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भारत का मुकाबला करने के लिए पाक बनाएगा नया संगठन?

अशोक कुमार
१२ अक्टूबर २०१६

पाकिस्तान ने दक्षिण एशिया में भारत का मुकाबला करने के लिए नई कोशिशें शुरू कर दी हैं. वह चीन, ईरान और अन्य मध्य एशियाई देशों का एक नया संगठन बनाने की सोच रहा है.

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Nawaz Sharif Premierminister Pakistan Besuch in Neu Delhi
तस्वीर: Reuters

दक्षिण एशियाई देशों के संगठन सार्क में अकसर भारत पर अपना दबदबा दिखाने के आरोप लगते हैं. पिछले दिनों इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन को रद्द कर देना पड़ा. उड़ी हमले के बाद दोतरफा तनाव के बीच भारत ने सम्मेलन में जाने से इनकार कर दिया. इसके बाद नेपाल, बांग्लादेश और भूटान ने भी सम्मेलन में हिस्सा न लेने का फैसला किया.

पिछले हफ्ते न्यूयॉर्क दौरे पर गए पाकिस्तान के एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने नए संगठन का यह प्रस्ताव पेश किया है. पाकिस्तानी अखबार 'डॉन' की वेबसाइट के मुताबिक इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल सीनेटर मुशाहिद हुसैन ने कहा, "एक व्यापक दक्षिण एशिया पहले ही उभरना शुरू हो गया है. इस व्यापक दक्षिण एशिया में चीन, ईरान और मध्य एशिया के देश शामिल हैं.”

उन्होंने इस सिलसिले में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर का जिक्र करते हुए कहा कि इससे दक्षिण एशिया को मध्य एशिया से जोड़ा जाएगा. मुशाहिद हुसैन का कहा है, "हम भारत से भी इसमें शामिल होने को कहेंगे.” लेकिन भारत को यह पेशकश शायद ही मंजूर होगी क्योंकि नया संगठन उसके लिए सार्क जितना सहज नहीं हो सकता.

डॉन की खबर में एक वरिष्ठ राजनयिक के हवाले से कहा गया है कि पाकिस्तान नए संगठन के बारे में गंभीरता से सोच रहा है. राजनयिक के मुताबिक, "संभवत: जिन हालात का सामना पाकिस्तान को करना पड़ा है, उन्हें देखते हुए वह ये सोचने को मजबूर है कि सार्क में तो भारत का ही दबदबा रहेगा. इसीलिए अब हम व्यापक दक्षिण एशिया की बात कर रहे हैं.”

उनके मुताबिक, "पाकिस्तान को उम्मीद है कि जब भी भारत उस पर कोई फैसला थोपने की कोशिश करेगा तो नया संगठन पाकिस्तान को पहले से ज्यादा दांवपेच दिखाने का मौका देगा.” कूटनीति पर नजर रखने वाले जानकारों की राय है कि चीन भी नए संगठन के पक्ष में होगा क्योंकि वह क्षेत्र में भारत की बढ़ती ताकत को लेकर चिंतित है. उनका मानना है कि चीन इस नए संगठन में शामिल होने के लिए ईरान और मध्य एशियाई देशों को राजी करने में अहम भूमिका अदा कर सकता है. लेकिन कुछ लोगों की ये भी राय है कि इसमें सार्क देशों के अन्य देशों का ज्यादा हित नहीं होगा.