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भारत में लाखों जानें ले रहा है वायु प्रदूषण

क्रिस्टीने लेनन
१७ जनवरी २०१७

भारत के कई शहरों में वायु की गुणवत्ता स्वीकार्य स्तर से काफी नीचे है. ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल वायु प्रदूषण के चलते 12 लाख लोग असमय मौत का शिकार बन जाते हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित महिलाएं हैं.

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Bilder aus dem Dorf Dunduwa in Indien
तस्वीर: DW

वायु प्रदूषण देश में स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा कारक बन कर उभरा है. पेट्रोल, डीजल और कोयला जलने से उत्सर्जित होने वाले कण, वायु की गुणवत्ता को खराब करने के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं. साथ ही, खाना पकाने और गर्मी पैदा करने के लिए लकड़ी, गोबर, खूंट और दूसरी चीजें को जलाने के चलते भी घर के भीतर ही जहरीली हवाओं का घर बन जाता है. घरों के भीतर इस तरह पैदा होने वाला प्रदूषण बाहरी प्रदूषण से कहीं ज्यादा जानलेवा साबित हो रहा है.

महिलाएं प्रभावित

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार बाहरी हवा के साथ साथ घर के भीतर की प्रदूषित हवा भी लोगों के स्वास्थ पर बुरा असर डाल रही है. इस आन्तरिक प्रदूषण के लिए अशुद्ध जीवाश्म ईंधन को जिम्मेदार माना जाता है. अपने लोगों को खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन न उपलब्ध करा पाने वाले देशों की सूची में भारत शीर्ष पर है. ग्रामीण भारत में आज भी काफी लोग भोजन पकाने और गर्म करने के लिए कोयला या लकड़ी जलाते हैं जो बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ के लिए खतरनाक साबित हो रहा है.

स्वास्थ विशेषज्ञों का अनुमान है कि लाखों लोगों की मृत्यु अशुद्ध जीवाश्म ईंधन के कारण होती है. इनमें से अधिकांश की मौत का कारण गैरसंचारी रोग जैसे हृदय रोग, फेफड़े संबंधी रोग और फेफड़े का कैंसर हैं. केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का कहना है कि हर साल पांच लाख महिलाएं इस धुंए का शिकार होकर जान गवां बैठती हैं. उनका कहना है कि सरकार महिलओं के स्वास्थ को लेकर चिंतित है.

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शहर भी बुरी तरह प्रदूषण की चपेट मेंतस्वीर: AFP/Getty Images

सरकार की पहल

सरकार अशुद्ध जीवाश्म ईंधन में कमी लाने और महिलाओं को धुंए से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरूआत की है. इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए उपयोग में आने वाले अशुद्ध जीवाश्म ईंधन की जगह शुद्ध एलपीजी गैस के उपयोग को बढ़ावा देना है. इसके तहत एलपीजी कनेक्शन केवल गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से सम्बंधित महिलाओं को दिया जाएगा. सरकार का मानना है कि अगले 3 साल में 5 करोड़ परिवारों को मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध करा कर महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा की जा सकती है.

एक साल की बजाय नौ महीने में ही इस योजना से डेढ़ करोड़ परिवार जुड़ चुके हैं. सरकार का दावा है कि इस योजना से महिलाओं का सशक्तिकरण होगा और उनके स्वास्थ्य की रक्षा होगी. गैस को अपनाने से खाने पकाने में लगने वाले समय और कठिन परिश्रम को कम करने में भी सहायता मिलेगी.

जानकारी का आभाव 

खाना बनाने के लिए उपयोग में आने वाले अशुद्ध जीवाश्म ईंधन के जलने से जो बीमारियां होती हैं,  उज्ज्व्ला योजना के लागू होने के बाद उनमें भी कमी आने की सम्भावना है. लेकिन ज्यादातर महिलाएं रसोई के धुएं से होने वाली बिमारियों से अनजान हैं. छत्तीसगढ़ के राजधानी से सटे एक गांव की रहने वाली 45 साल सुमित्रा बाई का कहना है कि रसोई पकाने के दौरान उठने वाले धुएं से उनके फेफड़े में कार्बन जम गया है. बहुत सी ग्रामीण महिलाओं की आँखों की रोशनी भी प्रभावित हुई है, लेकिन वे इससे अनजान हैं. डॉ. आरएस बारले का कहना है कि बहुत सी महिलाएं सांस लेने में हो रही तकलीफ को बुढ़ापे की समस्या मान कर अस्पताल नहीं जातीं. उनका कहना है कि लगातार धुएं में रहने के कारण महिलाओं के श्वसन तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

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कैसे पहुंचाई जाएगी घर घर तक गैसतस्वीर: DW/S.Waheed

जागरूकता अभियान की ज़रूरत

स्वास्थ और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार घर के भीतर के वायु प्रदूषकों के खतरे से फैल रही बीमारियों की रोकथाम के लिए एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है. छत्तीसगढ़ के ग्राम गोटाटोला के मदन कोठारी कहते हैं कि जब गाय का गोबर और लकड़ी आसानी से और मुफ्त मिल जाता है तो गैस सिलिंडर भरवाने के पैसे क्यों खर्च करें. हालांकि उनके गांव के लोग उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त में मिल रहे रसोई गैस कनेक्शन लेने में पीछे नहीं हैं. इसी गांव की युवती ममता कहती है कि गैस कनेक्शन लेने के बावजूद उनके घर में इसका उपयोग कम ही हो पाता है. मदन कोठारी कहते हैं कि सिर्फ कनेक्शन बांटने से कोई लाभ नहीं होगा. सरकार या अन्य सामाजिक संस्थाओं को आगे आकर ग्रामीण महिलाओं को रसोई गैस पर खाना पकाने की ट्रेनिंग भी देनी चाहिये, तभी लोग इसे अपना पायेंगे.