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मिजोरम की अनूठी चुनावी तस्वीर

२० नवम्बर २०१३

देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उनमें पूर्वोत्तर भारत के पर्वतीय राज्य मिजोरम की तस्वीर अनूठी और दिलचस्प है. भले ही मुख्यधारा की मीडिया में उसे जगह नहीं मिल रही हो, वहां का चुनावी मॉडल आदर्श है.

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तस्वीर: ARINDAM DEY/AFP/Getty Images

राज्य में कहीं भी ज्यादा बैनर व पोस्टर नहीं नजर आते. चर्च वहां चुनावी भ्रष्टाचार पर कड़ी निगाह रखता है. चर्च का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन के बैनर तले ही तमाम राजनीतिक दलों की रैलियों का आयोजन किया जाता है. किसी भी चुनाव से पहले चर्च पार्टियों और उम्मीदवारों के लिए आचार संहिता तय कर देता है. यही वजह है कि राज्य में आचार संहिता के उल्लंघन के मामले नहीं के बराबर होते हैं. यहां 25 नवंबर को मतदान होने हैं.

गुमसुम प्रचार

मिजोरम की राजधानी आइजल में किसी भी पार्टी के ज्यादा चुनावी पोस्टर और बैनर नहीं आते. यहां चुनाव आयोग से ज्यादा असर मिजोरम पीपुल्स फोरम का है. यह राज्य के सबसे बड़े चर्च संगठन सीनॉड का प्रतिनिधि है. हर बार की तरह इस बार भी एमपीएफ ने उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के लिए 27 नियम बनाए हैं. फोरम की अनुमति के बिना कोई भी उम्मीदवार कहीं किसी रैली का आयोजन नहीं कर सकता. इन नियमों में से एक में राजनीतिक दलों से चुनावी घोषणापत्रों में कोरे वादों की बजाय ऐसी ठोस योजनाओं का जिक्र करने को कहा गया है जिन पर अमल करना संभव हो.

फोरम ने चेतावनी दी है कि अगर कोई राजनीतिक दल इन 27 में से किसी भी नियम का उल्लंघन करता है तो उसे अवैध घोषित किया जा सकता है. चुनाव आयोग भी एमपीएफ के दिशानिर्देशों का समर्थन करता है. मिजोरम के मुख्य चुनाव अधिकारी अश्विनी कुमार कहते हैं, "हमारा और एमपीएफ का मकसद समान है. वह है मुक्त व निष्पक्ष चुनाव." राज्य में कौन सी राजनीतिक पार्टी कब और कहां चुनावी रैली करेगी, यह फैसला भी एमपीएफ ही करता है. संगठन ने उम्मीदवारों के घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करने, सामुदायिक दावतों के आयोजन और प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के चरित्र पर अंगुली उठाने पर भी रोक लगा दी है.

Wahlen in Mazaram/Indien
तस्वीर: ARINDAM DEY/AFP/Getty Images

अलग मॉडल

राजनीतिक विश्लेषक वानलालुरेट कहते हैं, "यहां चुनावी माहौल देश के दूसरे हिस्सों से अलग होता है. राजधानी आइजल में भी ज्यादा शोरगुल नहीं दिखाई देता" उनका कहना सही है, राजधानी आइजल पहुंचने पर कहीं से नहीं लगता कि राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. कुछ लोगों को लगता है कि मिजोरम के चुनावी मॉडल को देश के दूसरे हिस्सों में लागू कर चुनाव खर्च को काफी कम किया जा सकता है. राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी अश्विनी कुमार को उम्मीद है कि इन चुनावों में होने वाला मतदान पड़ोसी त्रिपुरा के 90 प्रतिशत मतदान का रिकार्ड तोड़ देगा. वह कहते हैं, "राज्य का चुनावी माहौल देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले अलग होता है. यहां आचार संहिता के उल्लंघन के इक्का-दुक्का मामले ही होते हैं."

आइजल के पाछूंगा यूनिवर्सिटी कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर लालथालमुआना को नहीं लगता कि यह मॉडल दूसरे हिस्सों में प्रभावी होगा. वह कहते हैं, "किसी तटस्थ संगठन की देख-रेख में चलने वाले चुनाव अभियान का फायदा यह है कि मतदाताओं में पैसे बांटने के मामले सुनने को नहीं मिलते, लेकिन यह मॉडल दूसरे राज्यों में काम नहीं करेगा." वह कहते हैं कि राजनीति में धार्मिक संगठनों के हस्तक्षेप को दूसरे राज्यों में कोई भी राजनीतिक पार्टी स्वीकार नहीं करेगी.

शराब पर अंकुश

मिजोरम में वर्ष 1995 से ही शराबबंदी लागू है, लेकिन हर चुनाव में यहां शराब भी एक प्रमुख मुद्दा बनती रही है. उम्मीदवारों पर वोटरों को लुभाने के लिए शराब बांटने के आरोप लगते रहे हैं. शराबबंदी लागू होने के बाद पड़ोसी असम से चोरी-छिपे पहुंचने वाली शराब कई गुनी ऊंची कीमत पर बिकती है. इसके साथ ही राज्य के विभिन्न इलाकों में चोरी-छिपे कच्ची शराब बनाई जाती है. शराबबंदी वाले इस राज्य में शराब ही वोटरों को लुभाने का सबसे प्रमुख जरिया बन गई है. राज्य के आबकारी आयुक्त लालमुनसांगा कहते हैं, राज्य की सीमा पर निगरानी बढ़ा दी गई है ताकि बाहर से विदेशी शराब यहां नहीं पहुंच सके. हम चुनाव में शराब के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

कड़ा मुकाबला

मिजोरम में सत्तारुढ़ कांग्रेस दोबारा सत्ता में आने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है तो तीन पार्टियों का गठजोड़ उसे हटा कर सत्ता पर कब्जा जमाने का प्रयास कर रहा है. कांग्रेस सरकार के अगुवा ललथनहवला अपनी सरकार के कामकाज के सहारे वोट मांग रहे हैं जिसमें मिजोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), मिजोरम पीपुल्स कांफ्रेंस और मारालैंड डेमोक्रेटिक फ्रंट वाला मिजोरम डेमोक्रेटिक एलायंस स्थानीय मुद्दों को अपने एजेंडे में जगह देकर वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही है.मिजोरम के मध्य में स्थित सरचिप विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री के पद पर चार बार कार्यकाल पूरा कर चुके पीयू ललथनहवला एक बार फिर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इस बार उनको विपक्षी मिजोरम डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) के उम्मीदवार सी. लालरमजउवा से कड़ी टक्कर मिल रही है. ललथनहवला इस सीट से छह बार चुनाव जीत चुके हैं.

बेहतर उम्मीदवार

देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले इस पर्वतीय राज्य के उम्मीदवारों की प्रोफाइल बेहतर है. मिजोरम विधानसभा की 40 सीटों के लिए मैदान में उतरे 142 उम्मीदवारों में आधे से अधिक करोड़पति हैं. नेशनल इलेक्शन वाच की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक, 142 उम्मीदवारों में 75 (53 फीसदी) करोड़पति हैं. उनमें से हर उम्मीदवारों के पास औसतन 2.31 करोड़ रुपए की संपत्ति है. इनमें 68 प्रतिशत उम्मीदवार ग्रेजुएट हैं. सबसे अहम बात यह है कि सिर्फ तीन उम्मीदवारों के खिलाफ ही आपराधिक मामले दर्ज हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर, आइजल

संपादनः निखिल रंजन