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मुश्किल में फंसे मुर्सी भारत पहुंचे

१८ मार्च २०१३

मिस्र के राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी पाकिस्तानी राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद नई दिल्ली पहुंचे. मुर्सी का ध्यान भारत के साथ कारोबार बढ़ाने पर है. भारत मिस्र के करीब तो आना चाहता हैं लेकिन उसके मन में कुछ शंकाएं भी हैं.

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तस्वीर: AP

इस्लामाबाद में मुर्सी का स्वागत पाकिस्तान की सेना ने गार्ड ऑफ ऑनर से किया. हवाई अड्डे से मुर्सी सीधे पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पास पहुंचे. दोनों नेताओं के बीच सीरिया पर भी चर्चा हुई. जरदारी ने मुर्सी से कहा कि वे सीरिया में हो रहे खूनखराबे को रोकने व समाधान निकालने की पहल करें.

मुर्सी को बीते साल नवंबर में पाकिस्तान जाना था लेकिन इस्राएल और गजा पट्टी के संकट की वजह से वह इस्लामिक कांफ्रेंस में शामिल न हो सके. सोमवार को जरदारी से मुलाकात के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, "राष्ट्रपति मुर्सी का दक्षिण एशिया की पहली यात्रा के लिए पाकिस्तान को चुनना दर्शाता है कि मिस्र पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय रिश्तों में नए अध्याय जोड़ना चाहता है."

1960 के दशक के बाद वह मिस्र के पहले राष्ट्रपति हैं जो पाकिस्तान गए हैं. मुर्सी से पहले स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण करने वाले मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासेर ने पाकिस्तान का दौरा किया था. दोनों देशों के बीच जहाजरानी कारोबार, निवेश, आईटी, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर समझौते हुए हैं.

भारत से उम्मीदें

पाकिस्तान के बाद मुर्सी सोमवार रात भारत पहुंच रहे हैं. कहा जा रहा है कि मिस्र की ढीली पड़ती अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए मुर्सी भारत से भी सहयोग की अपील करेंगे. वह भारतीय कारोबारियों को मिस्र में निवेश के लिए रजामंद करने की कोशिश करेंगे और द्विपक्षीय कारोबार को बढ़ाने पर भी जोर देंगे.

इस वक्त भारत की 320 कंपनियां मिस्र में कारोबार कर रही हैं. नई दिल्ली को उम्मीद है कि मुर्सी राजनीतिक उठापटक को शांत करेंगे ताकि कारोबार के लिए बेहतर माहौल बने. भारत को विदेशों में नए बाजार की जरूरत है. वैश्विक मंच पर भारतीय कंपनियों को चीन, ब्राजील और पश्चिम की कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा मिल रही है. ऐसे में मिस्र भारत के लिए सुरक्षित बाजार हो सकता है. काहिरा में तैनात भारत के राजदूत नवदीप सूरी कहते हैं, "मिस्र के साथ हमारा कारोबार बीते तीन साल में तेजी से बढ़ा है. मिस्र अब भारत का सातवां बड़ा व्यापार सहयोगी है. हमारे बीच अंतरिक्ष, तकनीक और सहयोग पर बात हो रही है. इस दौरे पर खास तौर से मिस्र का उपग्रह छोड़ने पर चर्चा होगी."

Manmohan Singh
तस्वीर: AP

दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में सेंट्रल एंड वेस्ट एशिया स्टडीज के प्रोफेसर कमर आगा कहते हैं, "मिस्र अलग थलग पड़ चुका है. मुर्सी उसे खत्म करना चाहते हैं. उनका मानना है कि ब्रिक देशों के साथ रिश्ते होना बहुत जरूरी है. मिस्र के आर्थिक हालात बहुत खराब हैं, ऐसे में उन्हें लगता है कि इन देशों से कुछ मदद मिल सकती है. मिस्र के अंदर बहुत गहरा संकट है. पर्यटन आय का मुख्य जरिया था, वो करीब करीब ठप पड़ चुका है. स्वेज नहर से भी इतना राजस्व नहीं आता. तेल भी उनके पास बहुत ज्यादा नहीं है. "

पंडित जवाहरलाल नेहरू के जमाने तक मिस्र और भारत बढ़िया दोस्त थे. नेहरू और नासेर ने साथ मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत की. 1970 में नासेर के निधन के बाद अनवर सदात मिस्र के राष्ट्रपति बने. तब भी रिश्ते बढ़िया रहे. लेकिन 1981 में सदात की हत्या के बाद होस्नी मुबारक ने सत्ता पर कब्जा किया. कश्मीर जैसे मुद्दे पर मिस्र के रुख से नई दिल्ली को निराशा हुई. धीरे धीरे रिश्ते ठंडे पड़ते गए. मुबारक ने सऊदी अरब और पाकिस्तान के अलावा बाकी एशिया की भी अनदेखी की.

भरोसे की कमी

तीन दशक की यह अनदेखी अच्छे रिश्ते में बदल पाएगी, प्रोफेसर आगा को इस पर शक है, "दोनों देशों में विश्वास की कमी है. मैं नहीं समझता कि हम लोगों के बहुत अच्छे रिश्ते हो पाएंगे मुर्सी के साथ. भारत में बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं. मुर्सी मुस्लिम ब्रदरहुड के करीबी हैं. उनके लोग मिस्र में शरिया कानून की बात करते हैं. भारत को धर्म के नाम पर कट्टर देशों के साथ आगे बढ़ने में मुश्किलें होती हैं. इसी वजह से ईरान से भी हमारे राजनीतिक रिश्ते नहीं बन पाए. सऊदी अरब, खाड़ी के देश और अन्य देशों से भी हमारे कारोबारी रिश्ते तो हैं लेकिन राजनीतिक रिश्ते नहीं बन पाए."

मुर्सी का दक्षिण एशिया दौरा ऐसे वक्त में हो रहा है जब वे पश्चिमी देशों को बहुत ज्यादा नहीं लुभा पा रहे हैं. बीते साल अपने लिए कई विशेषाधिकार लेकर विवाद मोल लेने वाले मुर्सी कहीं न कहीं खुद की वैधता भी साबित करना चाह रहे हैं. प्रोफेसर आगा कहते हैं, "मुर्सी भले ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी अच्छी छवि बनाने की कोशिश कर रहे हों लेकिन उनकी जो पार्टी है, उसकी वचनबद्धता न तो लोकतंत्र में है. न ही उनकी पार्टी धर्मनिरेक्षता के प्रति वचनबद्ध है. वो एक इस्लामी राज्य बनाना चाहते हैं, शरिया कानून लागू करना चाहते है. इसी में मुर्सी का समय गुजर रहा है. वहां की जनता धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की उम्मीद कर रही थी. एक आधुनिक देश बनाना चाहती है. इसके लिए मुर्सी भारत और एशिया और अफ्रीका के दूसरे उभरते देशों से अच्छे रिश्ते बनाना चाहते हैं, आर्थिक रिश्ते, राजनीतिक रिश्ते. मुर्सी की कोशिश है कि वे दूसरे गैर मुस्लिम देशों से हाथ मिलाएं. मिस्र को सऊदी अरब की छाया से बाहर निकालें."

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी (एएफपी)

संपादन: महेश झा

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