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भारत में बढ़ता कबाड़ कारोबार

११ जनवरी २०१४

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश दुनिया के बाकी देशों के लिए उनका प्रमुख कबाड़खाना बने हुए हैं. विश्व भर के दो तिहाई से भी ज्यादा पानी के जहाजों को यहीं नष्ट किया जा रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

ये तीनों दक्षिण एशियाई देश मिलकर दुनिया का बहुत सारा कचरा साफ कर रहे हैं. फ्रांस के एक निगरानी समूह का कहना है कि 2013 में करीब 1,119 जहाज इन देशों में नष्ट किए गए. ये संख्या इस साल पूरे विश्व में नष्ट किए गए कुल जहाजों की करीब आधी है. अगर जहाजों के कुल वजन को देखा जाए तो सिर्फ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने मिल कर बीते साल में करीब 71 प्रतिशत कचरे का निपटारा किया है. पर्यावरण संबंधी मामलों की निगरानी के काम में लगे रॉबिन डेस बॉइस बताते हैं कि यह संख्या "साबित करती है कि जहाजों को नष्ट करने का क्षेत्र बहुत अच्छी स्थिति में है."

फल फूल रहा है व्यवसाय

जहाजों के कबाड़ को निपटाने का करोबार हमेशा से विवादों में घिरा रहा है. ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि इन देशों में काम सस्ता तो है पर वहां पर्यावरण सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है. इस फ्रांसीसी समूह ने 2006 से ऐसे आंकड़ों का लेखा जोखा रखना शुरू किया जिनसे इस सेक्टर में हो रहे कामकाज में थोड़ी और पारदर्शिता लायी जा सके. तब से हर साल वे वार्षिक आंकड़ों को एक रिपोर्ट की शक्ल देते हैं जिससे कचरे के इस बड़े कारोबार को समझने में आसानी होती है.

नष्ट किए गए जहाजों की संख्या के आधार पर भारत इस सूची में सबसे ऊपर है, जिसके बाद चीन का नाम आता है. लेकिन अगर जहाजों के वजन के लिहाज से देखा जाए तो चीन का तीसरा नंबर रहा जबकि भारत इसमें भी टॉप पर है. नष्ट किए गए कुल जहाजों में से करीब एक तिहाई ऐसे थे जिनका इस्तेमाल अन्न या कोयला जैसी चीजों को ढोने में किया गया था. हर छह में से एक जहाज का उपयोग कंटेनर शिप के रूप में तैयार और डिब्बाबंद उत्पादों को ढोने में किया जा रहा था. रिपोर्ट में बताया गया है कि कंटेनर शिपों की संख्या में पिछले 6 से 7 सालों में काफी तेज बढ़त देखी गयी है.

Alang India
गुजरात के आलांग में दुनिया का सबसे बड़ा कबाड़ी जहाजों का बंदरगाह है.तस्वीर: AP

पर्यावरण का खास ख्याल

रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल नष्ट किए गए 1,119 जहाजों में से 667 ऐसे थे जो बंदरगाहों पर इसलिए रोक लिए गए थे क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का पालन नहीं कर रहे थे. रिपोर्ट में कहा गया है, "बंदरगाहों पर होने वाली जांच दुनिया भर के मर्चेंट जहाजों की सफाई के मामले में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं."

ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशियाई देशों को मर्चेंट जहाजों को नष्ट करने के केंद्र के तौर पर जाना जाता था. साथ ही इन देशों के बारे में ऐसी धारणा भी रही है कि यहां सुरक्षा और पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर कम ध्यान दिया जाता है. यूरोपीय संघ ने ऐसे अधिनियम बनाए हैं जिनमें कहा गया है कि जिन जहाजों पर ईयू का झंडा लगा होगा उनको नष्ट करने और रिसाइक्लिंग का काम अधिकृत केंद्रों पर ही किया जाएगा. इस पर फ्रांसीसी समूह का कहना है कि ये नियम बनाने के पीछे इरादा बहुत "नेक" है. नए अधिनियम का पालन करते हुए 2013 में ही करीब आठ प्रतिशत यूरोपीय जहाजों को किसी यूरोपीय यार्ड में ही नष्ट किया गया. यूरोपीय जहाजों के मालिकों ने अपने जहाजों को उनकी अंतिम यात्रा के लिए झंडे के साथ रवाना किया.

गुजरात के आलांग में दुनिया के सबसे बड़े कबाड़ी जहाजों के बंदरगाह पर एक साथ कई हजार लोग काम करते हैं. ज्यादातर भारत के गरीब राज्यों, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश से यहां आकर काम करने वाले श्रमिक कबाड़ से एस्बेस्टस और स्टील को अलग भी करते हैं. इससे देश में स्टील की काफी जरूरत पूरी की जाती है.

आरआर/आईबी (एएफपी)

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