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ब्रिक्स में भारत की अहम भूमिका

५ जुलाई २०१५

भारत का हित इसी में है कि ब्रिक्स को पश्चिमी देशों की गिरफ्त को कम करने के लिए एक कारगर समूह के तौर पर विकसित करने में मदद करे और साथ ही उसे पश्चिमी देशों के साथ टकराव के रास्ते पर बढ़ने से रोके.

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BRICS am Rande des G20-Gipfel in Brisbane 15.11.2014 Dilma Rousseff
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Druzhinin Alexei

ब्रिक्स समूह के 2009 में हुए पहले शिखर सम्मेलन से अब तक विश्व की भू-राजनीतिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है और अनेक देशों की आर्थिक स्थिति भी काफी हद तक बदल गई है. इस समय स्थिति यह है कि रूस, जिसे ब्रिक्स और जी-8 समूह के बीच सेतु माना जाता था, यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के कारण जी-8 से बाहर किया जा चुका है. इन दिनों कुछ टिप्पणीकार तो यहां तक कह रहे हैं कि ब्रिक्स में केवल चीन और भारत ही ऐसे देश हैं जो उसके आर्थिक एजेंडे को आगे ले जा सकते हैं क्योंकि उन्हीं की अर्थव्यवस्थाएं विकास कर रही हैं.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिखर सम्मेलन के अवसर पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ होने वाली द्विपक्षीय बातचीत के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन द्वारा इस्तेमाल किए गए वीटो का मुद्दा भी उठाएंगे. जब पाकिस्तान सरकार द्वारा आतंकवादी नेता जकीउर्रहमान लखवी की रिहाई के सवाल पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने के प्रस्ताव को चीन ने वीटो कर रोक दिया था. यह इस बात का उदाहरण है कि ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच कोई साझा राजनीतिक समझ बनना मुश्किल है. यूं भी आर्थक और राजनीतिक मजबूरियों के चलते रूस और चीन एक-दूसरे के काफी नजदीक आते जा रहे हैं.

लेकिन इस समय ब्रिक्स का महत्व इसलिए भी बहुत बढ़ गया है क्योंकि चीन ने एक सौ अरब डॉलर की आरंभिक धनराशि से एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इनवेस्टमेंट बैंक शुरू कर दिया है जिसमें चीन, भारत और रूस सबसे बड़े शेयरधारक हैं. जापान को छोडकर अमेरिका के लगभग सभी मित्र देश इसके सदस्य बन रहे हैं. सभी चाहते हैं कि बुनियादी ढांचागत विकास की प्रक्रिया से होने वाले लाभ में उनका भी हिस्सा हो. अमेरिका इस घटनाक्रम से स्वाभाविक रूप से खुश नहीं है लेकिन जो देश विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की जकड़न से मुक्त होना चाहते हैं, वे पिछले शिखर सम्मेलन में प्रस्तावित और स्वीकृत ब्रिक्स बैंक में और अब चीन द्वारा शुरू किए गए इस बैंक में बहुत दिलचस्पी ले रहे हैं.

ग्रीस का आर्थिक संकट और उसमें इन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं की भूमिका भी उन्हें इसके लिए प्रेरित कर रही है. संक्षेप में कहें तो एक वैकल्पिक वैश्विक वित्तीय संरचना के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है. इस दृष्टि से अगले सप्ताह होने जा रहा ब्रिक्स शिखर सम्मेलन महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है. ब्रिक्स बैंक का प्रमुख एक भारतीय को बनाया गया है जो इस शिखर सम्मेलन के अवसर पर अपना कार्यभार संभाल लेंगे. के वी कामथ भारत के सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई बैंक के अध्यक्ष हैं और अपने क्षेत्र के शीर्ष विशेषज्ञ माने जाते हैं.

पिछले वर्ष प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने जब ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शिरकत की थी, उस समय वह अंतरराष्ट्रीय राजनय के मामले में नौसिखिये थे. लेकिन अब ऐसा नहीं है. रूस इस समय अमेरिका और यूरोप से अलग-थलग है और आर्थिक प्रतिबंधों एवं तेल एवं गैस की कीमतों में गिरावट के कारण परेशानी में है. यूक्रेन की स्थिति के कारण उसके और पश्चिमी देशों के बीच राजनीतिक तनातनी भी बहुत बढ़ी हुई है. उसकी दिलचस्पी ब्रिक्स को पश्चिमविरोधी गठबंधन में तब्दील करने में हो सकती है. उधर चीन की दिलचस्पी वैकल्पिक वित्तीय संस्थाओं के निर्माण में है ताकि अमेरिकी वर्चस्व वाले विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को टक्कर दी जा सके. ऐसे में भारत का राष्ट्रीय हित इसी में है कि ब्रिक्स को पश्चिमी देशों की गिरफ्त को कम करने के लिए एक कारगर समूह के तौर पर विकसित करने के साथ ही उसे पश्चिमी देशों के साथ टकराव के रास्ते पर बढ़ने से रोका जाये. इसके लिए बहुत कौशलपूर्ण कूटनीति की जरूरत होगी.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार