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'बॉलीवुड में संघर्ष खत्म नहीं होता'

२५ अक्टूबर २०१३

साल 2012 में चर्चित फिल्म गैंग्स आफ वासेपुर से अपने करियर की शुरूआत करने वाली हुमा कुरैशी फिलहाल काफी व्यस्त हैं. इस साल उनकी दो फिल्में रिलीज हो चुकी हैं और अगले साल भी कई फिल्में आने वाली हैं.

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तस्वीर: DW/P. M. Tewari

एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता पहुंची हुमा ने अपने अब तक के सफर और अनुभवों को डॉयचे वेले के साथ साझा किया. पेश हैं उनके साथ बातचीत के मुख्य अंश...

डीडबल्यूः अब तक का सफर कैसा रहा है ?

हुमा कुरैशीः जब मैंने हिन्दी फिल्मों में कदम रखा तो मेरा लक्ष्य साफ था. मैं अभिनेत्री बनना चाहती थी. लेकिन नाकामी से हार कर वापस जाने की बजाय मैं यहां अपने कदम जमाने के इरादे से आई थी. मैंने लघु फिल्मों से लेकर टीवी, थिएटर या विज्ञापन फिल्मों तक में काम किया. किसी बड़े ब्रेक के इंतजार में बैठे रहने की बजाय मैंने खुद को काम में व्यस्त रखा.

शुरूआती दिनों में कितना संघर्ष करना पड़ा ?

मैं भाग्यशाली रही कि मुझे शुरूआत में खास संघर्ष नहीं करना पड़ा. वैसे, फिल्मी पृष्ठभूमि से नहीं होने की वजह से संघर्ष तो यहां जीवन का हिस्सा बन जाता है. बॉलीवुड में संघर्ष कभी खत्म नहीं होता. मैं आज भी अपने अभिनय को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष करती हूं. दूसरे नजरिए से देखें तो इसे संघर्ष की बजाय सीखने का दौर भी मान सकते हैं. हर चीज आपके हाथ में नहीं होती. इसलिए हिम्मत हारे बिना सही मौके का इंतजार करना जरूरी है. अभिनय करना अपने हाथ में है. किसी फिल्म का कामयाब होना या नहीं होना कई बातों पर निर्भर है.

घरवालों का रवैया कैसा रहा ?

मैं दिल्ली की एक रुढ़िवादी मुस्लिम परिवार की युवती हूं. मेरे माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं अभिनेत्री बनूं. लेकिन मैंने तो मन में अभिनय करने की ठान रखी थी. सो, मुंबई चली आई. मेरे अभिनेता भाई सकीब सलीम ने इस मामले में मेरी काफी सहायता की. बाद में घरवाले भी धीरे-धीरे मान गए. मुंबई में अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स आफ वासेपुर ने मुझे पहचान दिलाई.

Huma Qureshi Bollywood Schauspielerin
खुद को हमेशा व्यस्त रखाः हुमा कुरैशीतस्वीर: DW/P. M. Tewari

फिल्मों का चयन किस आधार पर करती हैं ?

मेरे लिए फिल्म की पटकथा ही चयन का पैमाना है. साथ ही किरदार भी चुनौतीपूर्ण होना चाहिए. मैं सौ करोड़ के क्लब में शामिल होने के सपने नहीं देखती. अब तक मेरी फिल्मों ने अगर करोड़ों नहीं कमाए हैं तो घाटा भी नहीं उठाया है.

इन दिनों फिल्मों में हीरोइनों के साइज जीरो होने का चलन है. क्या आप खुद को उस ढांचे में फिट पाती हैं ?

लोग अक्सर मेरे वजन और फिगर की आलोचना करते हैं. लेकिन मैं अभिनेत्री हूं. मेरी पहचान अभिनय से होनी चाहिए, फिगर या वजन के जरिए नहीं. इस दौर में कई अभिनेता ऐसे हैं जो साइज जीरो के बिना भी काफी कामयाब और लोकप्रिय हैं. वैसे मैं किरदार की मांग के अनुरूप खुद को ढालने में सक्षम हूं.

अपने छोटे करियर में ही आपने कई मशहूर अभिनेताओं के साथ काम किया है. कैसा रहा उनके साथ काम करने का अनुभव ?

एक शब्द में कहूं तो लाजवाब. इरफान खान, ऋषि कपूर, अर्जुन रामपाल, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे अभिनेताओं के साथ काम करने के दौरान काफी कुछ सीखने को मिला. इनमें से हर अभिनेता की अपनी अलग खासियत है. आने वाली फिल्मों में मैं नसीर साहब, माधुरी दीक्षित और अरशद वारसी जैसे कलाकारों के साथ काम कर रही हूं.

बॉलीवुड की सबसे अच्छी और सबसे बुरी चीज क्या है ?

मुझे काफी यात्राएं करनी पड़ती हैं और अलग-अलग किरदारों को निभाना होता है. कैमरे के सामने मुझे किसी दूसरे व्यक्तित्व का जीवंत चित्रण करना पड़ता है. इसके अलावा दिलचस्प लोगों से मिलना-जुलना होता है. खराबी यह है कि कभी-कभी निजता का हनन अखर जाता है. लेकिन कुछ पाने के लिए तो कुछ खोना ही पड़ता है.

फुर्सत के वक्त क्या करती हैं ?

किताबें पढ़ती हूं. मुझे कॉलेज के दिनों से ही एथलीट, अभिनेताओं या उद्योगपतियों की जीवनी या आत्मकथाएं पढ़ने का बेहद शौक रहा है. इनसे मुझे प्रेरणा मिलती है. हर आत्मकथा किसी न किसी बिंदु पर पहुंच कर एक जैसी लगती है. इंसान होने के नाते हर व्यक्ति को जीवन में लगभग एक जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है.

इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा मोंढे

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