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मरीजों को मिला मौत मांगने का हक़

२६ जून २०१०

जर्मन संघीय अदालत ने फ़ैसला सुनाया है कि इच्छा मृत्यु में मदद कुछ मामलों में वैध हो सकता है. यह फ़ैसला एक ऐसे मामले में सुनाया गया है जिसमें एक बेटी ने कोमा में पड़ी अपनी वृद्ध मां की खानेवाली नली को कोटने की कोशिश की थी

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मौत मांगने का हक़तस्वीर: picture alliance/dpa

जर्मनी में मौत में मदद ऐतिहासिक कारणों से संवेदनशील मुद्दा है. यूथेनेसिया शब्द का नाज़ियों ने बीमार और अपाहिज लोगों को बड़े पैमाने पर मारने के लिए दुरुपयोग किया था. जर्मनी में मरने में सक्रिय मदद यानि मरीज़ के चाहने पर दी गई सहायता प्रतिबंधित है. मौत में परोक्ष सहायता यानि जीवन को बढ़ाने वाले क़दमों को बंद करना बहस का मुद्दा है. शुक्रवार को संघीय अदालत ने इस पर फ़ैसला सुनाया

मुकदमे की वजह एक ऐसा मामला था जिसमें एक महिला पांच साल से कोमा में थी. उसने पहले यह मौखिक इच्छा जाहिर की थी कि यदि वह कोमा में जाती है तो उसका कृत्रिम आहार बंद कर दिया जाए और उसे सम्मानजनक मौत दी जाए. उसकी बेटी ने अपने वकील से सलाह ली जिसने उसे खाने की नली काट देने की सलाह दी, जो उसने किया भी. नर्सों ने इसे देख लिया और जल्द ही कार्रवाई की लेकिन उस महिला की उसके कुछ समय बाद हृदयगित रुकने से मौत हो गई..

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मौत मांगना जायज़तस्वीर: AP

मौत में मदद देने के आरोप से बेटी को पहले ही बरी कर दिया गया था. इस मुकदमे में वकील वोल्फ़गांग पुत्स के अपराध पर फ़ैसला होना था. सर्वोच्च अपराध न्यायालय को मरीज़ के आत्मनिर्णय के अधिकार और जीवनरक्षा के राज्य के कर्तव्य के बीच फ़ैसला लेना था. अदालत ने मेडिकल कानून के वकील को हत्या की कोशिश के आरोप से बरी कर दिया.

अदालत के फ़ैसले की नई बात यह है कि भविष्य में खाने की नली को काटना या सांस की नली को बंद करने जैसा सक्रिय क़दम एक वैध परोक्ष मदद हो सकता है यदि वह मरीज़ की इच्छा से किया जाए. संघीय अभियोक्ता कार्यालय की फ़्राउके-कातरीन शौएतेन का कहना है कि अदालत ने मरीज़ो के आत्मनिर्णय के हित में आधारभूत फैसला लिया है. इस फ़ैसले के बाद डॉक्टरों, नर्सों और मरीज़ों के संबंधियों को कानूनी सुरक्षा मिली है.

अदालत के फ़ैसले में नई बात यह भी है कि मृत्यु में सहायता तब भी संभव है जब मौत की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई हो. लेकिन इसकी शर्त यह है कि मरीज़ असाध्य रोग से पीड़ित हो और उसने मरने की इच्छा जाहिर की हो. आरोपी वकील वोल्फ़गांग पुत्स ने फ़ैसले पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि उनका संघर्ष इस बात के लिए था कि जीने के अंतिम पड़ाव में मरीज़ो के अधिकार का पूरी तरह पालन हो.

आत्महत्या में सक्रिय मदद जर्मनी में अभी भी अवैध है. किसी को चाहने पर भी इंजेक्शन देकर या किसी और तरह से मारना ग़ैरकानूनी है और उसके लिए पांच साल के क़ैद की सज़ा है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: एन रंजन