बेहतर ऊन यानि बेहतर सेहत
७ जून २०१४भेड़ की पूरी आनुवंशिक बनावट को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने आठ साल से ज्यादा मेहनत की. इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने भेड़ के पाचन तंत्र के राज को भी जान लिया है. अनोखी चर्बी चयापचय प्रक्रिया भेड़ों की ऊन की मोटी परत को बनाने और उसे बरकरार रखने में मदद करती है.
करीब चार सौ साल पहले भेड़ बकरियों और जुगाली करने वाले अन्य जानवरों की नस्ल से अलग हो गई थी. शोध के मुताबिक भेड़ों के पेट में चार खंड होते हैं जो बहुमूल्य वनस्पति सामग्री को पशु प्रोटीन में तब्दील करते हैं. पाचन सुविधा भेड़ों को कम गुणवत्ता वाली घास और अन्य पौधों जैसे चारों से पेट भरने की इजाजत देती है.
इस शोध में आठ देशों की 26 संस्थाओं के प्रोजेक्ट को शामिल किया गया है. यह प्रोजेक्ट अंतर्राष्ट्रीय भेड़ जीनोमिक्स कंसोर्टियम का हिस्सा है. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनकी खोज से भेड़ों के डीएनए परीक्षण के विकास में मदद मिलेगी जिससे त्वरित प्रजनन चयन कार्यक्रम के तहत जानवरों को बेहतर बनाया जा सकेगा. और उसके साथ ही भेड़ों में होने वाले रोगों को कम करने के लिए शोध में भी मदद मिल पाएगी.
ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी, राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान संगठन के प्रोजेक्ट लीडर ब्रायन डेलरिम्पल के मुताबिक, "ऊन उत्पादन के महत्व को देखते हुए हमने अपना ध्यान क्रेंदित उन जीन पर लगाया जिनके ऊन उत्पादन में शामिल होने की संभावना है." हमने भेड़ों की चमड़ी में वसा की चयापचय के नए रास्ते की पहचान की. जो ऊन के विकास और भेड़ों के ऊन से निकलने वाली चर्बी के विकास के लिए भूमिका निभा सकते है."
दुनिया भर में करीब एक अरब भेड़ें हैं. सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में ही 7 करोड़ भेड़े हैं. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनका यह शोध ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भारी प्रभाव डालेगा क्योंकि भेड़ दूध, मांस और ऊन के अहम स्रोत हैं. इस शोध में ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, डेनमार्क और न्यूजीलैंड के शोधकर्ताओं ने भाग लिया.
एए/आईबी (एएएफपी)