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मदद की आस में आदिवासी

२ अगस्त २०१४

वैज्ञानिक जब ब्राजील में अमेजन के वर्षावनों में पहुंचे तो उनका सामना कुछ खास किस्म के आदिवासियों हुआ. वो बाहरी लोगों के करीब आए. अनुवादक की मदद से पता चला कि आधुनिक इंसान जंगलों के साथ क्या कुछ कर रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

रिसर्च टीम ने इस घटना का वीडियो भी बनाया है. रिसर्च टीम को पहली बार देखते ही आदिवासी युवक बंदर की तरह खीस भरी आवाज निकालने लगे. शरीर के हाव भावों और आवाज के सहारे वो जता रहे थे कि रिसर्चर उनसे दूर रहें. तभी रिसर्चरों की टीम ने उन्हें केले के गट्ठे दिखाए. आदिवासी पुरुष केले लेने के लिए नदी पार करते हुए उनके पास पहुंच गए. ब्राजील के नेशनल इंडियन फाउंडेशन के अधिकारी कार्लोस ट्रावासोस के मुताबिक, "वो जंगली जीवों की तरह सीटी बजा रहे थे और आवाज निकाल रहे थे."

इसके बाद वो रिसर्चरों के पीछे लग गए और उनके कैंप तक पहुंच गए. उनके बदन में सिर्फ एक लंगोट थी. लंगोट में कमर के नीचे धारदार धातु का औजार था. कुछ के पास धनुष था. कैंप में पहुंचने के बाद उन्होंने कपड़े और दूसरी चीजें चुरानी शुरू कर दी. मना करने पर वो जानवरों की तरह आवाज निकालकर डराने लगे और कुछ कपड़े व कुल्हाड़ी चुरा कर वापस चल दिए.

तस्करों के निशाने पर

इस तरह के आदिवासी इनविरा नदी पर पहली बार दिखे हैं. ब्राजीलियाई विशेषज्ञों को लग रहा है कि जंगल में रहने वाले ये लोग मूल रूप से पेरू के है. पड़ोसी देश पेरू के जंगल इन दिनों ड्रग तस्करों का अड्डा बन गए हैं. आशंका है कि ड्रग्स और लकड़ी के तस्करों की वजह से आदिवासियों को वहां से भागना पड़ा. ये आदिवासी दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के मूल निवासी हैं. इन्हें रेड इंडियन कहा जाता है.

जून में अधिकारी दूसरी बार वहां पहुंचे तो एक अनुवादक की मदद से उन्होंने आदिवासियों बातचीत भी की. अनुवादक खामिनावा खोसे कोरेया के मुताबिक वो आदिवासी भारी खतरे में हैं, "उन्होंने बताया कि बाहरी मूल के लोग उन पर हमला कर रहे हैं और उनके समुदाय के कई लोग फ्लू और खसरे से मारे जा चुके हैं."

मानवविकासशास्त्री टेरी आकीनो मानते हैं कि आदिवासी कुल्हाड़ी, चाकू और बर्तनों की खोज में इंसानी बस्तियों तक आ रहे हैं. "वो लोग भी तकनीक की तरफ देख रहे हैं क्योंकि बाहरी लोगों के संपर्क में आने से उनके समुदायों में आपसी संघर्ष शुरू हो गया है."

अमेजन के वर्षावनों में आदिवासियों की संख्या का आज तक सही सही पता नहीं चल सका है. दुनिया भर में अब तक आदिवासियों की 77 समुदाय मिल चुके हैं. सरवाइवल इंटरनेशनल जैसे सामाजिक संगठन आदिवासियों की सुरक्षा को लेकर चिंता में हैं. उन्हें लगता है कि बाहरी लोगों के संपर्क में आने से आदिवासी समाज का पूरा ताना बाना बिखर जाएगा. इसके चलते कई नई बीमारियां भी वहां तक पहुंचेगी जहां अस्पताल नाम की चीज ही नहीं.

ओएसजे/एमजी (एएफपी)