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मुर्सी पर बंटा मिस्र

३ दिसम्बर २०१२

मिस्र के जजों ने कहा है कि वह देश का संविधान बनाने वाले जनमत संग्रह पर नजर नहीं रखेंगे. देश के राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी के अपनी ताकत बढ़ा लेने के विरोध में यह नया कदम है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

मिस्र की न्यायपालिका के जनमत संग्रह को बायकॉट करने के बाद देश के जजों का प्रतिनिधित्व करने वाली नेशनल असोसिएशन और उसकी प्रांतीय शाखाओं में आपात बैठक हुई. जज क्लब के अध्यक्ष अहमद अल जिंद ने कहा, "मिस्र के सभी जजों ने और राजधानी के बाहर जज क्लब ने सहमति दी है कि वह संविधान के मसौदे पर जनमत संग्रह की निगरानी नहीं करेंगे. यह विरोध संवैधानिक डिक्री के जवाब में है. हम तब तक बहिष्कार करेंगे जब तक डिक्री निरस्त नहीं कर दी जाती."

मिस्र में न्यायपालिका सामान्य तौर पर चुनावों पर निगरानी रखती है. कानूनी मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि 15 दिसंबर को संविधान के मसौदे पर होने वाला जनमत संग्रह अगर बिना निगरानी के होता है तो उसे अवैध करार दिया जा सकता है. इससे पहले जज अनिश्चित काल तक के लिए अपना काम स्थगित करने की घोषणा कर चुके हैं.

Ägypten Kairo Demonstration Mursi Anhänger
मुर्सी समर्थक शरीफ अब्द एल वहाबतस्वीर: Matthias Sailer

सप्ताहांत में मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी के खिलाफ और उनके समर्थन में प्रदर्शन हुए. मिस्र के लोगों के सामने एक जटिल फैसला है- या तो वह संविधान के मसौदे का समर्थन करें या फिर पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरू करें. मिस्र में एक ओर इस्लामिस्ट हैं तो दूसरी ओर उदारवादी और धर्मनिरपेक्ष पार्टियां हैं. दोनों के बीच मतभेद कम नहीं हो रहा. पहले तो गैर इस्लामी पार्टियों ने दो बड़े विरोध प्रदर्शन किए, तो शनिवार को मुस्लिम ब्रदरहुड और सलाफियों ने अपनी ताकत दिखाई.

काहिरा की सड़कों पर राष्ट्रपति मुर्सी और उनकी विवादास्पद डिक्री के समर्थन हजारों प्रदर्शनकारी उतरे. सरकारी टीवी ने इसे दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

इस दौरान पार्क की हुई खाली बसों को देखकर इसमें कोई शंका नहीं थी कि प्रदर्शन करने वाले काहिरा के नहीं थे. बल्कि उन्हें मिस्र के अलग अलग हिस्सों से वहां लाया गया था. प्रदर्शन के बाद बसें चली गईं. ऐलैक्सैंड्रिया से आने वाले 60 साल के शरीफ अब्द एल वहाब ने कहा, "मैं आज यहां देश और चुने हुए राष्ट्रपति का समर्थन करने आया हूं. तहरीर चौक पर जमा लोग संसद भंग करना चाहते थे और अब वह संवैधानिक सभा भंग करना चाहते हैं. वह हमारे देश को नष्ट करना चाहते हैं."

Ägypten Kairo Demonstration Mursi Anhänger
मिस्र के अलग अलग हिस्सों से लाए गए मुर्सी समर्थकतस्वीर: AP

संविधान के मसौदे पर जनमत संग्रह की एक ओर तो समर्थक उनकी वाहवाही कर रहे थे वहीं तहरीर चौक से कुछ दूर विरोध प्रदर्शनकारियों ने जूते हाथ में ले रखे थे.

राष्ट्रपति की दोहरी चाल

मुर्सी के भाषण में भी परस्पर विरोधी बातें दिखाई थी. अपने भाषण में उन्होंने राष्ट्रीय संवाद की अपील की लेकिन जिस तरह इस्लामिस्टों ने संविधान का मसौदा आगे बढ़ाया उसमें संवाद जैसा कुछ भी नहीं था. करीब करीब सभी निरपेक्ष धड़ों ने इस मसौदे का विरोध किया था.

मुर्सी ने न्यायपालिका के प्रति आदर जताया लेकिन उसके अधिकारों को खत्म करने वाला आदेश भी इस्तेमाल किया. आखिरकार राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि संविधान अभिव्यक्ति की आजादी और धर्म को मानने की स्वतंत्रता की गारंटी देगा. लेकिन संविधान के मसौदे में ये दोनों ही मूल अधिकार सीमित कर दिए गए हैं.

लेकिन मुर्सी का समर्थन करने वालों के लिए संविधान आदर्श है. 30 साल के मुस्तफा कहते हैं, "मेरे लिए महत्वपूर्ण है कि शरिया कानून देश में लागू हो. मैं इसके लिए वोट नहीं करूंगा. उदारवादी और सेक्युलर धड़े संवैधानिक सभा में थे लेकिन संविधान पास होने से पहले ही वह चले गए. वे नहीं चाहते कि देश में संविधान बने."

विभाजित लोग दो सप्ताह में तय करेंगे कि यह मसौदा मिस्र का संविधान बनेगा या नहीं. और अभी यह कहना मुश्किल है कि मतदान किस ओर जाएगा. मुस्लिम ब्रदरहुड के मुताबिक मसौदे के पारित होने पर स्थिरता होगी और मुर्सी को तानाशाह बनाने वाली ताकतें खत्म हो जाएंगी. अगर लोग इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करते तो एक नई संवैधानिक सभा बनेगी और उन्हें दूसरा मसौदा पेश करना होगा. नतीजा आने वाले कुछ और महीनों की असुरक्षा.

मुश्किल विकल्प

क्रांति से थके मिस्र के लोगों के लिए कोई आसान विकल्प नहीं है. उससे भी बड़ी बात कि अधिकतर लोगों को वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी ही नहीं है. शरीफ अब्द एल वहाब कहते हैं, "संविधान बहुत ही बढ़िया है, सच में. इसमें सब कुछ है. अल्पसंख्यकों को भी पूरे अधिकार दिए गए हैं, खासकर ईसाइयों को."

लेकिन अल्पसंख्यक, जिसमें शिया मुस्लिम भी शामिल है, उनके साथ संविधान के मसौदे में काफी भेदभाव है. विरोध के तौर पर संवैधानिक सभा से ईसाई लोगों ने भी अपने प्रतिनिधियों को हटा लिया है. अब बिना न्यायपालिका की निगरानी के जनमत संग्रह कैसे होता है यह देखने वाली बात है. जज वैसे भी हड़ताल पर हैं.

रिपोर्टः माथियास सेलर/आभा मोंढे

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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