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मिस्र के वोटरों में उत्साह नहीं

२८ मई २०१४

बरसों तक फौजी राष्ट्रपति के हवाले रहा मिस्र सिर्फ डेढ़ साल के लोकतंत्र के बाद फिर से वही राह ले रहा है. पूर्व सेना प्रमुख मैदान में हैं और उनके मुकाबिल टिक नहीं पा रहे. लेकिन मिस्र की जनता अब वोट से ही बेजार हो गई है.

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Ägypten Präsidentschaftswahlen 2014 Wahllokal
तस्वीर: DW/Mostafa Hashem

चुनाव के लिए तय दो दिनों में वोटिंग का प्रतिशत इतना कम रहा कि वोटिंग की मियाद तीसरे दिन के लिए बढ़ा दी गई. नतीजों से पहले ही इस बात के अनुमान लगाए जा रहे हैं कि पूर्व सेना प्रमुख अब्दुल फतह अल सिसी की जीत में कोई शक नहीं है. सिसी के अलावा राष्ट्रपति पद के इकलौते उम्मीदवार हमदीन सबाही ने तीसरे दिन वोटिंग कराए जाने के फैसले के विरोध में सभी पोलिंग स्टेशनों से अपने एजेंट हटा लिए हैं. लेकिन दिलचस्प बात यह रही कि तीसरे दिन भी लोग वोट देने नहीं पहुंचे.

वोट तलाशता राष्ट्र

सिसी का सीधा मुकाबला मुस्लिम ब्रदरहुड से है, जिसके राष्ट्रपति मुर्सी इन दिनों जेल में हैं. पिछले साल मिस्र की सेना ने मुर्सी को पद से हटा दिया था. सिसी को सेना का समर्थन प्राप्त है और अरब देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश में उनकी जीत को लेकर किसी को ज्यादा शक नहीं है. हालांकि वोटिंग का तरीका चौंकाने वाला रहा. निजी अखबार अल मिस्री अल यौम ने हेडिंग लगाई, "राष्ट्र एक वोट तलाश रहा है".

Wahlen in Ägypten Wahlbeobachter Maged Sorour
सिसी के नाम का पोस्टरतस्वीर: DW/A. Wael

अगर तीसरे दिन भी वोटर नहीं पहुंचे, तो यह फैसला एक महान राजनीतिक भूल साबित होगा. राजधानी काहिरा के शुबरा इलाके के पोलिंग बूथ में 6200 वोटरों के नाम हैं और बुधवार को मतदान शुरू होने के घंटों बाद वहां सन्नाटा पसरा रहा.

क्यों डालूं वोट

काहिरा में ही पॉश जमालेक इलाके में एक रईस के ड्राइवर 60 साल के रशद जैदान कहते हैं, "लोग कह रहे हैं कि वोटिंग का फायदा ही क्या है. मुझे पता है कि मेरे मत से कोई फर्क नहीं पड़ता है, इसलिए मैं वोट नहीं डाल रहा हूं."

सिसी ने अभी तक नहीं बताया है कि वह मिस्र की समस्याओं का हल कैसे करेंगे, जहां गरीबी से लेकर बिजली संकट और इस्लामी उग्रवाद पनप रहा है. पिछले चुनाव में जहां मुर्सी के खिलाफ दर्जन भर उम्मीदवार थे, सिसी के खिलाफ सिर्फ एक उम्मीदवार, वामपंथी विचारधारा के सबाही मैदान में हैं.

सारे प्रयास नाकाम

सबाही के अलावा मिस्र के आम लोग भी मान रहे हैं कि चुनाव का वक्त बढ़ाने से कोई खास फायदा नहीं होगा. युवा वकील 24 साल के हुसैन हसनैन का कहना है, "वे कह रहे थे कि लाखों लोग वोट देने आ रहे हैं. मैं उन्हें देखने पहुंचा लेकिन यहां कोई नहीं दिखा. सिर्फ दो लोग दिखे और चुनाव अधिकारी दिखा." हसनैन मौजूदा राजनीतिक स्थिति से नाराज हैं, "मैं किसी को वोट नहीं दूंगा. दोनों फर्जी हैं. हमें पता है कि सिसी जीतने वाले हैं. आप बताइए, मैं किसे वोट दूं."

Ägypten Fajum unbesuchtes Wahllokal
खाली खाली पोलिंग स्टेशनतस्वीर: DW/M. Symank

मंगलवार को भी काहिरा में पोलिंग स्टेशनों के बाहर छोटी छोटी लाइनें लगी थीं. कहीं कहीं तो एक भी वोटर नहीं थे. हालांकि इसके लिए मंगलवार को छुट्टी भी घोषित कर दी गई थी. न्याय मंत्रालय ने कहा है कि जो लोग वोट नहीं डालेंगे, उन पर जुर्माना लगाया जाएगा. यहां तक कि सरकारी मीडिया भी नागरिकों को जबरन वोटिंग के लिए उकसा रहा है. एक प्रमुख टीवी पत्रकार ने कहा कि जिन लोगों ने वोट नहीं किया है, वे "धोखेबाज, धोखेबाज, धोखेबाज" हैं. देश की प्रमुख इस्लामी और ईसाई संस्थाओं ने भी लोगों से वोटिंग की अपील की है.

जब 2012 में चुनाव हुए तो लगभग 52 फीसदी लोगों ने वोट दिया था. सिसी ने दावा किया था कि इस बार 80 फीसदी लोग वोट डालेंगे. काहिरा यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर हसन नाफा का कहना है कि सिसी ने लोगों को गलत तरीके से परखा.

सिसी के समर्थकों का कहना है कि तीन साल से संकट झेल रहे देश को सिसी ही बाहर निकाल सकते हैं. लेकिन इस्लामी संगठनों का कहना है कि सिसी ने देश में खूनी तख्ता पलट किया है, जिसके बाद "होस्नी मुबारक को सत्ता से हटाने का अभियान बेकार" हो गया.

एजेए/एमजी (रॉयटर्स, डीपीए)