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मिस्र करेगा दो द्वीपों को सऊदी अरब के हवाले

१२ अप्रैल २०१६

सऊदी किंग सलमान के पांच दिन के मिस्र दौरे के दौरान ही मिस्र सरकार ने लाल सागर के अपने दो द्वीप सऊदी अरब को सौंपने की घोषणा की. इस फैसले पर सोशल मीडिया में मिस्र के कई लोगों ने कड़ी नाराजगी जताई है.

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Abdel Fattah al-Sisi King Salman Saudi Arabien Kairo Ägypten
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Egyptian Presidency

शनिवार को जारी एक बयान में मिस्र की सरकार ने बताया कि सऊदी अरब के साथ उन्होंने मैरीटाइम डिमार्केशन एकॉर्ड पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत मिस्र के दो द्वीप तिरान और सनाफिर सऊदी अरब की जलसीमा में पड़ते हैं. सरकारी बयान में कहा गया कि इस एकॉर्ड की प्रक्रिया पूरा होने में छह साल का समय लगा है.

दोनों पक्षों ने माना है कि यह द्वीप असल में सऊदी अरब के ही थे लेकिन अब तक मिस्र के अधिकार क्षेत्र में इसलिए रहे क्योंकि सऊदी अरब के संस्थापक अब्दुलअजीज अल सऊद ने 1950 में उसे सुरक्षित रखने के लिए मिस्र को सौंपा था.

बहाली के लिए अभी यह एकॉर्ड मिस्र की संसद में पेश होना है. मिस्र के लोगों में इस बात को लेकर काफी गुस्सा है. अपने द्वीप को बेच देने का आरोप लगाते हुए कई मिस्रवासियों ने सोशल मीडिया पर टिप्पणियां कीं और सरकारी घोषणा के बाद से ही यह मुद्दा छाया रहा. 30 सालों से मिस्र में राज कर रहे शासक होस्नी मुबारक के खिलाफ 2011 में उठ खड़ी हुई मिस्र की जनता तबसे लेकर अब तक आर्थिक मोर्चे पर संघर्षरत है.

2013 में अब्देल फतेह अल-सीसी के राष्ट्रपति बनने के बाद से सऊदी अरब ने मिस्र को अरबों डॉलर की मदद दी है. सऊदी अरब मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड का विरोधी रहा है, जिन्होंने 2011 की क्रांति के बाद जनता द्वारा चुनी हुई सरकार बनाई थी और मोहम्मद मुर्सी को अपना राष्ट्रपति चुना था. 2013 में ही मुस्लिम ब्रदरहुड को बैन कर दिया गया.

मिस्र के कई लोगों ने अपने द्वीपों को बेचे जाने का संदेह जताया है. कई नेताओं का मजाक उड़ाने के बाद देश छोड़ चुके मिस्र के एक कॉमिडियन बासेम युसुफ ने ट्विटर पर सीसी की तुलना बाजार के एक व्यापारी से की है, जो अपने देश और उसकी विरासत को बेचने पर आमादा है.

हालांकि मिस्र की अदालतों में इस एकॉर्ड की कानूनी मान्यता को चुनौती दी जा रही है. ऐसे मामलों की सुनवाई 17 मई को होनी है. अब तक जनता का व्यापक समर्थन पाने वाले अल सीसी द्वीपों के हस्तांतरण के मुद्दे पर दबाव में दिखते हैं. फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइटों पर ही नहीं, सरकारी कार्यालय के बाहर इस फैसले के विरोध में प्रदर्शन कर रहे कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई, हालांकि बाद में उन्हें छोड़ दिया गया.

आरपी/आईबी (रॉयटर्स)