बॉर्डर पर पड़ोसी को घूरती जनता
२२ जनवरी २०१३वाघा बॉर्डर पर सूरज ढलने से पहले दोनों देशों के राष्ट्रीय ध्वज 'बीटिंग रिट्रीट' के साथ बाकायदा मार्च पास्ट के साथ उतारे जाते हैं. भारतीय सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तानी रेंजर्स के जवान बड़ी ही मुस्तैदी के साथ हर रोज यह करते हैं. सिलसिला 1959 से जारी है. इसे देखने दोनों तरफ लोग बड़ी संख्या में जमा होते हैं.
कश्मीर की कड़वाहट
हाल ही में कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भारत और पाकिस्तान के बीच हुई फायरिंग और दोनों देशों के जवानों की मौत हुई. इससे उपजी नाराजगी वाघा पर भी दिख रही है. हालांकि दोनों देशों के सैनिक बीटिंग रिट्रीट के दौरान अपने व्यवहार में इस कड़वाहट को नहीं दिखाते, लेकिन वहां आने वाले भारत और पाकिस्तानी नागरिकों के चेहरों पर यह साफ नजर आ रही है. परेड के दौरान दोनों तरफ के आम लोग भड़काऊ नारे भी लगा रहे हैं.
तल्ख स्वर
केरल के मुन्नार से आए एम लक्ष्मण साफ तौर पर दो दो हाथ करने का ऐलान करते हुए कहते हैं कि भारत को अब अहिंसा का दामन छोड़ना होगा.
पंजाब के जोगिंदर सिंह चैक पोस्ट की अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांव मत्तड़ के सरदार सुरिंदर सिंह अपना दर्द बयान कर रहे हैं. जोगिंदर के मुताबिक फायरिंग के डर से वे अपने परिवार को लेकर अमृतसर चले गए. उन्हें लगा कि गोलीबारी तेज हुई तो वो बेवजह इसका शिकार बन जाएंगे.
इस बीच शाम के साढ़े चार बज चुके हैं. भारतीय खेमे में शामिल महिला सैनिक लंबे डग भरती आगे बढ़ती है. दो साल पहले दोनों तरफ के सैनिकों की कदम ताल में कुछ नरमी आई थी, लेकिन इस वक्त फौजी बूट खूब आवाज कर रहे हैं. आक्रमक चाल के साथ घुटनों को माथे तक लाकर तेजी से पटखते सैनिकों को देखकर लगता है कि जैसे जंग अभी शुरू होने वाली है.
डॉक्टर यह बात पहले ही कह चुके हैं कि ऐसा करने से दोनों देशों के सैनिकों के घुटने खराब हो रहे हैं, लेकिन दिखावे के बीच इंसानियत की परवाह किसे है. झंडो को नीचे लाते हुए दोनों देश के जवान एक दूसरे को ऐसे घूर रहे हैं, जैसे कच्चा चबा देंगे.
एक जैसा खान पान, तहजीब, पारिवार व सामाजिक माहौल और एक सी भाषा होने के बावजूद
1947 में आजाद हुए भारत पाकिस्तान अब तक आपस में चार युद्ध लड़ चुके हैं. दोनों देशों के पास हथियारों का बड़ा जखीरा है. बड़ी सेना है. लेकिन दोनों मुल्कों में बड़ी संख्या में गरीब भी हैं. स्कूलों और अस्पतालों की भारी कमी है. इन तमाम मुश्किलों के बावजूद वाघा बॉर्डर पर दोनों मुल्क सैनिकों के जरिए गर्व से सीना फुलाते हैं. नारों में की गूंज में गरीबी, पिछड़ापन, भ्रष्टाचार और परेशानियां गायब सी हो जाती हैं.
रिपोर्ट: जसविंदर सहगल, वाघा बार्डर
संपादन: ओ सिंह