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मौत के गलियारे से यूरोप तक

१ मई २०१५

तस्करों पर भरोसा करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. रास्ते में जान जाती तो कई महीनों बाद रिश्तेदारों को खबर मिलती. ऐसे हालात से गुजरते हुए सीरिया से शरणार्थी यूरोप पहुंच रहे हैं.

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तस्वीर: Marco Di Lauro/Getty Images

लंबे समय तक माजिद अल-युसूफ (बदला हुआ नाम) को झिझक होती रही. लेकिन गृह युद्ध के बीच आखिरकार एक दिन ऐसा आया जब उन्होंने सीरिया छोड़ने का फैसला किया. सीरिया की राजधानी दमिश्क के रहने वाले माजिद ने यूरोप आने का फैसला किया. वह तुर्की, अल्जीरिया और लीबिया से गुजरते हुए इटली पहुंचे.

डॉयचे वेले से बातचीत में माजिद ने कहा, "दमिश्क में मैं इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के कोर्स के छठे सत्र में था. लेकिन हालात बदतर होते जा रहे थे, इसीलिए मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी. मैंने और मेरे छोटे भाई ने पिता को कार बेचने के लिए राजी किया. हमारे अंकल में हमें कुछ उधार दिया, यात्रा के लिए उन्होंने कुल 8,000 डॉलर दिये."

दोस्तों ने माजिद और उनके भाई की देश छोड़ने की तैयारियों में मदद की. सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने सफलतापूर्वक यूरोप पहुंचने वाले सीरियाई लोगों के अनुभव जाने. सबसे अच्छे रास्ते का सुझाव भी सोशल मीडिया से आया, "इस तरह हम तस्करी करने वाले अल्जीरिया के एक गुट के संपर्क में आए. वहां से हमें आगे लीबिया के एक गुट का कॉन्टेक्ट दिया गया."

तस्करों के सहारे

पहला कदम था, तुर्की से अल्जीरिया की फ्लाइट. माजिद कहते हैं, "यह हिस्सा आसान था. सीरियाई लोगों के लिए अल्जीरिया की सीमा खुली है." शरणार्थियों ने एयरपोर्ट से बाहर निकलकर नाव की यात्रा के लिए सैकड़ों डॉलर दिये. नाव उन्हें लीबिया की सीमा तक ले गई. माजिद के ग्रुप में कुल 12 सीरियाई थे, "यात्रा के उस हिस्से के लिए हर किसी ने 300 डॉलर दिए. वहां से निकलते ही हमें तस्करों के एक दूसरे गुट के हवाले कर दिया गया, जो हमें लीबिया की सीमा से अंदर रेगिस्तान तक ले गए. वहां एक अलग गुट मिला जो हमें तट तक ले गया. कुछ घंटों के आराम के बाद हम आगे बढ़े."

माजिद कहते हैं, "इटली तक पहुंचाने के लिए तस्कर आम तौर पर एक व्यक्ति से 600 डॉलर लेते हैं लेकिन हममें से हर एक ने 1,100 डॉलर दिये, क्योंकि हम चाहते थे कि नाव में हमारे साथ अच्छा व्यवहार हो, हमें खाना-पीना मिले. हम यह भी तय करना चाहते थे कि हम सब एक ही नाव में हों. लेकिन तभी एक दिक्कत हुई. उन्होंने हमारे सूटकेस ले लिये. वे वजन कम करना चाहते थे ताकि नाव में ज्यादा लोगों को पैक किया जा सके."

Bildergalerie Rettung von Flüchtlingen durch deutsche Cargo schiffe im Mittelmeer
भूमध्य सागर में मौत का सफरतस्वीर: OOC Opielok Offshore Carriers

खुलेआम तस्करी

लीबिया में एक चीज ने माजिद का ध्यान खींचा, "सभी तस्करों के बीच एक नेटवर्क है. हर गुट अपने इलाके को नियंत्रित करता है. लेकिन अगर पूरी तस्वीर को देखें तो मुझे लगता है कि यह एक बड़ा गैंग है. लीबिया के सैनिक भागने की कोशिश करते लोगों को देखते हैं लेकिन वे अपनी अंगुली भी नहीं उठाते."

