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भारत को सामाजिक क्षेत्र पर काम करने की जरूरत: पंत

२६ मई २०१७

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने तीन साल पूरे कर लिये हैं. सरकार अपनी उपलब्धियां गिना रही है तो विपक्ष उसकी विफलता के किस्से सुना रहा है. अर्थव्यवस्था की चुनौतियों पर इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के डी के पंत की राय.

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Indien Devendra Kumar Pant
तस्वीर: Privat

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार विकास के वायदे के साथ सत्ता में आयी. पिछले तीन सालों में बहुत सारी पहलों के बावजूद नतीजे वे नहीं रहे हैं जिनकी लोगों को उम्मीद थी. उसकी वजह अर्थव्यवस्था के विकास की प्रक्रिया में है. अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति और इससे जुड़ी चुनौतियों को विस्तार से समझने के लिये डॉयचे वेले ने इंडिया रेटिंग्स के वरिष्ठ अर्थशास्त्री डी के पंत से बातचीत की. पेश है कुछ अंश.

अर्थव्यस्था की मौजूदा स्थिति?

अर्थव्यवस्था में वृद्धि की बात की जाये तो इसमें बहुत अधिक बहुत बदलाव नहीं आया है. हमारी सालाना वृद्धि 20-30 बेसिस प्वाइंट तक बढ़ रही हो लेकिन हम अब भी रोजगार पैदा नहीं कर पा रहे हैं और यह देश की अर्थव्यवस्था के लिये बहुत बड़ी समस्या है,  सरकार चाहे कोई भी रही हो यह समस्या अर्थव्यवस्था में बनी हुई है. इंसानी काम वाले क्षेत्रों (लेबर इंटेनसिव सेक्टर) में ऑटोमेशन बढ़ गया है. मसलन निर्माण क्षेत्र में पहले जो काम मजदूरों के जरिये किया जाता था उसे अब मशीनों के जरिये किया जा रहा है. कुल मिलाकर कहा जाये तो लेबर इंटेनसिव सेक्टर में कैपिटल इंटेनसिटी बढ़ रहा है और उस दर से रोजगार पैदा नहीं हो रहे हैं जो अर्थव्यवस्था के लिये सबसे घातक है.

सुधार क्यों नहीं?

जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ती है इसका स्वरूप बदलता है तो जीडीपी ग्रोथ उससे मेल नहीं बिठा पाती. आप जब आर्थिक विकास के पहले स्टेज पर होते हैं तो आपके पास कृषि में रोजगार के सबसे ज्यादा मौके होते हैं जो बाद में कमी में तब्दील हो जाता है. मसलन कृषि से जुड़े पेरिशेबल प्रॉडक्ट्स में हमारे यहां बर्बादी की दर लगभग 30 फीसदी है और यही दर विकसित देशों में है लेकिन हमारे यहां जो बर्बादी होती है वह कृषि के दौरान या इसके बाद होने वाले भंडारण के स्तर पर देखने को मिलती है, लेकिन विकसित देशों में यह उपभोक्ता के स्तर पर देखने को मिलती है. इस स्थिति में अगर आप कृषि से कुछ मजदूरों को बाहर निकालना चाहते हैं तो जरूरत है उन्हें थोड़ी-बहुत ट्रेनिंग देकर इसी से जुड़े किसी काम में लगाया जाये. इसके साथ ही बुनियादी क्षेत्र मसलन अच्छे स्टोरेज बगैरह पर ध्यान देते हुये फैक्ट्रियां भी उस क्षेत्र के आसपास लगाई जायें जहां उनकी पैदावार होती हो ताकि रोजगार में वृद्धि हो.

अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां?

मौजूदा चुनौतियां जहां सबसे ज्यादा काम करने की जरूरत है वह है सामाजिक क्षेत्र. अभी हम जो बात करते हैं वह बुनियादी ढांचा क्षेत्र से जुड़ी हुई है. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था के विकास के स्तर में बदलाव आता है उत्पादन के स्तर पर ऑटोमेशन बढ़ता जाता है, नई तकनीक आती है और नई तकनीक को इस्तेमाल करने के लिये आपको कौशल की जरूरत होती है. ऐसे में श्रम शक्ति की गुणवत्ता सबसे अधिक अहम हो जाती है. आज एक बड़ा तबका प्रशिक्षित तो है लेकिन नौकरियों के लिये योग्य नहीं है और इस सूरत में कितना भी एफडीआई आ जाये, तकनीक ले आये उससे कोई सुधार नहीं होगा क्योंकि आपके पास उसके अनुरूप कुशल श्रम ही नहीं होगा. इसलिये मेरे हिसाब से शिक्षा और स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. हालांकि इन मुद्दों पर बात तो होती है लेकिन लागू करने के स्तर पर इनमें खामियां नजर आती है. कोई भी मूल कारण तक नहीं जा रहा.

जीएसटी पर आपकी राय?

अगर जीएसटी पर बात की जाये तो शुरुआती दौर में इसे लागू करने में हर स्तर पर परेशानियां देखने को मिलेगी लेकिन समय के साथ ही इसमें समस्यायें कम हो जायेगी और इनपुट क्रेडिट का लाभ लोगों को मिलेगा.

इंटरव्यू: अपूर्वा अग्रवाल