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मलेरिया की दवा रोधी किस्म ला सकता है महामारी

२० फ़रवरी २०१५

मलेरिया की एक दवा प्रतिरोधी किस्म भारत और म्यांमार के बॉर्डर तक पहुंच गई है. विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि प्रचलित दवाओं से ठीक ना होने वाला रोग महामारी का रूप ले सकता है.

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Malaria in Afghanistan
तस्वीर: Paula Bronstein/Getty Images

दक्षिण पूर्व एशिया के कई इलाकों में मलेरिया की ड्रग रेसिस्टेंट किस्म फैल चुकी है. यह रोग अब म्यांमार की ओर से भारत की सीमा पर दस्तक दे रहा है. हाल ही में प्रकाशित स्टडी बताती है कि मलेरिया की सबसे आम दवा आर्टेमिसिनिन का इस किस्म पर असर नहीं होता.

यह स्टडी लांसेट इंफेक्शस डिजीजेस जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसमें पाया गया कि मलेरिया पैदा करने वाले परजीवियों की सबसे जानलेवा किस्म प्लाज्मोडियम फाल्सिपेरम अब दक्षिण पूर्व एशिया के करीब 39 फीसदी इलाके में सामान्य रूप से पाई जाने लगी हैं. वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अगर मलेरिया की यह दवारोधी किस्म भारत पहुंच जाती है तो परिणाम भयानक हो सकते हैं.

Malaria in Afghanistan
तस्वीर: Paula Bronstein/Getty Images

वेलकम ट्रस्ट में इंफेक्शन एंड इम्यूनोबायोलॉजी के प्रमुख प्रोफेसर माइक टर्नर बताते हैं, "ड्रग रेसिस्टेंट मलेरिया परजीवी की शुरुआत 1960 के दशक में दक्षिण पूर्व एशिया में हुई. फिर ये म्यांमार से होते हुए भारत और दुनिया के दूसरे देशों में फैले जिसके कारण लाखों लोगों की जानें जा चुकी है." प्रोफेसर टर्नर कहते हैं, "नयी रिसर्च दिखाती है कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है."

स्टडी में यह चेतावनी भी दी गई है कि मलेरिया के फैलने की दर "भयानक" है. मलेरिया परजीवियों की यह प्रतिरोधी किस्म म्यांमार के होमालिन शहर में पाई गई है, जो कि भारतीय सीमा से केवल 25 किलोमीटर दूर है.

इस स्टडी के सीनियर ऑथर और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ट्रॉपिकल मेडिसिन रिसर्च युनिट के ही डॉक्टर चार्ल्स वुड्रो बताते हैं, "म्यांमार को आर्टेमिसिनिन से बेअसर किस्म के खिलाफ जंग की आखिरी सीमा माना जाता है, क्योंकि इसके आगे फैलने पर यह प्रतिरोधी किस्म को पूरे विश्व में ले जा सकता है."

अनुमान है कि हर साल मलेरिया के कारण 6 लाख से भी ज्यादा लोगों की जान चली जाती है, जिनमें से ज्यादातर पांच साल से कम उम्र के बच्चे हैं.

आरआर/आईबी(डीपीए)