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मुझे सब है पता मेरी मां...

२६ सितम्बर २०१०

करियर को लेकर बच्चों और पैरेंट्स का रिश्ता अब बदल रहा है. अब अपने कारियर का तानाबाना बच्चे खुद बुनते हैं और माता पिता उन पर अपने सपने थोपने के बजाय बस निर्देशक की भूमिका में रहते हैं.

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तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press

पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा, बेटा हमारा ऐसा काम करेगा, मगर ये तो कोई न जाने मेरी मंजिल है कहां...

गुजरे जमाने का यह गाना सुनकर बड़ी हुई पीढ़ी अब अपने बच्चों का करियर संवारने में मददगार की भूमिका निभाती दिख रही है. फौरी तौर पर कहा जा सकता है कि समय के साथ पैरेंट्स की सोच में बदलाव तो आया है. कहना गलत न होगा कि इस बदलाव का फायदा उठाकर करियर की उड़ान को मंजिल तक पंहुचाने की जद्दोजेहद में जुटी युवा पीढ़ी के सपनों का दायरा भी बड़ा हुआ है. अब अपने करियर का खुद तानाबाना बुनते बच्चे डॉक्टर इंजीनियर से इतर खेल, डांस, म्यूजिक, पत्रकारिता और यहां तक कि समाज सेवा में भी भावी भविष्य की तस्वीर बना रहे हैं.

कैसे यह सब होता दिख रहा है और आखिर वह क्या बात है जिसके कारण अभिभावक यह सोचने लगे हैं कि बच्चों पर अपनी मर्जी का बोझ लादना सही नहीं है. जानते हैं दिल्ली के मोहित सिंहल से जो कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई के साथ उम्दा क्रिकेटर बनने के लिए भी जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. इस बदलाव के लिए वह काफी हद तक टीवी को जिम्मेदार मानते हैं. दिल्ली की क्रिकेट टीम से अंडर 16 में नेशनल लेवल पर खेल चुके मोहित कहते हैं, "हालांकि पेरेंट्स की सोच में पूरी तरह से बदलाव तो नहीं आया है लेकिन फिर भी काफी बदलाव हुआ है. आजकल एंटरटेनमेंट चैनल डांस म्यूजिक जैसे हर तरह के प्रोग्राम पर बच्चों के टेलेंट को आगे ला रहा है जिससे टेलेंट को बहुत बढ़ावा मिलता है. पैरेंटस के अलावा मीडिया के सपोर्ट से बच्चों को अपना हुनर दिखाने का पूरा मौका मिल रहा है."

एक समय था जब मां बाप के सपने अपने लाडले को इंजीनियर, डॉक्टर और आईएएस बनाने तक ही सीमित रहते थे. लेकिन ग्लोबलाइजेशन की हवा ने पैरेन्ट्स की सोच को बदल दिया. अब वे करियर बनाने में अपने बच्चों के मददगार की भूमिका में आ रहे हैं. मोहित के पिता विजय सिंहल का मानना है, "मां बाप को बच्चों की इच्छाओं को आगे बढ़ाना चाहिए. अगर पैरेंट्स अपनी मर्जी बच्चों पर लादेंगे तो इससे ना वे अपनी तमन्ना पूरी कर पाएंगे और ना ही पैरेंट्स की. इसलिए बच्चों को प्रोत्साहित करो."

हालांकि यहां एक सवाल यह भी उठता है कि क्या बच्चों का नाजुक दिमाग इतना बड़ा फैसला कर सकता है कि उन्हें क्या बनना है और उनका फैसला सही है या नहीं. लंदन से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहीं काव्या कौशिक का कहना है कि अगर माता पिता की सोच में बदलाव आया है तो बच्चों को भी सामंजस्य से काम करना चाहिए. काव्या कहती हैं, "बेशक सोच में बदलाव आया है और यह अच्छे के लिए ही आया है. अब पैरेंट्स समझ रहे हैं कि हर बच्चा अलग होता है इसलिए उसके साथ अलग बर्ताव की जरूरत होती है."

काव्या के पिता मुकेश कौशिक पेशे से पत्रकार हैं और इस बारे में किसी भी तरह के टकराव से बचने के हिमायती हैं. ऐसी हालत में माकूल सलाह मशविरे के लिए करियर कांउसिलर की बेहिचक मदद लेने के बारे में वह कहते हैं, "दुविधा की स्थिति में कांउसिलर की सलाह लेनी चाहिए. इससे नये रास्ते मिलते हैं और बच्चों को भी फायदा होगा."

कांउसलिंग से बच्चे और माता पिता के ऊपर पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक असर भी एक बड़ा सवाल है. खासतौर से बच्चों के ऊपर. कहीं उनके मन में सही फैसला न कर पाने की कुंठा घर न कर जाए, मनोचिकित्सक डॉ. विवेक समय पर दुविधा का निदान करने के लिए कांउसिलर की मदद को सही मानते हैं. वह कहते हैं, "पुरानी कहावत है कि जो अपनी रूचि का काम करता है सही मायने में वह अपने काम को करता नहीं बल्कि उसे जीता है. ऐसा न होने पर व्यक्ति अपने काम को ढोता है."

बेशक बच्चे देश और दुनिया का भविष्य होते हैं और इसे संवारने में मदद के लिए उठे पैरेंट्स के हाथ एक नई उम्मीद पैदा करते हैं. यह उन लोगों के लिए सबक भी है जो अब भी बच्चों पर अपनी मर्जी थोपने से बाज नहीं आ रहे हैं.

रिपोर्टः निर्मल

संपादनः वी कुमार

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