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ब्रह्मांड में धरती का संघर्ष

२ जुलाई २०१४

सूर्य और चंद्रमा की ताकतें लगातार पृथ्वी की परिक्रमा रोकने की कोशिश करते हैं. इससे निपटने के लिए धरती का गर्भ लगातार पृथ्वी को बदलता रहता है. ज्वालामुखी भी इसी का नतीजा हैं.

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Heliozentrisches Weltbild Sonnensystem Galileo Galilei
तस्वीर: Fotolia/tmass

दुनिया भर में इस वक्त 1,500 से ज्यादा ज्वालामुखी सक्रिय हैं. समुद्र के भीतर दबे सभी सक्रिय ज्वालामुखियों के बारे में जानकारी नहीं है. ज्वालामुखी या भूगर्भीय दरारों से निकलता लावा लगातार पृथ्वी का चेहरा बदलता है. द्वीप या महाद्वीप बनते और बिगड़ते हैं.

करोड़ों साल से धरती इसी तरह ऊपरी सतह पर मौजूद भारी चीजों को अपने भीतर खींचती है. भारी चीजें किसी तरह समुद्र तक पहुंच जाती हैं. इन्हें अर्थ क्रस्ट कहा जाता है. अर्थ क्रस्ट लगातार पृथ्वी की बाहरी इनर कोर में मिलता है. संतुलन के लिए धरती ज्वालामुखी के जरिए हल्की चीजों को बाहर निकाल देती है. समंदर के भीतर भारी जमीन अगर अचानक धंस जाए तो पृथ्वी नए ज्वालामुखी द्वीप बना देती है, संतुलन के लिए. आम तौर पर ये ज्वालामुखी पर्वत होते हैं जो वक्त के साथ ठंडे भी पड़ सकते हैं.

पृथ्वी के जीवन के लिए इनर कोर का बढ़ना बहुत जरूरी है. जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंस के भूगर्भ विज्ञानी ब्रिगर लूहर कहते हैं, "इनर कोर के बढ़ने का असर परिक्रमा पर होता है. लेकिन दूसरी तरफ चंद्रमा और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण भी धरती की परिक्रमा पर असर करता है. इनर कोर का बढ़ना परिक्रमा को तेज करता है और सूरज और चांद की गुरुत्व ताकतें इसे धीमा करती हैं."

रहस्य है पृथ्वी का गर्भ

धरती के गर्भ में लोहे और निकिल से बनी ठोस इनर कोर है. उसके बाहर बहुत बड़ा खौलते हुए मैग्मा का आवरण है. इसका तापमान 5,000 डिग्री से ज्यादा होता है. यह बात अब तक समझ से परे है कि जिस गर्मी में सब कुछ पिघल जाता है, उसमें इनर कोर कैसे सुरक्षित रहती है. बहरहाल इनर कोर और उसके बाहर पिघले पदार्थ का भार एक डायनेमो इफेक्ट पैदा करता हैं. इससे धरती के चारों ओर इससे चुंबकीय क्षेत्र बनता है. ये हमें सौर विकिरण से बचाता है. लेकिन वक्त के साथ ये चुंबकीय क्षेत्र भी बदलते हैं. फिलहाल उत्तरी ध्रुव 50 किमी प्रति वर्ष की रफ्तार से दक्षिण की तरफ जा रहा है. जीएफजेड पोटस्डाम के अर्थ मैग्नेटिक फील्ड वैज्ञानिक डॉक्टर हेरमन लूहर इसे सामान्य प्रक्रिया बताते हैं, "हम वाकई में नहीं जानते हैं कि ये डायनेमो कैसे काम कर रहा है है. बीते सालों में आपने यह जाना है कि चुंबकीय क्षेत्र आपस में बदलते हैं. उत्तरी ध्रुव दक्षिण को और दक्षिण ध्रुव उत्तर को चला जाता है. आखिरी बार ये बदलाव 780 साल पहले हुआ था और अब भी इनके बदलने का समय आ चुका है."

पुरानी विज्ञान की किताबों में लिखा होता था कि धरती गोल और उसके उत्तरी और दक्षिणी सिरे चपटे हैं. लेकिन अब चैम्प और स्वार्म जैसे आधुनिक सैटेलाइटों के जरिए पता चला है कि हमारी धरती संतरे जैसी गोल नहीं है. ये तो आलू की तरह है और लगातार अपना आकार बदलती रहती है. लेकिन क्यों? जियोडेसी एंड रिमोट सेंसिंग वैज्ञानिक क्रिस्टोफ फोर्स्टे कहते हैं, "जमीन करीब चालीस सेंटीमीटर ऊपर जाती है और फिर नीचे आती है. यह दिन में दो बार होता है. ये ज्वार और भाटा की वजह से होता है, ये सूरज और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण है."

सैटेलाइट डाटा के आधार पर हो रही रिसर्च, पृथ्वी के बारे में हमारी पुरानी खोजों और अवधारणाओं को बदल रही है. पता चल रहा है कि भूगर्भ में छुपी इनर कोर ज्लावामुखी के सहारे ही पृथ्वी पर जिंदगी को पालने पोसने में कितनी बड़ी भूमिका निभाती हैं. लेकिन ब्रह्मांड में पृथ्वी का ये संघर्ष कब तक चलेगा, ऐसे जवाब मिलने अभी बाकी हैं.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: आभा मोंढे