चे भी उसे हमेशा याद रखेंगे, क्योंकि यह कोर्स उनके लिए स्कूली रोजमर्रे में क्लाइमेक्स है.

रिपोर्ट: रमोना श्ले/एमजे

संपादन: ए जमाल

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