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मैदान में उम्मीदवारों की भीड़

१० अप्रैल २०१४

भारत में चुनाव लड़ने के लिए जमानत की रकम बढ़ने के बावजूद मदान में उतरने वाले उम्मीदवारों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है.

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तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

पहले यह रकम पांच सौ रुपए थी जिसे बढ़ा कर 25 हजार कर दिया गया है. चुनाव मैदान में उतरने वाले 85 फीसदी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाती है. लेकिन चुनाव लड़ने के प्रति क्रेज लगातार बढ़ रहा है. इसके अलावा इस बार खासकर पश्चिम बंगाल में कई सितारा उम्मीदवारों के मैदान में होने की वजह से उनके मुकाबले भी मैदान में कई छोटे दलों के और निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतर गए हैं.

वर्ष 1998 के लोकसभा चुनावों में कुल 4,750 उम्मीदवार मैदान में थे. कोई एक दशक बाद वर्ष 2009 के चुनावों में यह तादाद बढ़ कर 7,514 तक पहुंच गई. अस्सी लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में हर चुनाव में एक हजार से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं. उसके अलावा पांच दूसरे राज्यों-महाराष्ट्र, तमिलनाडु, बिहार, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में सबसे ज्यादा उम्मीदवार चुनावों में अपनी किस्मत आजमाते हैं. लेकिन प्रति सीट औसत उम्मीदवारों के मामले में तमिलनाडु बाकी राज्यों से बहुत आगे है. पिछले दो चुनावों में यह हर सीट पर औसतन 39 उम्मीदवार मैदान में उतरते रहे हैं जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 14 है. आम आदमी पार्टी (आप) जे नए दलों के उदय और कई राजनीतिक सहयोगियों के बीच गठजोड़ नहीं हो पाने की वजह से अबकी यह तादाद और बढ़ गई है.

वजह

आखिर उम्मीदवारों की इस लगातार बढ़ती तादाद की क्या वजह है ? राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र दासगुप्ता कहते हैं, ‘इसकी कई वजहें हैं. इनमें छोटे दलों, जाति और धर्म आधारित संगठनों के उदय के अलावा विपक्षी वोटों के विभाजन के लिए डमी उम्मीदवार मैदान में उतारना शामिल है. कई बार वोटरों को भ्रमित करने के लिए अतिरिक्त उम्मीदवार मैदान में उतार दिए जाते हैं.' कई बार कुछ राजनीतिक दल कई सीटों पर विपक्ष के उम्मीदवारों के नाम से मिलते-जुलते नाम वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतार देते हैं ताकि गलतफहमी और भ्रम की वजह से उनको भी वोट मिल सकें. एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स के प्रोफेसर त्रिलोचन शास्त्री कहते हैं, ‘राजनीति एक बेहद लुभावना धंधा है. अगर कोई उम्मीदवार जीत जाए या उसे अच्छे-खासे वोट मिल जाएं तो भविष्य में उसे आसानी से किसी राष्ट्रीय पार्टी का टिकट मिल सकता है.'

Wahlen in Indien
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

अंकुश

ऐसे फर्जी और वोटकटवा उम्मीदवारों की तादाद पर अंकुश लगाने के लिए चुनाव आयोग ने वर्ष 1998 में जमानत की रकम पांच सौ बढ़ा कर दस हजार और फिर पिछले लोकसभा चुनाव में 25 हजार कर दी थी. लेकिन इसके बावजूद उम्मीदवारों की तादाद लगातार बढ़ रही है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन.गोपालस्वामी कहते हैं, ‘महज जमानत की रकम बढ़ा कर इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता. कई राज्यों में राजनीतिक दल जानबूझ कर हर सीट पर उम्मीदवारों की तादाद बढ़ा देते हैं. इसके लिए कानूनों में संशोधन जरूरी है.' जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के राजनीतिक अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर अजय जी. कहते हैं, ‘25 हजार रुपए आजकल कोई बड़ी रकम नहीं है. कई लोग चुनाव के मौसम में मुफ्त का प्रचार हासिल करने के लिए भी आसानी से इतनी रकम खर्च कर देते हैं.'

समस्या

उम्मीदवारों की तादाद ज्यादा होने से चुनाव आयोग को भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उसे सबके लिए नए-नए चुनाव चिन्ह आवंटित करने होते हैं और ज्यादा तादाद में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का इंतजाम करना होता है. आयोग के एक अधिकारी कहते हैं, ‘कुछ चुनाव क्षेत्रों में तो उम्मीदवारों के लिए हमारे पास कोई चुनाव चिन्ह ही नहीं बचता. हाल में आंध्र प्रदेश में एक पार्टी को तो चप्पल चुनाव चिन्ह से ही संतोष करना पड़ा.'

सितारा उम्मीदवार

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों के लिए तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने कई सितारों को तो चुनावी जमीं पर उतार दिया है. तृणमूल ने अभिनेत्री मुनमुन सेन, बांग्ला फिल्मों के सुरस्टार देव, गायिका संध्या राय और फुटबालर बाइचुंग भूटिया समेत कोई एक दर्जन सितारों को टिकट दिया है. भाजपा भी इसमें पीछे नहीं है. उसने गायक बप्पी लाहिड़ी, बाबूल सुप्रिय और जादूगर पी.सी.सरकार को मैदान में उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. इनके मुकाबले मुफ्त प्रचार हासिल करने के लिए कई निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में कूद पड़े हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः अनवर जमाल अशरफ