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मछलियों से महरूम होंगे महासागर

२५ मई २०१०

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अधिकारियों ने आशंका जताई है कि आने वाले 40 वर्षों में महासागरों से मछलियाँ गायब हो सकती हैं. संयुक्त राष्ट्र ने मत्स्य उद्योग के प्रबंधन में बेहतरी लाने के सुझाव दिए हैं.

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तस्वीर: RIA Novosti

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अंतर्गत चलाई जा रही ग्रीन इकोनॉमी पहल के प्रमुख पवन सचदेव ने न्यूयार्क में एक पत्रकार वार्ता में इसकी समीक्षा के दौरान कहा कि अगर समय रहते मछली पकड़ने वाली नौकाओं के बेड़ों में कटौती नहीं की गई, महासागरों में मत्स्य संरक्षित क्षेत्र नहीं बना और मत्स्य उद्योग को अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं किया गया तो 2050 तक समुद्र में मछलियों का नामो-निशान मिट सकता है.

ग्रीन इकोनॉमी रिपोर्ट के मुताबिक 3.5 करोड़ लोग 2 करोड़ नावों पर दुनिया भर में मछली पकड़ते हैं. इस तरह से लगभग 17 करोड़ लोगों का रोजगार मछली पकड़ने या इससे जुडे क्षेत्र पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर करता है. इस तरह से 52 करोड़ लोग किसी न किसी तरह से आर्थिक रूप से मत्स्य उद्योग से जुड़े हैं.

Hilsa Fisch in Indien und Pakistan
तस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान में बताया गया है कि इस बार पहले ही 30 प्रतिशत फिश स्टॉक कम हुआ है जिसका अर्थ है मछली की पैदावार 10 प्रतिशत कम हो सकती है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार गरीब देशों के एक अरब से ज्यादा यानी धरती के 20 प्रतिशत लोग मुख्य पशु प्रोटीन स्रोत के रूप में मछली पर निर्भर हैं.

हाल में हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि 2003 के बाद से दुनिया भर में 27 प्रतिशत मत्स्य उद्योग ठप हो गया है. इसकी सबसे बड़ी वजह है आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते ज्यादा खाई जाने वाली प्रजातियों को अंधाधुंध तरीके से पकड़ा जाना. इसके कारण मछली उत्पादन में 10 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है.
इस समय केवल सस्ती तथा अपेक्षाकृत कम पसंद की जाने वाली मछलियों का 25 प्रतिशत स्टॉक ही अच्छी मात्रा में उपलब्ध है. इसके आधार पर आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में खाने के लिए पकड़ी जाने वाली मछलियाँ गायब हो सकती हैं.
सबसे बड़ी चिंता का विषय बताया गया है, सरकारों द्वारा मछलियों के संरक्षित क्षेत्र बनाने के बजाय और भी बड़े फिशिंग फ्लीट्स को समुद्र में उतारा जाना. इससे संतुलन खतरनाक ढंग से बिगड़ रहा है. सरकारों द्वारा दी जा रही सब्सिडी के चलते पहले की तुलना में अब फिशिंग फ्लीट क्षमता से 50-60 गुना ज्यादा हैं. फिलहाल दुनिया भर के 148 देश मत्स्य उद्योग से जुड़े हैं.

Ile des Nattes, Insel vor Madagaskar
छोटी नौकाओं को प्रोत्साहनतस्वीर: DW/Victoria Averill
Niederlande Fischfang auf der Oosterschelde
हॉलैंड का मछली पकड़ने वाला जहाज़तस्वीर: picture-alliance / dpa


ग्रीन इकोनॉमी के अनुसार मछलियों की संख्या फिर से बढ़ाने का सिर्फ एक ही हल है कि मादा मछली को पूर्ण विकसित होने दिया जाए जिससे वह अधिकतम अंडे दे सके. एक हल यह भी सुझाया जा रहा है कि फिशिंग फ्लीट्स का इस तरह से पुनर्गठन किया जाए कि छोटी नौकाओं को बढ़ावा दिया जाए तथा सिर्फ बड़े आकार की मछलियाँ ही पकड़ी जाएँ.

मत्स्य उद्योग में वर्तमान में सालाना 8 करोड़ टन मछलियाँ पकड़ी जाती हैं. इतनी मछलियों से 85 अरब अमेरिकी डॉलर की सकल आय तथा 8 अरब अमेरिकी डॉलर सालाना मुनाफा होता है.

मत्स्य उद्योग बंद हो जाने के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. 1992 में कनाडा के न्युफाउंडलैंड में कॉड मछली के एकाएक गायब हो जाने से वहाँ 18000 रोजगार खत्म हो गए थे और एक जमाने के मशहूर मछली उत्पादक शहर के 20 प्रतिशत लोगों को रोजगार की तलाश में शहर छोड़ना पड़ा था. इससे निपटने के लिए कनाडा सरकार को करोड़ों डॉलर खर्च करने पड़े थे.

अगर मत्स्य उद्योग का ठीक तरह से प्रबंधन हो तो सालाना मुनाफा 8 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर 11 अरब अमेरिकी डॉलर हो सकता है, जिससे दुनिया भर में इस उद्योग से जुडे लोगों को सीधा फायदा होगा.

इसके लिए ग्रीन इकोनॉमी रिपोर्ट में फिशरीज मैनेजमेंट के लिए कुछ सुझाव दिए हैं, जिनका इस्तेमाल दुनिया भर के मत्स्य उद्योग में किया जाना चाहिए. हालांकि इसका खर्च मछलियों के सालाना मूल्य का 9.5 प्रतिशत होगा, पर आने वाले दिनों में इससे बढ़ने वाले मत्स्य उत्पादन के मुकाबले यह लागत ज्यादा नहीं लगती.

रिपोर्ट: संदीपसिंह सिसोदिया, वेबदुनिया

संपादन: महेश झा