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बेहतर हो महिलाओं की जेल

६ जनवरी २०१४

भारतीय राज्य केरल में महिला समिति ने महिला कैदियों की स्थिति में सुधार लाने की मांग की है. कैदियों में मानसिक बीमारियों की शिकायतें आने के बाद समिति ने राज्य सरकार से बेहतर सुविधाओं की सिफारिश की है.

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तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

केरल की जेल में महिलाओं की खराब स्थिति की पिछले दिनों कई शिकायतें आई हैं. समिति के सूत्रों का कहना है कि कई महिला कैदी मानसिक तनाव और बीमारियों से गुजर रही हैं. जेल में कठिन परिस्थितियों के बीच उनकी दिमागी हालत पर और बुरा असर पड़ रहा है.

जेल में सजा काट रही ज्यादातर वे महिलाएं हैं जो अनजाने में अपने पति के किए हुए अपराध में भागीदार बन गईं. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब इन औरतों पर मुकदमा चलता है और सजा मिलने पर इन्हें जेल भेजा जाता है तो उनके पति या परिवार का कोई और सदस्य उन्हें बेल पर छुड़ाने की कोशिश नहीं करता.

महिला समिति की अध्यक्ष केसी रोसाकुट्टी ने कहा कि इन औरतों के जेल से बाहर निकलने पर सबसे पहले इनके पुनर्वास पर ध्यान दिया जाएगा. जेल परिसर में मौजूद कई ऐसी औरतें भी हैं जिनकी सजा तो पूरी हो चुकी है लेकिन ऐसा लगता है उनमें किसी की अब कोई दिलचस्पी नहीं.

हाल में राज्य के सामाजिक न्याय विभाग में महिला समिति ने इन महिलाओं की स्थिति बेहतर करने की सिफारिश की है. इसमें उनके बच्चों की देखरेख के लिए उचित व्यवस्था की भी बात कही गई है, जिससे उनकी मानसिक हालत ठीक रह सके.

समिति ने जेल में रह रही महिलाओं के लिए व्यावसायिक ट्रेनिंग और पुनर्वास कार्यक्रमों की भी मांग की है. इसके अलावा उनकी मांग है कि गर्भवती कैदियों को पौष्टिक खाना मुहैया कराया जाए और जेल में मनोचिकित्सकीय मदद भी दी जाए.

महाराष्ट्र के पुणे शहर में यरवदा जेल एशिया की सबसे बड़ी जेलों में से एक मानी जाती है. यरवदा केंद्रीय जेल परिसर के बराबर में ही यरवदा का खुले मैदानों और खेतों का परिसर है. यहां कैदी खेतों में काम कर फल सब्जी उगाते हैं. यह भारत में महिलाओं के लिए पहली खुली जेल है. यरवदा केंद्रीय जेल में पांच साल अच्छे सलूक के साथ सजा काट चुके कैदियों को यहां के खुले जेल में रहने और खेतों में काम करने का मौका मिलता है. लेकिन पहले यह सुविधा केवल पुरुष कैदियों के लिए ही थी. हाल में यह सुविधा महिलाओं के लिए भी खोल दी गई है. यहां कैदी जेल में नहीं बल्कि सुरक्षाकर्मियों की नजर के सामने आम परिस्थितियों में रहते हैं. उन्हें उनके काम के बदले मेहनताना भी दिया जाता है.

इसके अलावा दिल्ली की तिहाड़ जेल में भी कैदियों के सुधार के कई कार्यक्रम मौजूद हैं. उन्हें तरह तरह के ट्रेनिंग कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रशिक्षण भी दिया जाता है. तिहाड़ के कैदियों के बनाए हुए नमकीन और बिस्कुट बाजार में भी बिकते हैं. इसके अलावा उनके लिए संगीत और खेलकूद के भी विविध आयोजन किए जाते हैं. हाल ही में तिहाड़ में कैदियों ने खुद अपना एफएम चैनल भी शुरू किया.

रिपोर्ट: समरा फातिमा (पीटीआई)

संपादन: महेश झा

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