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भविष्य में दीवारें उगलेंगी बिजली

कार्मेन मायर/एमजे२२ अप्रैल २०१६

जीवाश्म ईंधन से अक्षय ऊर्जा तक का बदलाव इस सदी की सबसे बड़ी चुनौतियों में शामिल है. वैज्ञानिकों ने तकनीक तैयार कर ली है. अब जगह जगह सौर और पवन ऊर्जा के इस्तेमाल से बिजली बनाई जा रही है.

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03.03.2014 Solarfolie vom Band, Firma Heliatek Dresden

जापान में परमाणु दुर्घटना के बाद से यूरोप में अक्षय ऊर्जा का काफी जोर दिया जा रहा है. जर्मनी ने तो परमाणु बिजली घरों को जल्द से जल्द बंद करने का फैसला भी ले लिया है और अक्षय ऊर्जा को तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है. 2015 में जर्मनी में बिजली उत्पादन में अक्षत ऊर्जा का हिस्सा 30 प्रतिशत था. भारत की 2022 तक 100,000 मेगावाट सौर बिजली बनाने की योजना है. यूरोप में हाल के सालों में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में प्रोत्साहित करने वाली प्रगति हुई है. जर्मनी की ड्रेसडेन शहर की एक कंपनी अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल की दिशा में एक नया कदम उठाने जा रही है. अगर यह सफल रहा, तो इसका काफी बड़ा फायदा हो सकेगा.

कंपनी के अधिकारियों का मानना है कि जैसे गूगल ने सॉफ्टवेयर की दुनिया को बदला है वैसे ही उनकी कंपनी ऊर्जा के क्षेत्र को बदल सकती है. इनका सपना कुछ ऐसा है कि एक सोलर शीट की मदद से दीवारें, खिड़की, दरवाजे, दरअसल घर में मौजूद हर सतह बिजली पैदा कर सकती है. फ्रांस के थीबो ले सेगुईलौं ड्रेसडेन में हेलियाटेक नाम की कंपनी चला रहे हैं, जिसे वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम में टेक पायनियर का खिताब दिया है. उनकी सोलर शीट्स भविष्य में ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती हैं. उन्हें बस अब व्यापक पैमाने पर निवेश की जरूरत है.

OLED Platten von OLED Organischen Leuchtdioden die Licht abstrahlen
बिजली के लिए ओलेड प्लेट्स भीतस्वीर: Limbecker / DW

ये शीट्स दरअसल ऑर्गेनिक सोलर सेल से बनी हैं. इनमें वही सामान्य चीजें हैं, कार्बन, हाइड्रोजन. सिलिकॉन से बनने वाले फोटो वोल्टाइक सेलों के विपरीत इन्हें आसानी से दीवार पर लगाया जा सकता है. शरणार्थियों के लिए बनाए गए शिविरों में भी इन्होंने अपनी सोलर शीटें लगाई है. भविष्य के स्मार्ट शहरों के लिए यह एक मिसाल बन सकती है. हेलियाटेक कंपनी के तकनीकी प्रमुख मार्टिन फाइफर कहते हैं, "हम यहां दुनिया भर में मौजूद लाखों वर्ग मीटर में फैली सतह की बात कर रहे हैं, जिसे ऊर्जा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दशकों लग सकते हैं."

कारखानों के अत्यंत साफ कमरों में सिंथेटिक फिल्म पर ऑर्गेनिक तत्व चढ़ाए जा रहे हैं. ये सूरज की रोशनी को ऊर्जा में बदलने का काम करते हैं. ये सेल अभी भी उतनी अच्छी तरह काम नहीं कर पाते हैं, जितना कि सिलिकॉन वाले सेल लेकिन वक्त के साथ इन्हें बेहतर बनाया जा रहा है. कंपनी अब निवेश करने में लगी है. शीट की चौड़ाई को तीस सेंटीमीटर तक बढ़ाना होगा. इसके लिए नई मशीनों की जरूरत है. करीब डेढ़ करोड़ यूरो का निवेश जरूरी है.

लेकिन निवेश के लिए धन जुटाना इतना आसान नहीं है. मार्टिन फाइफर कहते हैं, "यूरोप में लोगों में अभी भी बहुत संकोच है. वे किसी नई तकनीक में इतना सारा पैसा निवेश नहीं कर पाते. हम दुनिया भर में निवेशक खोज रहे हैं. एशिया में चीन है, जापान, कोरिया. वहीं दूसरी ओर अमेरिका है, जहां लोगों को बड़े कदम और बड़ा जोखिम उठाने की आदत है." निवेशकों को यह समझाना भी जरूरी था कि यह तकनीक ना केवल इमारतों पर, बल्कि गाड़ियों पर और यहां तक कि कपड़ों में भी इस्तेमाल की जा सकती है.

जल्द ही सोलर शीटों का व्यापक स्तर पर निर्माण शुरू हो जाएगा, जिन्हें दीवारों, खिड़कियों और गाड़ियों पर लगाया जा सकेगा. कंपनी को खुद पर भरोसा है और क्या पता भविष्य में वाकई दीवारें, खिड़की, दरवाजे, सब बिजली बनाने लगें.