जर्मन पत्रकार वोल्फगांग बाउएर ने जब तस्करी पर रिसर्च की तो उन्हें भी इसी तरह की चीजें दिखाई पड़ीं. अपने एक दोस्त के साथ उन्होंने खुद शरणार्थी बनकर मिस्र से भूमध्य सागर पार कर इटली आने की कोशिश की. लेकिन अंत में योजना बदलनी पड़ी. इस प्लान के बजाए बाउएर लीबिया चले गए. मिसराता और देश के पश्चिमी इलाके में बसे गांव जुवारा में उन्होंने तस्करों को करीब से देखा. बाउएर के मुताबिक तस्कर अपना काम छुपाने की बहुत ही कम कोशिश करते हैं.

लेकिन पूर्वी लीबिया के तोब्रुक शहर में हालात बहुत अलग हैं. लीबिया में दो सरकारें ताकत के लिए संघर्ष कर रही हैं, इनमें से एक तोब्रुक में है, जो तस्करों से लड़ रही है. उस सरकार को लगता है कि अगर पश्चिम से संबंध मधुर हुए तो उसे मान्यता मिल जाएगी. हालांकि तोब्रुक की सरकार सीधे तौर पर राजधानी त्रिपोली की सरकार से नहीं भिड़ती है.

भूमध्य सागर का हाहाकार

माजिद भी अपनी यात्रा के दौरान जुवारा से आगे बढ़े, "हम एक छोटी सी रबर की डोंगी में सवार हुए जो हमें एक बड़ी नाव तक ले गई. और वहां से आगे डरावना अनुभव शुरू हुआ." माजिद के मुताबिक नाव करीब 300 लोगों से खचाखच थी, "तस्करों ने सारे युवाओं से कहा कि वो डेक के नीचे इंजन रूम में चले जाएं. महिलाएं और बच्चे ऊपर रहे. डेक के नीचे बहुत ही गर्मी थी और वहां हवा भी नहीं थी. वहां सिर्फ एक छोटा सा सनरूफ था और उसी से हमें थोड़ी बहुत हवा मिल रही थी. वहां कई लोग बीमार थे, कई बेहोश हो गये. हालात बर्दाश्त करने लायक नहीं थे."

माजिद और उनके दोस्तों ने खुद को ठगा महसूस किया, "हर किसी के 1,100 डॉलर चुकाने के बावजूद उन्होंने हमसे ऐसा व्यवहार किया जैसे हमने 600 डॉलर दिए हों."

Bildergalerie Rettung von Flüchtlingen durch deutsche Cargo schiffe im Mittelmeer
तस्वीर: OOC Opielok Offshore Carriers

इटली में आगमन

यात्रा छह घंटे चली. इस दौरान नाव का सामना इटली के एक तटरक्षक जहाज से हुआ. इतालवी चालक दल ने नाव के यात्रियों को अपने जहाज में लिया और सभी को एक शरणार्थी केंद्र तक पहुंचाया. वहां सभी को खाना-पीना और रहने की जगह दी गई.

बाद में दूसरे यात्रियों ने बताया कि नाव को नाविक नहीं बल्कि कुछ यात्री ही चला रहे थे. एक यात्री को नेवीगेशन की थोड़ी बहुत जानकारी थी. माजिद उस घटना को याद करते हुए कहते हैं, "उन्होंने उसे जीपीएस डिवाइस और एक सैटेलाइट फोन दिया. आपातकालीन स्थिति में उससे इटली के तटरक्षकों से संपर्क करने को कहा गया."

आखिरकार माजिद इटली पहुंच गए. यात्रा तमाम खतरों से भरी हुई थी. माजिद भाग्यशाली रहे कि वो जिंदा इटली तक पहुंच गए. हाल के हादसों ने साबित किया है कि हजारों लोगों के लिए ये यात्रा मौत का सफर साबित होती है.

रिपोर्ट: फलाह इलियास/ओएसजे, आरआर