बेलगाम हो सकता है कैंसर का खतरा
७ मार्च २०१३दुनिया भर के कैंसर संगठनों ने सरकारों से अपील की है कि वे तम्बाकू व्यवसाय से होने वाले मुनाफे की परवाह न कर नागरिकों के स्वास्थ्य को तरजीह दें और ऐसे कानून लागू करें, जिनसे तम्बाकू का इस्तेमाल कम किया जा सके.
लंदन की एक पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार गरीब देशों में कैंसर के मरीजों की बढ़ती संख्या को कम करने के लिए तम्बाकू कंपनियों के पैंतरों को मात देना और टीकाकरण को बढ़ावा देना जरूरी है. इस हफ्ते दुनिया भर के कैंसर संगठनों की मीटिंग में कहा गया कि धूम्रपान और तम्बाकू का दूसरे रूपों में इस्तेमाल कैंसर की सबसे बड़ी जड़ है. कैंसर के मामलों को कम करने के लिए सबसे पहले तम्बाकू सेवन पर काबू पाना जरूरी है.
तम्बाकू उत्पादों पर टैक्स
ब्रिटेन के कैंसर रिसर्च सेंटर के हरपाल कुमार ने इस रिपोर्ट में कहा, "कैंसर के मरीजों की संख्या दुनिया भर में लगातार बढ़ रही है. लेकिन इससे निबटने का आसान सा रास्ता है जिसे सभी देश अपना सकते हैं. इससे कैंसर के मरीजों की संख्या में कमी तो आएगी ही, साथ ही कैंसर से हो रही मौतें भी कम होंगी." कुमार इससे पहले अमेरिका के नैश्नल कैंसर इंस्टीट्यूट के लिए भी काम कर चुके हैं. उनके अनुसार तम्बाकू उत्पादों पर भारी टैक्स लगाकर लोगों को इससे दूर किया जा सकता है. इसके साथ ही अगर स्वास्थ के क्षेत्र में काम करने वाले लोग खुद तम्बाकू का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दें और गरीब देशों में कम्पनियों के मार्केटिंग के पैंतरों पर अंकुश लगाया जाए तो यह संभव है.
खतरे की घंटी
हर साल दुनिया भर में लगभग सवा करो़ड़ लोग कैंसर के शिकार होते हैं. साथ ही पंद्रह फीसदी से ज्यादा सालाना मौतें कैंसर के कारण हो रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की कैंसर रिसर्च एजेंसी आइएसीआर ने पिछले साल कहा था कि अगर सही समय पर सही कदम नहीं उठाए गए तो 2030 तक कैंसर के मरीजों की संख्या 75 फीसदी बढ़ने का अंदेशा है. खास कर गरीब देशों में जहां पश्चिमी जीवनशैली असहज रूप से अपनाई जा रही है.
सिगरेट पीने से फेफड़ों का कैंसर होता है जिसे कैंसर का सबसे भयानक रूप माना जाता है. इसके अलावा सिर, गर्दन, गुर्दों और स्तन कैंसर के लिए भी स्मोकिंग को काफी हद तक जिम्मेदार माना जा रहा है. इस हफ्ते आई रिपोर्ट में सर्विकल कैंसर से बचने के लिए इस्तेमाल होने वाले एचपीवी टीके के इस्तेमाल पर भी जोर दिया गया है. रिपोर्ट के अनुसार इस टीके को लगवाने वालों की संख्या गरीब देशों में ही नहीं अमेरिका जैसे अमीर देशों में भी अभी भी कम है. अमेरिका में एक तिहाई किशोरियों को ही यह टीका लगा है.
एसएफ/एमजे (रॉयटर्स)