1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मिला ऑटिज्म का इलाज

२६ अगस्त २०१४

अमेरिका में हर 68 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है. इस आनुवांशिक बीमारी का अब तक कोई इलाज नहीं है. लेकिन ताजा शोध ने उम्मीद की किरणें दिखाई हैं.

https://p.dw.com/p/1D189
Gesundheit Kinder mit Autismus
तस्वीर: picture alliance/AP Images

इंसानी दिमाग करोड़ों कोशिकाओं से मिल कर बना है. जानकारी का आदान प्रदान दिमाग की कोशिकाओं के जरिए ही होता है. यह किसी बिजली के नेटवर्क जैसा होता है जिसमें कई तारें लगी हों. कोशिकाओं के बीच सिनैप्स होते हैं जो इन्हें एक दूसरे से जोड़े रखते हैं. इन्हीं की मदद से कोशिकाएं जानकारी के सिग्नल भेज पाती हैं. वक्त के साथ साथ पुराने सिनैप्स मर जाते हैं और नए पैदा होते रहते हैं.

ताजा शोध में पता चला है कि जिन लोगों को ऑटिज्म होता है उनमें सामान्य की तुलना में अधिक सिनैप्स मौजूद होते हैं. लेकिन इसकी वजह यह नहीं है कि शरीर जरूरत से ज्यादा सिनैप्स बना रहा है, बल्कि शरीर की पुराने सिनैप्स से छुटकारा पाने की क्षमता कम होती है. इसलिए नए के साथ पुराने सिनैप्स भी दिमाग में रह जाते हैं. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया में रिसर्चरों ने पाया कि 19 साल के ऑटिस्टिक व्यक्ति के दिमाग में सामान्य व्यक्ति की तुलना में 41 फीसदी ज्यादा सिनैप्स मौजूद थे.

Flash-Galerie Gehirngrafik
इंसानी दिमाग किसी बिजली के नेटवर्क जैसा होता है.तस्वीर: Fotolia/psdesign1

वैज्ञानिकों ने चूहे पर शोध कर इस बात की पुष्टि की है. चूहे के आनुवांशिक ढांचे में बदलाव कर सिनैप्स हटाए गए. रिसर्चरों ने चूहों को रैपेमाइसिन दवा दी. इस दवा से शरीर में एमटोर नाम के प्रोटीन का बनना बंद हो जाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऑटिस्टिक लोगों में यह प्रोटीन अत्यंत सक्रिय होता है और दिमाग की सिनैप्स से छुटकारा पाने की क्षमता पर असर डालता है.

शोध में पाया गया कि दवा के कारण चूहों के रवैये में बदलाव आया. वे दूसरे चूहों से संपर्क साधने लगे, जो कि वे ऑटिज्म के कारण नहीं कर पा रहे थे. शोध करने वाले कोलंबिया यूनिवर्सिटी के न्यूरो बायोलॉजिस्ट डेविड सलसर का कहना है कि यह अहम है "क्योंकि ऑटिज्म के बारे में जन्म के वक्त पता नहीं चलता. बच्चा जब बड़ा होने लगता है तब पता चलता है कि उसे ऑटिज्म है. इसलिए जरूरी है कि ऐसा इलाज ढूंढा जाए जो बीमारी के पता चलने के काफी समय बाद भी काम आ सके."

हालांकि जिस दवा का इस्तेमाल चूहों पर किया गया उसके बारे में डॉक्टर सलसर का कहना है कि मौजूदा रूप में इस दवा को बच्चों को नहीं दिया जा सकता क्योंकि इससे उनके विकास पर असर पड़ सकता है. दवा पर अभी और शोध होने की जरूरत है.

आईबी/एमजे (एएफपी)