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क्यों सफेद होते हैं बाल

४ मार्च २०१६

वैज्ञानिकों ने यह गुत्थी सुलझा ली है कि आखिर हमारे बाल सफेद क्यों होते हैं. आईआरएफ4 नाम के एक ऐसे जीन के बारे में पता चला है ​जो बढ़ती उम्र के साथ बालों के रंग को बदलने के लिए जिम्मेदार है.

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Schöne Frau mit langen schwarzen Haaren
तस्वीर: Fotolia

सफेद होते बालों से अक्सर इंसान की बढ़ती समझदारी को भी जोड़ा जाता है. हालांकि इस शोध से यह तो नहीं पता चल सका है कि बालों के सफेद हो जाने का हमारी समझदारी से भी कोई रिश्ता है या नहीं, पर वैज्ञानिकों ने पहली बार उस जीन को जरूर खोज लिया है जिसके चलते बाल सफेद होते हैं.

पांच लैटिन अमेरिकी देशों के 6300 लोगों के डीएनए को इस अध्ययन में शामिल किया गया. इसके जरिए उस जीन का पता लगाने की कोशिश की गई थी जिसके चलते किसी व्यक्ति के बाल सफेद होते हैं. आईआरएफ4 नाम का यह जीन मेलेनिन को रोकने का काम करता है जिसकी वजह से बालों, त्वचा और यहां तक कि आंखों को भी रंग मिलता है.

यूनिवर्सिटी कॉलेज औफ लंदन के एंड्रेस रूइज लिनारेस भी इसी शोध टीम का हिस्सा हैं. नेचर कम्यूनिकेशन नाम की एक पत्रिका में वे कहते हैं कि एक खास प्रकार के ​जीन वाले लोगों के बाल ज्यादा जल्दी सफेद हो जाते हैं. हालांकि उन्होंने लिखा है कि बालों का सफेद होना केवल जेनिटिक्स के चलते नहीं है, ​बल्कि तनाव या किसी किस्म के सदमे के हालात और एसे कई और भी कारक इसमें शामिल होते हैं. वे बताते हैं कि यह इंसानी बालों के सफेद होने पर हुआ अब तक का पहला शोध है.

अब डाई की जरूरत नहीं

लोग अपने सफेद बालों को रंगवा कर पहले की तरह बनाने में बेतहाशा पैसा खर्च करते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस जीन के बारे में जानकारी मिलने के बाद ऐसे तरीकों का पता लगाया जा सकता है जिससे बालों को या तो सफेद होने से रोका जा सके या सफेद हो गए बालों को वापस पुराने रंग में ही लाया जा सके.

लिनारेस कहते हैं, ''​अगर किसी दवा के जरिए मेलेनिन के उत्पादन को सुचारू किया जा सके तो इससे सफेद बालों को रंगने की जरूरत नहीं रह जाएगी. निश्चित रूप से इस दिशा में शोध को आगे बढ़ाने लायक अवसर मिला है.''

शोधकर्ताओं ने इस शोध के लिए पांच देशों, ब्राजील, कोलंबिया, चिली, मैक्सिको और पेरू से यूरोपीय, अमेरिकी और अफ्रीकी मूल के पुरूषों और महिलाओं की जेनेटिक सूचनाओं को जमा किया. लिनारेस बताते हैं कि यूरोपीय लोगों के बाल औरों की तुलना में जल्दी सफेद होने लगते हैं.

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रेडफोर्ड में पिगमेंटेशन बायोलॉजिस्ट डेसमंड टोबिन भी इस शोध से जुड़े हैं. उनका मानना है, ''निजी तौर पर मेरी बालों के सफेद होने को लेकर कोई खास राय नहीं है, लेकिन बढ़ती उम्र के अध्ययन के लिहाज से यह रोचक है.'' इसके साथ ही इस अध्ययन के जरिए बालों के घुंघरालेपन, दाढ़ी की मोटाई, भौंहों की मोटाई जैसे बालों से जुड़े कई जीन्स के बारे में भी जानकारी मिली है.

आरजे/आईबी (रॉयटर्स)