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भारतीय डॉक्टरों को ब्रिटेन में धड़ाधड़ नौकरी

२ जून २०१०

ब्रिटेन में एक बार फिर भारतीय मूल के डॉक्टरों की पूछ बढ़ गई है. नेशनल हेल्थ सर्विस को जूनियर स्तर पर डॉक्टर नहीं मिल पा रहे हैं और भारत के डॉक्टरों को लिया जा रहा है. नई सरकार के आप्रवासन नीति की यह पहली चुनौती है.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

करीब चार साल पहले ब्रिटेन में ऐसा कानून बना था, जिसके तहत यूरोपीय संघ के डॉक्टरों को तरजीह देनी थी. लेकिन डॉक्टरों की लगातार कमी के बाद भारत और दूसरे देशों के डॉक्टरों को एक बार फिर नौकरियां मिलने लगी हैं.

ब्रिटेन के डॉक्टरी क्षेत्र के सूत्रों का कहना है कि नए नियम का इतना बुरा असर हुआ कि कुछ अस्पतालों में इमरजेंसी सेवाएं और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों वाले विभागों को बंद करना पड़ा. ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) में काम कर रहे एक भारतीय मूल के डॉक्टर ने बताया, "2006 में जब यहां नए नियम बनाए गए तो कई भारतीय डॉक्टरों को यहां से वापस भारत जाना पड़ा. मीडिया में भी इस तरह की खबरें छपीं और वहां से नए डॉक्टर यहां आने से कतराने लगे."

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तस्वीर: Dpa

उनका कहना था कि हालांकि एक बार फिर भारतीय डॉक्टरों के लिए दरवाजे खुल रहे हैं. लेकिन फिर भी बहुत ज्यादा भारतीय डॉक्टर यहां नहीं आना चाहेंगे क्योंकि नए नियम के मुताबिक वे यहां दो साल से ज्यादा नहीं रह सकते हैं. किसी जगह पर इतने कम वक्त तक काम करने से उनके करियर पर असर पड़ सकता है.

ब्रिटेन की मीडिया में रिपोर्टें हैं कि एनएचएस ने हाल ही में ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ फीजीशियन्स ऑफ इंडियन ऑरिजिन (बापियो) को मदद के लिए संपर्क किया है. एनएचएस चाहता है कि बापियो की मदद से सैकड़ों भारतीय डॉक्टरों को जूनियर स्तर पर सेवा में लगाया जाए. लेकिन हाल के दिनों में यूरोपीय संघ के बाहर के डॉक्टरों के लिए वीजा शर्तें बेहद कड़ी कर दी गई हैं.

इंग्लैंड में डॉक्टरों की लगातार हो रही कमी के बाद एनएचएस वीजा नियमों को ढीला कराना चाहता है. लेकिन वीजा देने का अधिकार गृह मंत्रालय के पास होता है और ब्रिटेन के गृह मंत्रालय ने इस बात के कोई संकेत नहीं दिए हैं. गृह मंत्रालय में इस वक्त कंजर्वेटिव पार्टी की टेरेसा मे मंत्री हैं, जबकि आप्रवासन मंत्रालय भी इसी पार्टी की डैमियन ग्रीन के पास है. ब्रिटेन में हाल ही में चुनाव के बाद कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में आई है. इनका कहना है कि साल भर में एक सीमा के अंदर ही पेशेवर लोगों को वीजा मिलेगा.

Ärzte im Krankenhaus in Vlora, Albanien
तस्वीर: AP Photo

बापियो का कहना है कि वे एनएचएस को मदद के लिए तैयार हैं. लेकिन भारतीय डॉक्टरों को दो साल की जगह तीन से चार साल रहने दिया जाए और उन्हें बेहतर ट्रेनिंग दी जाए. बापियो के अध्यक्ष रमेश मेहता का कहना है, "स्वास्थ्य विभाग कहता है कि उसके हाथ बंधे हैं. लेकिन समस्या गृह मंत्रालय में है. स्वास्थ्य मंत्रालय वीजा की समयसीमा बढ़ाने का इच्छुक है लेकिन उनके सामने गृह मंत्रालय की बाधा है."

उधर, स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा है, "हमारा विभाग और यूनाइटेड किंगडम सीमा एजेंसी मिल कर आप्रवासन का काम देख रही है ताकि विदेश से आने वाले डॉक्टरों को सही ट्रेनिंग मिल सके. इस बात का भी ख्याल रखा जा रहा है कि इससे ब्रिटेन के डॉक्टरों को कोई नुकसान न हो."

अगर इंग्लैंड के गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय में तालमेल बैठ जाता है, तो आने वाले दिनों में एक बार फिर ब्रिटेन में भारतीय डॉक्टरों की पूछ बढ़ जाएगी.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः आभा मोंढे