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भारत को विश्व नेता बनने से रोकने वाले

ऋतिका राय (पीटीआई)२२ अक्टूबर २०१५

यूएन रिपोर्ट दिखाती है कि भारत में 5 साल तक के बच्चों में लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों से कहीं ज्यादा है. वहीं मेडिकल जर्नल लैंसेट ने कहा है कि भारत के विश्व नेता बनने की राह में स्वास्थ्य सेक्टर की दुर्दशा एक रोड़ा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

हाल ही में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट "दि वर्ल्ड्स विमेन 2015" दिखाती है कि दक्षिण, पूर्वी और पश्चिमी एशिया तथा ओशेनिका क्षेत्रों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से कहीं ज्यादा है. जिन दो क्षेत्रों में संख्या का यह अंतर सबसे अधिक और करीब 5 करोड़ के आस पास पाया गया वे हैं पूर्वी एशिया (चीन के कारण) और दक्षिण एशिया (भारत के कारण).

इसके अलावा 1.21 करोड़ के अंतर के साथ सऊदी अरब और यूएई के कारण पश्चिमी एशिया इस मामले में तीसरे स्थान पर है. राष्ट्रीय लिहाज से देखें तो महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की अधिकता वाले देशों में सबसे पहले आता है चीन (5.2 करोड़) और भारत (4.3 करोड़).

यूएन रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में लिंग आधारित गर्भपात के 1996 से ही गैरकानूनी होने के बावजूद इसका "जन्म के समय लिंग अनुपात पर बहुत कम असर" रहा है. 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भारत का सेक्स अनुपात दुनिया में सबसे खराब है. बाल मृत्यु दर का अनुपात 93 रहा, जिसका अर्थ हुआ कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में प्रति 100 लड़कियों की मौत के मुकाबले 93 लड़कों की मौत होती है. दुनिया के किसी और देश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कोई अंतर नहीं पाया गया है.

रिपोर्ट में लड़कियों की इस उच्च मृत्यु दर का संबंध, "भारत में बेटों को बेटियों से ज्यादा प्राथमिकता दिये जाने" को बताया गया है. इसी भेदभाव वाले रवैये के कारण लड़कों के पोषण, बीमारियों से बचाने वाले टीकाकरण और स्वास्थ्य सुविधाओं पर माता पिता अधिक खर्च करते हैं और उनकी अधिक देखभाल पर विशेष ध्यान होता है.

चीन में 1995 से 2013 के बीच देश के लेबर फोर्स में महिलाओं की प्रतिभागिता 72 से गिर कर 64 फीसदी हो गई है, जबकि भारत में 35 से घट कर 27 प्रतिशत. इसके अलावा दक्षिण एशियाई और उप सहारा अफ्रीकाई देशों में बाल विवाह एक और बड़ी समस्या है. पूरी दुनिया की बाल वधुओं का एक तिहाई हिस्सा तो केवल भारत में ही है.

विश्व के सबसे प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट ने अपने ताजा अंक में भारत के स्वास्थ्य सेक्टर को कम महत्व देने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नंरेद्र मोदी की आलोचना की है. 11 दिसंबर को प्रकाशित होने वाले अंक में शामिल जानकारी का हवाला देते हुए भारत के अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि दुनिया के कई जाने माने विशेषज्ञों ने भारत पर एक पेपर लिखा है. इस पेपर में मोदी सरकार द्वारा बजट में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को नजरअंदाज करने और उसके लिए पर्याप्त धन आवंटित ना किए जाने को चिंताजनक बताया है.

लैंसेट के हवाले से दैनिक ने लिखा है कि भारत के विश्व नेता बनने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने का सपना जायज है लेकिन यह तब तक संभव नहीं होगा, जब तक देश के बच्चे और मांएं गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी से मरते रहेंगे.