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भारत में बढ़ता मेडिकल टूरिज्म

२६ जुलाई २०१३

भारत मेडिकल टूरिज्म यानी स्वास्थ्य पर्यटन और इस क्षेत्र में विदेशी निवेश के एक प्रमुख ठिकाने के तौर पर उभर रहा है. इस क्षेत्र में काफी विदेशी निवेश हुआ है. लेकिन अब भी इसमें निवेश की काफी संभावनाएं हैं.

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तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP/Getty Images

भारत में अब भी इस क्षेत्र में मांग व सप्लाई में भारी अंतर है. प्रमुख व्यापारिक संगठन एसौचैम की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2012 में डेढ़ लाख पर्यटक स्वास्थ्य लाभ के लिए भारत आए थे. साल 2015 तक यह तादाद बढ़ कर 32 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है. वर्ष 2012 में स्वास्थ्य के क्षेत्र में 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है. और उम्मीद की जा रही है कि 2015 तक इस क्षेत्र का कारोबार 100 अरब डॉलर हो जाएगा और 2020 तक 280 अरब डॉलर तक.

भारत की विशेषज्ञता

एशियाई देशों में स्वास्थ्य पर्यटन के लिहाज से भारत फिलहाल पहले नंबर पर है. थाईलैंड, सिंगापुर, चीन और जापान जैसे देश भी अब ऐसे पर्यटकों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन भारत में इलाज की बेहद कम लागत, आधुनिकतम चिकित्सा तकनीकों और उपकरणों की उपलब्धता के साथ ही विदेशियों को भाषा की समस्या नहीं होने की वजह से यहां सबसे ज्यादा ऐसे पर्यटक आते हैं. भारत में विदेशों के मुकाबले एक चौथाई से भी कम लागत पर इलाज तो हो ही जाता है, घूमना भी हो जाता है. देश के जाने-माने विशेषज्ञ और पहली बाइपास सर्जरी करने वाले डॉ केएम चेरियन कहते हैं, "अंग्रेजी भाषा की वजह से इस क्षेत्र में कम से कम अगले दस साल तक भारत का वर्चस्व रहेगा. इसके अलावा भारतीय डॉक्टरों की ख्याति पूरी दुनिया में है." विदेशी मरीज यहां मुख्य तौर पर जिन बीमारियों का इलाज कराने आते हैं उनमें अंग प्रत्यारोपण, दिल की बाइपास सर्जरी, बोन मैरो ट्रांसप्लांट, हिप रिप्लेसमेंट और वैकल्पिक चिकित्सा प्रमुख हैं.

विदेशी मरीज

कम लागत में विश्वस्तरीय चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध होने की वजह से बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्यांमार के अलावा यूरोप के कई देशों और अमेरिका से भी मरीज यहां आते हैं. कुछ देशों के लिए यहां वीजा ऑन अराइवल की सुविधा होने के कारण मरीजों को किसी दिक्कत का सामना नहीं करना होता. ऐसे मरीज स्वास्थ्य वजहों से एक महीने तक भारत में रह सकते हैं. अंग्रेजी आम होने की वजह से विदेशी मरीजों को यहां दूसरे देशों की तरह भाषा की समस्या से नहीं जूझना पड़ता. यूरोपीय देशों से आने वाले मरीजों को ध्यान में रखते हुए कई अस्पतालों ने दुभाषियों और अनुवादकों को भी काम पर रखा है. अपोलो ग्लेनेगल्स अस्पताल की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ रूपाली बसु बताती हैं, "विदेशों से मरीज अंग प्रत्यारोपण के अलावा दिल की बाइपास सर्जरी और मुंह व गले की बीमारियों के इलाज के लिए भारत आते हैं." वह कहती हैं कि यहां इलाज में होने वाले खर्च तो कम हैं ही, इंतजार भी नहीं करना पड़ता. मिसाल के तौर पर ओपन हार्ट सर्जरी पर भारत में लगभग साढ़े हजार अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है जबकि विदेशों में यह खर्च 18 हजार डॉलर से ज्यादा है. इसके अलावा अमेरिका और इंग्लैंड में मरीजों को इसके लिए कम से कम नौ से 11 महीने तक इंतजार करना पड़ता है. लेकिन भारत में मरीज के पहुंचते ही सर्जरी की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.

Indien Gesundheitssystem Ausstellung von Rezepten Krankenhaus
तस्वीर: DW/P. Tewari

विदेशी निवेश

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2010 से दिसंबर 2012 तक सिर्फ अस्पतालों और डायगोनस्टिक सेंटरों में ही 15.42 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है. इसके अलावा दवा कंपनियों और चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों में इस दौरान लगभग 11 करोड़ डॉलर का निवेश देखा गया. कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के पूर्वी क्षेत्र के उपाध्यक्ष वीरेश ओबराय कहते हैं, "भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश के एक बड़े ठिकाने के तौर पर उभरा है. लेकिन अब भी मांग व आपूर्ति में भारी अंतर है. साल 2020 तक सबके लिए स्वास्थ्य के लक्ष्य को पूरा करने के लिए देश को अस्पतालों में एक लाख से ज्यादा बिस्तरों की जरूरत है." डॉ रूपाली बसु कहती हैं, "वर्ष 2015 तक इस क्षेत्र का कारोबार 100 अरब डॉलर और 2020 तक 280 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा." ओबेराय बताते हैं कि वर्ष 2013 के दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र में 1.05 अरब डॉलर के निवेश की योजना है. विशेषज्ञ इस तेजी से बढ़ते क्षेत्र में निवेश के लिए विभिन्न फंडिंग एजंसियों के आगे आने की उम्मीद कर रहे हैं. ओबेराय कहते हैं कि इस क्षेत्र के व्यापक आकार और इसकी तेज वृदि दर को ध्यान में रखते हुए यहां बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है. डॉ बसु कहती हैं कि ऐसी एजंसियों के लिए यह एक सुनहरा मौका है. इंडिया वेंचर एडवाइजर्स के अध्यक्ष संजय रणधर कहते हैं, " देश के दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में स्वास्थ्य क्षेत्र के विस्तार की असीम संभावनानाएं हैं."

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा मोंढे

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