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मई दिवस पर हक मांगते ढाका के मजदूर

१ मई २०१३

बुधवार को ढाका में सूरज उगा तो सड़कों पर हजारों मजदूर काम की जगह पर सुरक्षा और उस दोषी के लिए मौत की मांग के साथ खड़े थे, जिसने हजारों परिवारों से रोटी कमाने वाला छीन लिया. आज मई दिवस है.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

पैदल, पिक अप ट्रकों और मोटरसाइकिल पर सवार मजदूर मध्य ढाका की सड़कों पर बुधवार को निकले तो उनके उग्र तेवर उनके मन की हताशा की गवाही दे रहे थे. हाथों में देश का झंडा और नारे लिखे बैनर लहराते मजदूरों ने पुरजोर आवाज बुलंद किया और लाउडस्पीकर से गूंज सुनाई दी..."सीधी कार्रवाई; मौत की सजा." प्रदर्शन कर रहे एक मजदूर ने साथ चल रहे लोगों की ओर से कहा, "मेरा भाई मर गया. मेरी बहन मर गई. उनका खून बेकार नहीं जाएगा."

बीते बुधवार की ही तो बात है, भरभरा कर गिरी आठ मंजिली इमारत में काम कर रहे हजारों मजदूर दब गए. आधिकारिक जानकारी के मुताबिक 386 लोगों के शव निकाले गए हैं और सैकड़ों लापता हैं. साथ ही 2000 से ज्यादा लोग घायल हैं. मई दिवस इस गरीब मुल्क के मजदूरों के लिए एक मौका ले कर आया है कि वो अपनी पीड़ा दुनिया के सामने रख सकें. अवैध रूप से बनाई गई इमारत में चल रही कपड़ा सिलने की पांच फैक्ट्रियों से रोजी-रोटी कमाते मजदूर एक ही झटके में मौत के मुंह में समा गए. इस हादसे ने बीते नवंबर में हुए अग्निकांड को पीछे छोड़ दिया है जिसमें 112 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. वो हादसा भी कपड़ा सिलने की फैक्ट्री में ही हुआ था.

Tausende Arbeiter in Dhaka fordern Hinrichtung von Fabrikbesitzern
तस्वीर: Reuters

अवैध इमारत के मालिक मोहम्मद सोहैल राणा को गिरफ्तार कर लिया गया है और पुलिस उससे पूछताछ कर रही है. हालांकि उसे कोई कठोर सजा मिलेगी इसकी उम्मीद कम ही है. लापरवाही, अवैध निर्माण और मजदूरों को काम करने पर मजबूर करने के अपराध अगर साबित हो भी गए तो ज्यादा से ज्यादा सात साल की सजा मिलेगी. उस पर और कोई गंभीर अपराध के आरोप लगेंगे, इस बारे में अधिकारी खामोश हैं. 38 साल का राणा बांग्लादेश की सत्ताधारी अवामी लीग पार्टी से जुड़ा है और मजदूर उसे मौत की सजा दिलाना चाहते हैं.

किसी और जगह मौजूद कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले 18 साल के मोंगिदुल इस्लाम कहते हैं, "मैं इमारत के मालिक के लिए मौत की सजा चाहता हूं. हम नियमित तनख्वाह, तरक्की और हमारी फैक्ट्रियों में पूरी तरह से सुरक्षित वातावरण चाहते हैं." बांग्लादेश की हाईकोर्ट ने सरकार को सोहैल राणा की संपत्ति के साथ ही उसकी इमारत में चलने वाली फैक्ट्रियों के मालिकों की संपत्ति जब्त करने के आदेश दिए हैं, जिससे कि यह रकम मजदूरों को तनख्वाह देने में इस्तेमाल की जा सके. सोहैल राणा को इमारत में पांच मंजिल बनाने की इजाजत मिली थी लेकिन उसने तीन मंजिल और बिना अनुमति के अवैध तरीके से बनाए. गिरने से पहले जब इमारत में दरार दिखी तब भी उसने काम करने वाले लोगों से कहा कि इमारत बिल्कुल ठीक है और वो लोग काम कर सकते हैं. अगले दिन इमारत में चलने वाले एक बैंक और कुछ दुकानों ने इमारत में जाने से इनकार कर दिया लेकिन फैक्ट्रियों के मालिकों ने मजदूरों से काम चालू रखने को कहा.

फोटो कोड 923
फोटो कोड 923तस्वीर: MUNIR UZ ZAMAN/AFP/Getty Images

नवंबर में जब एक कपड़ा फैक्ट्री में आग लगी थी तब सुरक्षा की स्थिति को बेहतर करने के लिए बड़ी बड़ी बातें की गईं, कसमें खाई गईं लेकिन तब से अब तक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. ढाका में महिला मजदूरों के हक के लिए काम करने वाले संगठन कर्मोजिबी नारी की प्रमुख शिरीन अख्तर कहती हैं, "मुझे लगता है कि देश, उद्योग और मजदूर संगठनों के जागने का वक्त आ गया है."

बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग चीन और इटली के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा है और पिछले एक दशक में यह बहुत तेजी से बढ़ा है. दुनिया भर में बेची जाने वाली पश्चिमी देशों की बड़ी बड़ी कंपनियां यहां से कपड़े सिलवाती हैं. हर साल करोड़ों की तादाद में शर्ट, पैंट और दूसरे कपड़े यहां से बन कर दुनिया के बाजारों में पहुंचते हैं.

Tausende Arbeiter in Dhaka fordern Hinrichtung von Fabrikbesitzern
तस्वीर: AFP/Getty Images

ब्रिटेन की प्रीमार्क कंपनी ने माना है कि वह गिरी इमारत राणा प्लाजा में बनने वाले कपड़े खरीदती थी. कंपनी ने बयान जारी कर कहा है कि वह आपात सहायता मुहैया करा रही है और उसके सप्लायर के लिए काम करने वाले मजदूरों को मुआवजा देगी. इसी तरह कनाडा की कंपनी लोब्लॉ इंक के लिए भी राणा प्लाजा में कपड़े बनते थे. कंपनी ने कहा है कि वह यह सुनिश्चित करेगी कि पीड़ित परिवारों को अभी और भविष्य में उनकी तरफ से सहायता मिले.

ज्यादातर मजदूरों का कहना है कि नवंबर हादसे के शिकार हुए लोगों को इन विदेशी कंपनियों की तरफ से समय पर सहायता नहीं मिली. फिलहाल मामला गर्म है तो बयान भी आ रहे हैं लेकिन सचमुच सहायता मिल सकेगी यह कहना अभी कठिन है. इतना जरूर है कि दुर्घटनाओं के कारण जगे मजदूरों की जमात दोबारा नींद में जाने को फिलहाल तैयार नहीं दिख रही.

एनआर/एमजे (एपी)

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