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मंथन में गुजरात का सोलर कुकर

२८ दिसम्बर २०१२

रसोई में खाना बनाने के लिए सोलर कूकर लगे हों, तो गैस सिलिंडरों की आकाश छूती कीमतों और उनकी कमी से बचा जा सकता है. गुजरात में जर्मनी की सौर ऊर्जा की तकनीक इस्तेमाल कर पूरे गांव का खाना तैयार किया जा रहा है.

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तस्वीर: DW

गुजरात में जिस सोलर कुकर पर गांव भर का खाना पक रहा है वह कई मामलों में आधुनिक है और इसे हर काम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे छत पर या रसोई से दूर लगाने पर भी कोई दिक्कत नहीं. इस सोलर कूकर में सूरज की किरणों की गर्मी से भाप बनाई जाती है और इसका इस्तेमाल उष्मा के लिए किया जाता है.

साल के दस महीने इस कूकर के जरिए बड़े आराम से काटे जा सकते हैं. केवल बारिश के दो महीनों में ही इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता. एक कूकर से 15 लोगों का खाना बनाया जा सकता है. सबसे पहले यह कूकर मुनि सेवा आश्रम में लगाया गया. यह आश्रम कई सामाजिक संस्थाएं चलाता है जहां बीमार, बूढ़े लोगों के साथ ही अनाथ बच्चों की मदद की जाती है. आश्रम में कूकर का प्रयोग इतना सफल रहा कि इसे दूसरी संस्थाओं और आस पास के इलाके में रहने वाले लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. लोग बड़े उत्साह से इसे अपना रहे हैं.

सोलर कूकर में फायदा यह है कि एक बार लगा देने के बाद हर रोज का खर्च करीब ना के बराबर है. साथ ही इसमें ना तो धुआं निकलता है ना ही पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचता है. आश्रम से जुड़े लोग इस कूकर के प्रचार प्रसार में लगे हैं. गुजरात का डुंडेलाव गांव पहले से ही सौर ऊर्जा के जरिए बिजली पैदा कर रहा है और उसे मालूम है कि अक्षय ऊर्जा का यह स्रोत उनके लिए विकास के नए द्वार खोलेगा. सोलर कूकर दुनिया भर में करीब पच्चीस देशों में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन फिर भी ज्यादातर लोग अब तक इसके फायदों से रूबरू नहीं हो पाए हैं.

दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले डीडब्ल्यू की विज्ञान पत्रिका मंथन में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है. यह कार्यक्रम भारत में दूरदर्शन के डीडी-नेशनल चैनल पर शनिवार सुबह 10:30 बजे देखा जा सकता है. शनिवार और रविवार की मध्यरात्रि 12 बजे मंथन का फिर से प्रसारण होता है.

मंथन के नए अंक में सौर ऊर्जा के उपयोग पर प्रकाश डाला गया है. गुजरात में सोलर कूकर के इस्तेमाल से ले कर फिलिपीन्स में इस्तेमाल हो रहे सोलर लैम्प के बारे में रिपोर्टें हैं. इसके अलावा कार्यक्रम के दूसरे भाग में सिंथेटिक बायोलॉजी पर नजर डाली गयी है. यह विज्ञान का एक ऐसा पहलू है जिसमें इंजीनियर कंप्यूटर कोड्स की तरह कृत्रिम रूप से डीएनए तैयार कर लेते हैं और इससे नए जीव की रचना हो जाती है.  अंत में एक रोचक रिपोर्ट है जो कारों के दीवानों को खूब पसंद आएगी. हर किसी के मन में एक चमकती दमकती, तेज रफ्तार वाली गाड़ी चलाने का सपना होता है. लेकिन अगर बिना गाड़ी खरीदे रोज रोज नई कार चलाने को मिले और सर्विसिंग का भी झंझट ना हो, तो? कैसे, देखिए मंथन में.

आईबी/एनआर