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ममता ने बढ़ाई कांग्रेस और लेफ्ट की मुसीबत

३ जून २०१०

बंगाल में वामपंथियों के लाल किले की दीवारें पिछले साल लोकसभा चुनाव के समय ही दरक गई थीं, अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल समझे जाने वाले राज्य के शहरी निकाय चुनाव में ये दरारें और चौड़ी हो गई हैं.

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ममता बनर्जीतस्वीर: UNI

सबसे अहम समझे जाने वाले कोलकाता नगर निगम में अपने बूते बहुमत हासिल करने के साथ ही पार्टी इससे सटी विधाननगर नगरपालिका में अकेले दम पर बोर्ड बनाने की हालत में पहुंच गई है. इन दोनों नगरपालिकाओं पर वाममोर्चा का कब्जा था. इस सेमीफाइनल में बाजी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के हाथों रही है. तृणमूल कांग्रेस की इस जीत से अब वाममोर्चा के साथ ही तृणमूल की सहयोगी रही कांग्रेस की मुसीबतें भी बढ़ने का अंदेशा है. निकाय चुनाव के नतीजों से साफ है कि राज्य में बीते दो साल से चल रही बदलाव की बयार माकपा और उसकी अगुवाई वाले वाममोर्चा की तमाम कोशिशों के बावजूद थमती नहीं नजर आ रही है.

Indien Parlamentswahlen 2009 Der Ministerpräsident des indischen Bundesstaates West Bengal, Buddhadeb Bhattacharjee
बढ़ी बुद्धदेव की मुश्किलेंतस्वीर: UNI

सेमीफाइनल के इस प्रदर्शन से जहां फाइनल के लिए वाममोर्चा की पेशानी पर चिंता की लकीरें और गहरी हो गई हैं, वहीं इससे ममता की सहयोगी रही कांग्रेस की परेशानी भी बढ़ती नजर आ रही है. इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के साथ सीटों पर तालमेल नहीं होने की वजह से कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी थी. लेकिन उसके लचर प्रदर्शन से साफ हो गया है कि वह अकेले ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती. पर्यवेक्षकों की राय में अगर इन दोनों दलों के बीच तालमेल होता तो नतीजे और बेहतर हो सकते थे. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी ने कबूल किया है कि इस चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है. उन्होंने तृणमूल के शानदार प्रदर्शन के लिए ममता को बधाई दी है.

आखिर इन चुनावी नतीजों का अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर क्या और कितना असर हो सकता है. वामपंथियों की दलील है कि निकाय चुनावों का उस पर कोई असर नहीं होगा. दोनों चुनाव अलग हैं और उनके मुद्दे भी. लेकिन निकाय चुनाव के पहले भी वामपंथी यही दलील देते रहे थे कि बीते साल हुए लोकसभा चुनाव नतीजों का निकाय चुनावों पर कोई खास असर नहीं होगा. मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने चुनाव के ठीक पहले एक स्थानीय टीवी चैनल के साथ बातचीत में भी यही दावा किया था. लेकिन हुआ इसके उलट. लोकसभा चुनाव के समय विपक्ष ने वाममोर्चा के किले में जो सेंध लगाई थी वह इस चुनाव में और चौड़ी हो गई है. वैसे, इस चुनाव में राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर छींटाकशी के साथ ही मैदान में थी. आम लोगों से जुड़े नागरिक सुविधाओं के मुद्दे तो हाशिए पर थे. इससे साफ है कि लोगों ने मुद्दों के आधार पर नहीं, बल्कि बदलाव के पक्ष में वोट डाला है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीते कुछ चुनावों से राज्य में बदलाव की बयार साफ नजर आ रही है. लोकसभा और अब निकाय चुनाव के नतीजों से साफ है कि अगले साल विधानसभा चुनाव भी बदलाव की इस बयार से अछूते नहीं रहेंगे.

निकाय चुनाव के नतीजों के बाद माकपा ने अपनी भावी रणनीति पर गहन विचार-विमर्श शुरू कर दिया है. माकपा के एक नेता कहते हैं कि पहले तमाम जिलों से संगठन की रिपोर्ट मिल जाए. उसके बाद पार्टी हार की वजहों की समीक्षा कर उसमें सुधार की दिशा में ठोस पहल करेगी. चुनावी नतीजों के बाद अब राज्य में वाममोर्चा सरकार के इस्तीफे की मांग भी उठने लगी है. तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा है कि लोग राज्य में बदलाव चाहते हैं. इस करारी हार के बाद वाममोर्चा सरकार को अब सत्ता में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार को बिना देरी किए इस्तीफा दे देना चाहिए.

Der indische Finanzminister Pranab Mukherjee
प्रणब ने दी ममता को बधाईतस्वीर: UNI

अब रहा सवाल हाल तक तृणमूल की सहयोगी रही कांग्रेस का. चुनावी नतीजों का असर उस पर पड़ना लाजिमी है. ममता ने अपने अभियान के दौरान माकपा की कथित सहायता के लिए कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया था. अब कोलकाता और विधाननगर समेत कई नगरपालिकाओं में शानदार प्रदर्शन के बाद ममता कांग्रेस को तगड़ा जवाब दे सकती हैं. वे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से नाता तोड़ सकती हैं. ममता केंद्र में यूपीए सरकार पर दबाव बनाने का भी प्रयास करेंगी. इससे राज्य में कांग्रेस का नुकसान होगा. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी तो तृणमूल के साथ तालमेल के पक्ष में थे. लेकिन पार्टी के कई स्थानीय नेताओं की बगावत की वजह से ऐसा संभव नहीं हो सका. और जिन नेताओं ने बगावत करते हुए अपने बूते लड़ने का फैसला किया था उनका भी अपने इलाकों में प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा. ऐसे में चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को यहां बैकफुट पर धकेल दिया है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि निकाय चुनाव के नतीजे आने वाले दिनों में चौतरफा असर डाल सकते हैं. इसने वाममोर्चा के साथ ही कांग्रेस को भी अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करना पड़ सकता है. इन नतीजों का कितना और कैसा असर होगा, यह तो बाद में पता चलेगा. लेकिन अपने बूते पर ही यह सेमीफाइनल जीत कर ममता ने अगले साल होने वाले फाइनल से पहले वाम दलों के लिए खतरे की घंटी तो बजा ही दी है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा