1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

महिलाओं के आड़े आती हिंसा

१ मई २०१४

भारत में ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया में 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हिंसा के कारण राजनीति में नहीं आती हैं. महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों के आरक्षण की बहस के बावजूद ताजा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की संख्या बहुत कम है.

https://p.dw.com/p/1BrwR
तस्वीर: Reuters

संयुक्त राष्ट्र महिला तथा सेंटर फॉर सोशल रिसर्च (सीएसआर) ने राजनीति में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर किए गए अध्ययन में कहा गया है कि भारत में 45 प्रतिशत महिला प्रत्याशी शारीरिक हिंसा और धमकी की शिकार होती हैं जबकि पाकिस्तान में यह दर 21 प्रतिशत और नेपाल में 16 प्रतिशत है. भारत, नेपाल और पाकिस्तान में किए गए इस अध्ययन में कहा गया है कि इन तीनों देशों में महिला मतदाताओं और राजनीतिक दलों में महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत बढ़ा है लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक संस्थाओं में इनका प्रतिशत कम हुआ है.

भारत में पिछले पांच दशकों में महिलाओं को मतदान केंद्रों तक लाने में भारी सफलता मिली है. प्रति 1000 मतदाताओं पर महिला मतदाताओं का अनुपात 60 के दशक के 715 से बढ़ कर 883 हो गया है. लेकिन पुरुष प्रधान राजनीतिक दलों ने इससे कोई सबक नहीं सीखा है. सीएसआर की निदेशक रंजना कुमारी ने कहा कि राजनीतिक दलों में भी निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण निर्णयों में सीमित भूमिका होती है.

भारत में महिलाओं को शारीरिक हिंसा, गाली गलौज और हिंसा की धमकी का सामना करना पड़ता है जबकि पाकिस्तान और नेपाल में चरित्र हनन का खतरा अधिक है. हाल के चुनावों में अधिकांश महिलाओं ने चरित्र हनन और गाली गलौज का सामना किया है. इसके अलावा धमकी, अपहरण और हत्या हिंसा के कुछ अन्य रूप हैं.

इस अध्ययन में पाया गया कि राजनीति में आने के महिलाओं के अधिकार से उन्हें रोका जाता है. मतदान के अधिकार, चुनाव लड़ने तथा शिक्षा से भी उन्हें वंचित किया जाता है. अध्ययन में राजनीति में महिलाओं को बढ़ावा देने के लिए आरक्षण की सलाह दी गई है. इस अध्ययन का कहना है कि पारिवारिक संरचना के कारण महिलाओं के प्रति हिंसा ने संस्थागत रूप ले लिया है. इसमें सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था तथा सांस्कृतिक धार्मिक मान्यताओं को व्यापक बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया है जिसे अधिकांश लोग स्वीकार कर सकें.

भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी घोषणापत्र में महिलाओं के लिए संसद और विधान सभाओं में आरक्षण का समर्थन किया है और महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देने तथा आईटी क्षेत्र में उनके लिए नए रोजगार बनाने की बात कही है. महिलाओं के मुद्दों पर अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियों के रवैये को देखते हुए महिला कार्यकर्ताओं ने छह सूत्री 'महिलाफेस्टो' बनाया है जिसमें समानता को बढ़ावा देने वाली शिक्षा, कानून को कुशल बनाने और महिलाओं को ताकत देने की मांग की गई है. कांग्रेस, सीपीएम और तृणमूल ने इसका समर्थन किया है.

एमजे/एजेए (वार्ता)