मुसलमान इस्लाम के सच्चे संदेश को मानें: मलाला
२० अक्टूबर २०१६पाकिस्तान की 19 साल की मलाला यूसुफजई ने संयुक्त अरब अमीरात के शहर शारजा में "मध्य पूर्व में महिलाओं का भविष्य" विषय पर दिए एक भाषण में ये बातें कहीं. उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र में बमबारी और हमलों को रोके बिना हम अपने भविष्य की बात नहीं कर सकते. हम ये नहीं भूल सकते हैं कि इन लड़ाइयों के चलते जिन लोगों को सबसे ज्यादा पीड़ा झेलनी पड़ रही है उनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं."
मलाला ने कहा, "एक साथ आइए.. और इस्लाम के सच्चे संदेश पर चलिए." इराकी शहर मोसुल को आईएस के नियंत्रण से छुड़ाने के लिए जारी अभियान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "मैं मोसुल के पांच लाख बच्चों को कैसे भूल सकती हूं जिन्हें मानव ढाल बनाया जा सकता है." उन्होंने युवा पीढ़ी और खास कर महिलाओं को सशक्त करने पर जोर दिया. मलाला ने शांति और समृद्धि के लिए शिक्षा को बहुत जरूरी बताया.
ये हैं 2014 के सबसे प्रभावशाली युवा
पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए सक्रिय रहीं मलाला 2012 में उस वक्त अंतरराष्ट्रीय जगत में चर्चा में आई जब तालिबान चरमपंथियों ने उनके सिर में गोली मारी थी. इसके बाद, ब्रिटेन में लंबे समय तक उनका इलाज चला. उनके साहस और कोशिशों को सम्मान देते हुए 2014 में उन्हें भारत के बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ साझा तौर पर शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया.
पुरस्कार लेते वक्त मलाला ने कहा था कि उनकी जिंदगी की कहानी अनोखी नहीं है बल्कि यह कहानी कई लड़कियों की है. उन्होंने अपना पुरस्कार उन गुमनाम बच्चों को समर्पित किया था जो तालीम चाहते हैं. अभी मलाला ब्रिटेन में ही रहती हैं. उनके अपने देश पाकिस्तान में कई लोग उन्हें उम्मीद की रोशनी के तौर पर देखते हैं तो कुछ उन्हें पश्चिमी देशों का एजेंट बताते हैं.
एके/एमजे (एएफपी)
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