1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

चुनावों में निर्णायक हैं भारतीय मूल के वोटर

७ मई २०१५

ब्रिटेन में रहने वाले विदेशी मूल के सबसे अधिक वोटर भारतीय मूल के आप्रवासी हैं. चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के आधार पर त्रिशंकु संसद की संभावना बन रही है. ऐसे में भारतीय वोटरों की नई सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका होगी.

https://p.dw.com/p/1FM7s
Großbritannien wählt - Wahl zum Unterhaus im Vereinigten Königreich 2015
तस्वीर: Reuters/T. Melville

इस साल के चुनाव में पहली बार ऐसा बताया जा रहा है कि कई सीटों पर प्रवासियों के मत से जीत हार के फैसले पर बहुत बड़ा असर पड़ेगा. हाल की एक ब्रिटिश इलेक्शन स्टडी दिखाती है कि लगभग 6 लाख 15 हजार प्रवासी भारतीय वोटर चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेंगे. ब्रिटेन में सत्ताधारी गठबंधन दल कंजर्वेटिव और डेमोक्रेट्स के नेता हों, या विपक्षी लेबर पार्टी - दोनों ही पक्षों ने इस बेहद नजदीकी चुनावी मुकाबले में बहुमत हासिल करने के लिए जबर्दस्त प्रयास किए हैं. कुल 650 सीटों वाली ब्रिटिश संसद में किसी भी पक्ष को सरकार बनाने के लिए कम से कम 326 सीटों की जरूरत होगी. 2010 के आम चुनाव की ही तरह इन चुनावों में भी त्रिशंकु नतीजे आने की संभावना है.

कैमरन के सत्ताधारी कंजर्वेटिव गठबंधन को 2010 के आम चुनावों में केवल 16 फीसदी एथनिक अल्पसंख्यकों का समर्थन मिला था. इस बार बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्होंने 12 भारतीय मूल के उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है. इनमें भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के दामाद ऋषि सुनाक और उत्तरी आयरलैंड में खड़े हुए पहले सिख उम्मीदवार अमनदीप सिंह भोगल शामिल हैं.

इस बार पूरे चुनाव प्रचार अभियान में गहरा भारतीय रंग चढ़ा रहा. बॉलीवुड के अंदाज में हिंदी में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के प्रशंसा गीत रचे गए. ब्रिटेन में जगह जगह बने मंदिरों और गुरुद्वारों की मदद से भी राजनीति दलों ने करीब 15 लाख भारतीय मूल के लोगों को प्रभावित करने की कोशिशें की हैं. प्रवासी भारतीय उद्योगपति लॉर्ड स्वराज पॉल कहते हैं कि हर एक वोट को अपनी ओर करने की कोशिश हो रही है. लॉर्ड पॉल ने बताया, "भारतीय यह देखते हैं कि कौन सी पार्टी पूरे समुदाय के लिए सबसे अच्छा काम करती है."

तमाम चुनाव पूर्व मत सर्वेक्षणों में दिखाया गया है कि कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी दोनों को करीब 33 फीसदी वोट मिल सकते हैं. इसके अलावा आप्रवासन-विरोधी दल यूकिप को 12 फीसदी मत मिलने की उम्मीद है. स्काई न्यूज का "पोल ऑफ पोल्स" कहे जाने वाला सर्वेक्षण दिखाता है कि कंजर्वेटिव पार्टी को 34 प्रतिशत तो वहीं लेबर पार्टी को 33 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं. इतनी करीबी कांटे की टक्कर के कारण ही इस बार अल्पसंख्यकों का समर्थन हासिल करना प्रमुख दलों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है. 7 मई के मतदान और 8 मई को आने वाले चुनावी नतीजों और बहुमत दिलाने वाले गठबंधन बनाने की कोशिशें अगर सफल नहीं होती हैं तो दुबारा चुनाव कराना पड़ सकता है.

आरआर/ओएसजे (पीटीआई)