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मध्य पूर्व में चीन के बढ़ते कदम

१६ अक्टूबर २०१३

नाटो सहयोगियों के विरोध के बावजूद चीन अपनी उन्नत मिसाइलें तुर्की को बेचेगा ऐसी संभावना बनती दिख रही है. इससे अमेरिका नाराज हो सकता है लेकिन यह बहुत हैरान करने वाली बात नहीं.

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तस्वीर: AP

इराक और अफगानिस्तान में भले ही अमेरिका ने अरबों डॉलर और सैकड़ों जिंदगियों की कुर्बानी दी लेकिन चीन चुपके चुपके मध्य पूर्व में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है. अमेरिका ने स्थाई रूप से खाड़ी में एक विमानवाही युद्धपोत और दर्जनों दूसरे युद्धपोत तुर्की, कतर और संयुक्त अरब में तैनात कर रखे हैं. अब तक वहां वह एक बड़ी क्षेत्रीय ताकत के रूप में बना हुआ है. चीन ने मध्यपूर्व में धीरे धीरे रूस के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है. वह अगल बगल से आकर कभी कभी खुद को दिखा जा रहा है, जैसे कि अभी सीरिया के मामले में हुआ.

चीन की आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक दिलचस्पी हालांकि बहुत तेजी से बढ़ रही है. चीन के व्यापार मंत्रालय ने पिछले महीने कहा कि चीन और अरब देशों का कारोबार अब 222 अरब डॉलर सालाना तक जा पहुंचा है. 2002 की तुलना में यह करीब 12 गुना ज्यादा है. इसने 2011 में अमेरिका और मध्यपूर्व के बीच 193 अरब डॉलर के सालाना कारोबार को पीछे छोड़ दिया.

सैन्य रूप से भी देखें तो चीनी कदमों के निशान उभर रहे हैं. हिंद महासागर में पाइरेसी के खिलाफ टास्क फोर्स के रूप में तीन युद्धपोतों को रखने के अलावा चीन मौका पड़ने पर भूमध्य सागर में भी अपने जहाज भेज रहा है, उसने लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक भी तैनात किए हैं. अमेरिकी या यूरोपीय मिसाइल सिस्टम को छोड़, 3.4 अरब डॉलर खर्च कर चीन के एफडी-2000 मिसाइल सिस्टम को खरीदने का तुर्की फैसला आने वाले दिनों का शायद एक संकेत है. मिसाइल बनाने वाली कंपनी चायना प्रीसिजन मशीनरी इम्पोर्ट एंड एक्सपोर्ट कॉर्प पर अमेरिका ने पाबंदी लगा रखी है. चीन पर ईरान, उत्तर कोरिया और सीरिया नॉनप्रोलिफरेशन एक्ट के उल्लंघन का आरोप है. तुर्की के अधिकारियों का कहना है कि आधिकारिक तौर पर करार अभी नहीं हुआ है लेकिन होने की उम्मीद है.

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तस्वीर: Reuters

अमेरिका और नाटो के अधिकारियों की शिकायत है कि यह मिसाइल सिस्टम नाटो के सिस्टम के साथ उपयुक्त नहीं होगा और गठबंधन से जुड़े देशों में साइबर हमले और अन्य दखलंदाजियों का खतरा पैदा हो सकता है. उधर चीनी विदेश मंत्रालय का कहना है कि पश्चिमी देश एक सामान्य कारोबारी करार पर हायतौबा मचा रहे हैं.

अमेरिकी सरकार में काम कर चुकी और अब स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज से जुड़ी क्रिस्टीना लिन का कहना है, "यह चेतावनी की घंटी है. चीन मध्य पूर्व में और ज्यादा शामिल होने की ताक में है और बड़ी तेजी से उसे वहां स्वीकार किया जाना लगा है." क्रिस्टीना ने पिछले साल अमेरिकी सेना के उप प्रमुखों को इस बारे में समझाया भी था. क्रिस्टीना का कहना है कि चीन की इस इलाके में दिलचस्पी है जो ऊर्जा से लेकर निवेश तक से जुड़ी है. इसके जरिए चीन जिहादी उग्रवाद को रोकना चाहता है क्योंकि उसके मुस्लिम राज्यों की यह सबसे बड़ी समस्या है.

जानकारों का कहना है कि भूराजनीति को कारोबार के साथ जोड़ना चीनी रुख का हमेशा हिस्सा रहा है. चीनी अधिकारी नियमित रूप से मध्य पूर्व के देशों में जाते रहते हैं. इस इलाके के नेताओं का भी चीन आना जाना खूब होता है. इनमें तुर्की के रिचेप तैय्यप एर्दोआन, इस्राएल से बेन्यामिन नेतान्याहू, फलीस्तीनी नेता महमूद अब्बास और जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला भी शामिल हैं. अरब वसंत के बात अमेरिका का मुबारक जैसे अपने पुराने सहयोगियों का साथ छोड़ने के कारण इलाके के देश नए विकल्पों की तलाश में हैं. यहां तक की अमेरिका के लंबे समय से साथी रहे देश भी खिंचे खिंचे महसूस कर रहे हैं.

ऊर्जा की बढ़ती जरूरत

चीन इस इलाके में छोटे हथियारों का लंबे समय से बड़ा सप्लायर रहा है. स्टॉकहोम के इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इसी महीने 2006-10 के बीच मिस्र, जॉर्डन, लेबनान और कतर को बेचे हथियारों की रिपोर्ट जारी की है. हालांकि तुर्की के साथ करार को एक बड़ी शुरूआत माना जा रहा है. चीन की बढ़ती ऊर्जा जरूरतें भी इसमें बड़ी भूमिका निभा रही हैं. अमेरिका ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होने के करीब पहुंच चुका है. इसके अलावा बजट की रुकावटें और लोगों का विरोध उसके सैन्य अभियानों पर असर डाल रहा है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी को उम्मीद है कि चीन का मध्यपूर्व से तेल आयात 2011 के 29 लाख बैरल प्रतिदिन से बढ़ कर 2035 में 67 लाख बैरल प्रतिदिन तक पहुंच जाएगा.

चीन की राष्ट्रीय तेल कंपनियां पहले ही इराक और ईरान में पैर जमा चुकी हैं, इसके अलावा चीन सऊदी अरब का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी और ईरान के कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार है. इस खरीदारी की ताकत ने चीन और दूसरी एशियाई ताकतों को यह तय करने का अधिकार दे दिया है कि ईरान पर अमेरिका और यूरोप के प्रतिबंध कितने सफल रहेंगे.

एनआर/एएम (रॉयटर्स)