1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत के दस लाख एचआईवी मरीजों को इलाज नहीं

२९ सितम्बर २०१०

भारत में एचआईवी वायरस से ग्रस्त करीब दस लाख लोगों को बुनियादी इलाज नहीं मिल पा रहा है. एचआईवी पर जारी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अनिवार्य लाइसेंस जारी करने पर विचार करे, जिससे दवाइयों की उपलब्धता बढ़े.

https://p.dw.com/p/PPK5
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

जेनेवा में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूएनएड्स और यूनिसेफ की साझा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने इस दिशा में विकास तो किया है लेकिन वह इससे अच्छा कर सकता है. डब्ल्यूएचओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत में पिछले सात साल के दौरान एंटी रेट्रोवायरल (एआरवी) इलाज में काफी बेहतरी आई है लेकिन अभी भी काफी बड़ी संख्या में लोगों को यह इलाज नहीं मिल पा रहा है.

Dossierbild Welt Aids Konferenz 3
तस्वीर: picture alliance/dpa

एचआईवी/एड्स, मलेरिया और टीबी जैसी बीमारियों के लिए धन मुहैया कराने वाली संस्था के रिफत अतुन का कहना है कि दुनिया भर में करीब डेढ़ करोड़ लोगों को फौरन एआरवी इलाज की जरूरत है और इसके लिए दस अरब डॉलर की दरकार है. हालांकि पिछले पांच साल में तेजी से काम करने के लिहाज से भारत तीसरे नंबर पर आ गया है. दक्षिण अफ्रीका और केन्या इससे तेजी से काम कर रहे हैं.

भारत में पिछले साल लगभग सवा तीन लाख लोगों का एआरवी इलाज किया गया, जबकि उससे पहले के साल में सवा दो लाख से कुछ ज्यादा लोगों को यह इलाज मिल पाया. अंतरराष्ट्रीय संगठनों का मानना है कि भारत की स्थिति अफ्रीका के कई देशों से बेहतर है और वहां डॉक्टर भी बेहतर हैं. ऐसे में वहां और ज्यादा लोगों को इलाज मिलना चाहिए.

अनिवार्य लाइसेंस के जरिए सरकार किसी खास पेटेंटधारक से किसी दवा को बेचने का अधिकार ले सकती है और इस तरह दूसरी कंपनियां भी इस दवा को बेच सकती हैं. कई औद्योगिक देशों ने यह तरीका अपनाया है, जिससे लोगों को सस्ते दर पर दवाइयां मिल जाती हैं.

लेकिन भारत में ऐसा नहीं किया जाता, जिससे एचआईवी/एड्स के मरीजों को दिक्कत होती है. हाल में थाइलैंड और ब्राजील ने अनिवार्य लाइसेंसिंग पद्धति अपनाई है.

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि इस साल के आखिर तक पूरी दुनिया में एचआईवी/एड्स के मरीजों के इलाज का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता है. तीन संगठनों की इस रिपोर्ट में 183 देशों का जिक्र किया गया है और कहा गया है कि सिर्फ एक तिहाई लोगों को ही जीवनरक्षक दवाइयां उपलब्ध हो सकती हैं.

इस बात पर भी चिंता जताई गई कि निम्न और मध्य आय वर्ग वाले देशों में एचआईवी से पीड़ित 60 प्रतिशत लोगों को यह पता ही नहीं कि वे संक्रमित हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सेक्स वर्कर, समलैंगिक और प्रवासियों के लिए इलाज पाना आज भी बेहद मुश्किल है.

रिपोर्ट के मुताबिक, "और साथ ही, वित्तीय संकट की वजह से कई देशों ने एचआईवी से निपटने की अपनी प्रतिबद्धता को ताक पर रख दिया." संयुक्त राष्ट्र के 2008 के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में सवा तीन करोड़ लोग एचआईवी से संक्रमित हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः एस गौड़