1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मसर्रत आलम की रिहाई से बैकफुट पर बीजेपी

९ मार्च २०१५

एक तरफ संसद में अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई पर हंगामा मचा तो दूसरी ओर सोशल मीडिया पर भी लोगों ने जमकर बीजेपी और पीडीपी गठबंधन की मजबूरियों पर प्रतिक्रियाएं दीं.

https://p.dw.com/p/1EnZY
Mufti Mohammed Sayeed
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Anand

पर्दे के पीछे चली तमाम जोड़ तोड़ के बाद कुछ ही हफ्ते पहले जम्मू कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन वाली सरकार बनने का रास्ता साफ हुआ. जम्मू कश्मीर राज्य में मिलीजुली सरकार बनाने की मशक्कत में मुख्य भूमिका निभाने वाले बीजेपी के राज्य प्रमुख और सांसद जुगल किशोर ने अलगाववादी नेता मसर्रत आलम की रिहाई पर बयान दिया है. किशोर ने कहा, "इस कदम को बीजेपी की अनुमति प्राप्त नहीं है. ना ही इस निर्णय के बारे में बीजेपी के साथ कोई चर्चा हुई थी." इस बात को भी साफ किया कि दोनों दलों के बीच तय हुए न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) में इस मुद्दे का कोई जिक्र नहीं था. सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाओं में साफ देखा जा सकता है कि कई लोग इसे गठबंधन की मजबूरी मान रहे हैं.

संसद में विपक्ष के तीखे आरोपों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि वह खुद इस "उल्लंघन" को अस्वीकार्य मानते हैं और इस मामले में जरूरी कार्रवाई करेंगे. संसद में हुई गहमागहमी के बाद पत्रकारों से बातचीत में पीडीपी ने अपनी दलील में कहा कि सब कुछ अदालत के आदेशानुसार ही हुआ है.

इधर संसद के भीतर बीजेपी के नेता कट्टरपंथी अलगाववादी नेता आलम की रिहाई के मुद्दे पर अनजान बने दिखे और वहीं दूसरी ओर विवादित बयानों के लिए मशहूर हो चुके उनके ही एक नेता साक्षी महाराज ने इस बार भी भड़काऊ बातें कहने में देर नहीं की.

ट्विटर पर कुछ लोग इस बात को भी उठा रहे हैं कि कहीं ना कहीं बीजेपी के सामने बिल्कुल फीकी पड़ चुकी कांग्रेस पार्टी को आलम की रिहाई से फिर प्रासंगिक बनने का एक मौका हाथ लगा है.

आलम की रिहाई की तुलना 2002 की घटना से भी की जा रही है. उस समय जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार थी. तब हुर्रियत नेताओं यासीन मलिक और सैयद अली शाह गिलानी को रिहा किया गया था.

आरआर/ओएसजे