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बॉलीवुड के पहले एंटी हीरो सुनील दत्त

६ जून २०१४

हिन्दी सिनेमा जगत में सुनील दत्त पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने सही मायने में 'एंटी हीरो' की भूमिका निभाई और उसे स्थापित करने का काम किया. आज वे 85 साल के हुए होते.

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Bollywood-Schauspieler Sunil Dutt
तस्वीर: SEBASTIAN D'SOUZA/AFP/Getty Images

सुनील दत्त की किस्मत का सितारा 1957 में फिल्म "मदर इंडिया" से चमका. इस फिल्म में उनका किरदार एंटी हीरो का था, यानी एक ऐसा व्यक्ति जो अपने जीवन में हालात की वजह से बदल जाता है. करियर के शुरूआती दौर में इस तरह का किरदार निभाना किसी भी नए अभिनेता के लिए जोखिम भरा था. लेकिन सुनील दत्त ने इसे चुनौती के रूप में लिया और आने वाली पीढ़ी को भी इस मार्ग पर चलने की प्ररेणा दी. एंटी हीरो वाली उनकी प्रमुख फिल्मों में "मुझे जीने दो," "रेश्मा और शेरा," "हीरा," "प्राण जाए पर वचन न जाए," और "36 घंटे" प्रमुख हैं.

मदर इंडिया फिल्म के जरिए सुनील दत्त के सिने करियर के साथ उनके व्यक्तिगत जीवन में भी एक अहम मोड़ आया. इस फिल्म में उन्होनें नर्गिस के पुत्र का किरदार निभाया था. फिल्म की शूटिंग के दौरान नर्गिस आग से घिर गयीं और उनका जीवन संकट मे पड़ गया. उस समय सुनील दत्त अपनी जान की परवाह किए बिना आग में कूद गए और नर्गिस को लपटों से बचा ले आए. इस हादसे में सुनील दत्त काफी जल गए थे और नर्गिस पर भी आग की लपटों का असर पड़ा. उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया. स्वस्थ होकर बाहर निकलने के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

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तस्वीर: picture-alliance/Mary Evans Picture Library

संघर्ष के दिन

6 जून 1929 को अविभाजित भारत के झेलम जिले में बलराज रघुनाथ दत्त का जन्म हुआ. इन्हें आज हम सुनील दत्त के नाम से जानते हैं. सुनील दत्त को अपने करियर के शुरूआती दौर में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. अपने जीवन यापन के लिये उन्होंने बस डिपो में चेकिंग क्लर्क के रूप में काम किया जहां उन्हें 120 रूपये महीना मिला करते थे. इस बीच उन्होंने रेडियो सिलोन में भी काम किया जहां वह फिल्मी कलाकारों का साक्षात्कार लिया करते थे. हर इंटरव्यू के लिए उन्हें 25 रुपये मिलते थे.

अपने सिने करियर की शुरूआत सुनील दत्त ने 1955 में फिल्म "रेलवे प्लेटफॉर्म" से की. 1955 से 1957 तक वह फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे. "रेलवे प्लेटफॉर्म" के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली उसे वह स्वीकार करते चले गए. उस दौरान उन्होंने "कुंदन," "राजधानी," "किस्मत का खेल" और "पायल" जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों में अभिनय किया. लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई. लेकिन "मदर इंडिया" ने सब बदल कर रख दिया.

1963 में प्रदर्शित फिल्म "ये रास्ते हैं प्यार के" के जरिए सुनील दत्त ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया. 1964 में आई "यादें" सुनील दत्त द्वारा निर्देशित पहली फिल्म थी. इसके बाद 1967 सुनील दत्त के सिने करियर का सबसे महत्वपूर्ण साल साबित हुआ. उस वर्ष उनकी "मिलन," "मेहरबान" और "हमराज" जैसी सुपरहिट फिल्में रिलीज हुईं, जिनमें उनके अभिनय के नए रूप देखने को मिले. इन फिल्मों की सफलता के बाद वह अभिनेता के रूप में शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे.

राजनीति में भी

फिर 1972 में सुनील दत्त ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म "रेशमा और शेरा" का निर्माण और निर्देशन किया. लेकिन कमजोर पटकथा के कारण यह फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से नकार दी गई. 1981 में अपने बेटे संजय दत्त को लॉन्च करने के लिए उन्होंने फिल्म "रॉकी" का निर्देशन किया. यह फिल्म सुपरहिट साबित हुई. फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद सुनील दत्त ने समाज सेवा के लिए राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस पार्टी से लोकसभा के सदस्य बने. 1968 में वह पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किए गए. 1982 में उन्हें मुंबई का शेरिफ नियुक्त किया गया. उन्होंने कई पंजाबी फिल्मों में भी अपने अभिनय का जलवा दिखलाया जिनमें "मन जीत जग जीत," "दुख भंजन तेरा नाम" और "सत श्री अकाल" जैसी फिल्में प्रमुख हैं.

1993 में फिल्म "क्षत्रिय" के बाद सुनील दत्त ने विधु विनोद चोपड़ा के जोर देने पर 2007 में आई "मुन्ना भाई एमबीबीएस" में संजय दत्त के पिता की भूमिका निभाई. पिता पुत्र की इस जोड़ी को दर्शको ने काफी पसंद किया.

सुनील दत्त को अपने सिने करियर में दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इनमें 1963 की फिल्म "मुझे जीने दो" और 1965 की "खानदान" शामिल हैं. इसके बाद 2005 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया. सुनील दत्त ने लगभग 100 फिल्मों में अभिनय किया. अपनी निर्मित फिल्मों और अभिनय से दर्शको के बीच खास पहचान बनाने वाले सुनील दत्त 25 मई 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह गए.

आईबी/एमजी (वार्ता)