1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मंथन में दुर्लभ धातुएं

ईशा भाटिया१ अगस्त २०१३

विज्ञान, तकनीक और पर्यावरण के खास शो मंथन में इस बार बात उन धातुओं की जो कीमती हैं और बेहद जरूरी भी. चलेंगे प्रकृति की गोद में बसे उस स्कूल में भी जो बच्चों को पर्यावरण की रक्षा करना सिखाता है.

https://p.dw.com/p/19IHc
तस्वीर: DW

महंगी धातुओँ की बात हो ध्यान आता है सोने चांदी का लेकिन इनके अलावा भी बहुत कुछ है जो ना सिर्फ महंगा बल्कि जरूरी और दुर्लभ भी है. नए जमाने की तकनीक में इनका इस्तेमाल खूब हो रहा है और जिन देशों के पास इसका भंडार है उनकी तो चांदी ही चांदी है. कंप्युटर ने लिखना बंद करा दिया है लेकिन हाथ से लिखे शब्दों की जगह कोई छपाई नहीं ले सकती, कोई है जो इसकी खूबसूरती का ख्याल रखने के साथ ही इसे बदलते दौर में भी जरूरी बनाए हुए है. मंथन कराएगा इस शख्स से मुलाकात.

विज्ञान:

विज्ञान पढ़ने वाला हर छात्र पीरियॉडिक टेबल से वाकिफ़ है. हर बच्चे के पास इसे याद करने का अपना अलग तरीका होता है. कोई एटॉमिक नामों को जोड़ कर मजेदार जुमले बना लेता है, तो कोई इन्हें यूं का यूं रट लेता है. विज्ञान पढ़ने वाले हर छात्र के कमरे की दीवार पर यह टेबल मिल जाएगी. इसमें नीचे लैनथनाइड्स की एक लिस्ट होती है, जो कि रेयर अर्थ एलिमेंट्स हैं, यानी ऐसी धातुएं जो धरती पर बहुत कम पाई जाती हैं और इसीलिए बेहद महंगी भी होती हैं. मंथन में ले चलेंगे आपको पूर्वी जर्मन शहर केमनित्स में जहां यूरोप के दुर्लभ खनिज पदार्थों का सबसे बड़ा गोदाम है.

दुर्लभ खनिज पदार्थों पर जानकारी के लिए इस बार बात हो रही है डॉयचे वेले के वरिष्ठ संपादक करेंगे महेश झा से. वह समझा रहे हैं कि आम जिंदगी में इनका इस्तेमाल कहां कहां होता है. वह हमारा ध्यान चीन की ओर भी ले जा रहे हैं जो इनका सबसे बड़ा उत्पादक है. जानेंगे उनसे कि किस तरह से जमीन के नीचे से इन तत्वों को निकालने की जटिल प्रक्रिया इन्हें इतना कीमती बना देती है.

पर्यावरण:

अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, इतिहास.. स्कूल में हमेशा वही गिने चुने विषय होते हैं. लेकिन कुछ स्कूल हैं जहां कुछ अनोखे विषय पढ़ाए जाते हैं. मिसाल के तौर पर इंडोनेशिया का ग्रीन स्कूल. स्कूल के नाम के मुताबिक ही यहां ग्रीन स्टडीज पढ़ाई जाती है. छठी क्लास के छात्र यहां स्कूल का सालाना कार्बन फुटप्रिंट तैयार करते हैं और फिर उसकी भरपाई करने के लिए पेड़ भी लगाते हैं. कुदरत की गोद में बने इस स्कूल की शुरुआत पांच साल पहले हुई और अब दुनिया के अलग अलग कोनों से यहां बच्चे पढ़ने आ रहे हैं. इंडोनेशिया दुनिया में पांचवां सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैस छोड़ने वाला देश है. शायद ये बच्चे इसमें कुछ बदलाव ला सकें. ग्रीन स्कूल की सभी इमारतों में अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. बिजली बनाने के लिए सोलर पैनलों की मदद ली जाती है.

ब्राजील में भी सोलर पैनलों का इस्तेमाल किया जा रहा है. अटलांटिक महासागर के तट पर मौजूद रियानोपोलिस में पांच लाख लोग रहते हैं. शहर पिछले दशकों में काफी फैला है. सूरज की किरणों की चमक भी यहां कुछ अलग सी है और इसी वजह से ब्राजील का सबसे बड़ा फोटोवोल्टाइक प्लांट यहां बनाया जा रहा है. एक मेगावाट का प्रोजेक्ट ऊर्जा कंपनी एलेक्ट्रोसुल के परिसर पर बनेगा. जर्मन विकास बैंक इस प्रोजेक्ट में पैसे लगा रही है. बैंक ने पैसे उधार नहीं, बल्कि इस शानदार प्रॉजेक्ट के लिए तोहफे में दिए हैं. 28 लाख यूरो इसमें खर्च किए जा रहे हैं.

जीवनशैली:

कागज पर लिखे गए खूबसूरत अक्षर किसी का भी दिल जीत लेते हैं. लिखावट से आपके व्यक्तित्व के बारे में पता चलता है. आप सीधा लिखते हैं या टेढ़ा, शब्दों के बीच जगह कम छोड़ते हैं या ज्यादा, अक्षर घुमा कर बनाते हैं या नहीं, ये सब आपके बारे में कुछ कहते हैं. कंप्यूटर के इस दौर में हाथ से लिखने का काम कम हो पाता है. आमंत्रण पत्र, कार्ड, आज कल सब कुछ मशीनी है, लेकिन कुछ लोग अब भी कैलीग्राफी यानी लिखावट के जादू में यकीन रखते हैं. मंथन में हम आपको मिलवाएंगे पैरिस के एक कैलिग्राफ निकोला आउशेनी से. उनका मानना है कि यह विचार की कैलीग्राफी कभी खत्म हो जाएगी, बेकार है, बल्कि जितने हम हाइटेक होते जाएंगे कैलीग्राफी की मांग उतनी ही बढ़ेगी.

यानी आपकी लिखावट आपका पेशा भी बन सकती है. एक जमाने में लिखने पर खूब जोर दिया जाता था. अब भी कई स्कूलों में कर्सिव राइटिंग गर्मी की छुट्टियों में मिलने वाले होमवर्क का हिस्सा है. लेकिन ज्यादातर बच्चों को इसमें कोई खास मजा नहीं आता. आज कल के बच्चे किताबी ज्ञान को छोड़, खुद चीज़ें ईजाद करना पसंद करते हैं. मंथन की इस रिपोर्ट में हम आपको मिलवाएंगे जर्मनी के कुछ होनहार बच्चों से. यूरोप की सबसे बड़ी प्रतियोगिता यूगेंड फॉर्श्ट में इन युवा रिसर्चरों ने हिस्सा लिया है. इस साल के मुद्दे हैं पर्यावरण, जलवायु और प्रकृति का संरक्षण. 19 साल के एक युवा रिसर्चर ने ऐसा ऐप बनाया है जिसकी मदद से माता पिता अपने बच्चों की साइकिल को स्मार्ट फोन के एक कमांड से रोक सकते हैं.

रिपोर्टः ईशा भाटिया

संपादनः एन रंजन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी