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भारत: सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी जरूरी

कुलदीप कुमार१७ नवम्बर २०१५

पेरिस हमले के बाद भारत में संभावित खतरों पर नजर रखी जा रही है. कश्मीर में समय समय पर आईएस के झंडे दिखते रहे हैं. कुलदीप कुमार का कहना है कि हमले से निबटने के लिए भारत भी उतना ही तैयार है जितना कोई और देश.

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मुंबई में आतंकवाद के खिलाफ मुसलमानों का प्रदर्शनतस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Solanki

पिछले शुक्रवार की रात को फ्रांस की राजधानी पेरिस में हुए आतंकवादी हमलों के बाद भारत में भी हाई एलर्ट घोषित कर दिया गया है और पुलिस एवं अन्य सुरक्षा एजेंसियां पूरी सतर्कता बरत रही हैं. लेकिन इसके बावजूद सभी के मन में आने वाले दिनों को लेकर गहरी आशंका है और एक सवाल है जो सभी को परेशान किए हुए है: ऐसे किसी भी खतरे से निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं?

इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं है. ग्यारह माह पहले पेरिस में ही व्यंग्य पत्रिका “शार्ली एब्दो” के दफ्तर पर जबर्दस्त आतंकवादी हमला हुआ था जिसमें एक पुलिस अफसर समेत बारह व्यक्ति मारे गए थे और लगभग एक दर्जन घायल हो गए थे. इस हमले के तुरंत बाद भी फ्रांस में अन्यत्र कई आतंकवादी हमले हुए जिनमें पांच व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और ग्यारह अन्य जख्मी हो गए. तब से फ्रांस की पुलिस और खुफिया एजेंसिया बहुत सतर्क हैं. लेकिन उनकी भरपूर सतर्कता भी शुक्रवार को हुए आतंकवादी हमलों को रोक नहीं पायी. इन हमलों में 129 लोगों की जानें गईं और बहुत बड़ी संख्या में लोग जख्मी हुए. अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के निदेशक जॉन ब्रेनन का कहना है कि ऐसे हमलों की तैयारी में महीनों लगते हैं और इस बात की पूरी आशंका है कि भविष्य में इन्हें दुहराया जाएगा.

अब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि प्रतिस्पर्धा होने के बावजूद दुनिया भर के आतंकवादी समूह एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं. पाकिस्तान-अफगानिस्तान का क्षेत्र उनकी दीक्षाभूमि रहा है. पेरिस में हुए आतंकवादी हमले उसी तरह एक श्रृंखलाबद्ध तरीके से हुए हैं जिस तरीके से 26 नवम्बर, 2008 को मुंबई में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने किए थे. यानी इस्लामिक स्टेट ने पाकिस्तान-स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की कार्यप्रणाली को अपनाया है. इस हमलों की सफलता से लश्कर-ए-तैयबा पर इस बात के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ सकता है कि वह भी एक बार दुनिया को दिखा दे कि वह क्या कुछ करने में सक्षम है. और यह संगठन सिर्फ एक ही काम करने में सक्षम है, और वह है आतंकवादियों को प्रशिक्षण देकर भारत के खिलाफ आत्मघाती हमलों के लिए तैयार करना. आतंकवाद का मनोविज्ञान बड़े पैमाने पर नाटकीय घटनाएं करके दुनिया भर के मीडिया में शोहरत हासिल करके अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पर टिका है. पाकिस्तान की ओर से अभी तक कोई भी ऐसा संकेत नहीं मिला है कि उसके सैन्य प्रतिष्ठान ने भारतविरोधी आतंकवादी संगठनों को हर प्रकार की सहायता और संरक्षण देने की अपनी नीति में जरा-सा भी बदलाव किया है.

पिछले कुछ समय के दौरान भारतीय मुस्लिम युवकों के इस्लामिक स्टेट के प्रति आकर्षित होने के समाचार भी आए हैं. एक आकलन के अनुसार लगभग डेढ़ सौ भारतीय मुस्लिम युवक इस्लामिक स्टेट के असर में हैं और पचास संभवतः उसके लिए लड़ भी रहे हैं. फेसबुक और ट्विटर जैसे सामाजिक मीडिया का बहुत सुनियोजित ढंग से नौजवानों को गुमराह करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. अमेरिका के ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन ने सितंबर से दिसंबर 2014 के दौरान किए गए अपने अध्ययन के आधार पर पाया कि इस्लामिक स्टेट के समर्थकों द्वारा प्रतिदिन 133,422 ट्वीट भेजे गए. यानी आतंकवाद कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है बल्कि इसके पीछे वास्तविक भू-राजनैतिक और वैचारिक कारण हैं जिन्हें इस्लाम का चोला पहना दिया जाता है. लेकिन संतोष की बात यह है कि भारत में मुस्लिम आबादी लगभग अठारह करोड़ है. इतनी बड़ी आबादी में से सिर्फ सौ-पचास नौजवानों का गुमराह हो जाना इस बात का द्योतक है कि भारतीय मुस्लिम समुदाय अतिवादी इस्लाम की गिरफ्त में नहीं आया है. अधिक खतरा सीमा पार से आने वाले आतंकवादियों की ओर से ही है.

सुरक्षा विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि पिछले दो सालों के दौरान भारत में किसी बड़े आतंकवादी हमले का न होना तूफान से पहले की शांति भी हो सकता है. पंजाब और जम्मू-कश्मीर में कुछ हमले हुए हैं पर वे बहुत बड़े नहीं थे. पाकिस्तान के अलावा नेपाल और बांग्लादेश की ओर से भी आतंकवादी आ सकते हैं और खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा बलों को बेहद चौकसी बरतने की जरूरत है. समस्या यह है कि यदि वे सौ में से निन्यानवे बार आतंकवादियों की साजिशों को नाकाम करने में सफल हो भी जाएं, तो भी सिर्फ एक बार की विफलता आतंकवादियों की बहुत बड़ी कामयाबी में बदल सकती है. लेकिन जहां तक भारत का सवाल है, वह आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए और उनका सामना करने के लिए उतना ही तैयार है जितना दुनिया का कोई भी अन्य देश.