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यहां इंसान कॉकरोच बन जाते हैं

१७ अक्टूबर २०१३

कॉकरोच से भले ही अधिकतर इंसानों को घिन आती हो, लेकिन वह ऐसे जीव हैं, जो हजारों लाखों साल से धरती पर बने हुए हैं. कैसे, ये जानने के लिए लंदन में लोग खुद ही कॉकरोच बन जाते हैं.

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तस्वीर: DW/Z. Sullivan

इंसान के कॉकरोच में तब्दील होने की बात मशहूर लेखक फ्रांत्स काफ्का की याद दिलाती है. उनकी किताब कायापलट (अंग्रेजी में मेटामॉरफोसिस) में कुछ ऐसा ही हुआ था. सुबह एक व्यक्ति नींद से जगता है और खुद को कॉकरोच में बदला हुआ पाता है. इसके बाद शुरू होती हैं उसकी मुश्किलें. काफ्का के रचे इस किरदार को भले ही कई दिक्कतें हुई हों, लेकिन लंदन में तो लोग अपनी मर्जी से कॉकरोच बन रहे हैं.

दरअसल लंदन के साइंस म्यूजियम में दर्शक कुछ देर के लिए कॉकरोच की नजरों से दुनिया देख और समझ सकते हैं. इस तरीके से वे पर्यावरण में हुए बदलाव को समझते हैं.

35 करोड़ साल से

धरती पर सबसे ज्यादा घृणास्पद जीवों में अगर कुछ शामिल है, तो वह है कॉकरोच, लेकिन इस घिन के बावजूद वही ऐसे प्राणी हैं जो इस धरती कर करीब 35 करोड़ साल से जी रहे हैं और निकट भविष्य में भी नहीं लगता कि वे विलुप्त हो सकते हैं.

डेनमार्क के कलाकार समूह सुपरफ्लेक्स ने तय किया कि इस घृणा को खत्म किया जाए और कॉकरोच को अनुकूलन के एक शानदार उदाहरण के तौर पर देखा जाए. और बस लंदन के विज्ञान संग्रहालय में इंसानों को कॉकरोच की आंखों से दुनिया देखने का एक मौका मिल गया. लेकिन 12 साल से कम के बच्चों के लिए यह टूर नहीं किया जाता.

Kakerlaken Professor in einem Museum in Großbritannien
लंदन साइंस म्यूजियम में खास टूरतस्वीर: DW/Z. Sullivan

इसका आयडिया कुछ साल पहले आया जब संग्रहालय में जलवायु परिवर्तन पर नए प्रोजेक्ट दिखाए जाने लगे. फिर कलाकारों से अपील की गई कि कुछ ऐसा करें कि लोग, प्रदर्शनी में शामिल हो जाएं, न कि सिर्फ थर्ड पार्टी बने रहें. और इसी आयडिया का परिणाम हुआ कॉकरोचों की ये ड्रेस, जिसमें घुसकर इंसान थोड़ी देर के लिए कॉकरोच बन जाते हैं.

प्रोफेसर कॉकरोच

टूर गाइड प्रोफसर जॉन कॉकरोच (गे हेंडरसन) कहते हैं, "चलिए महसूस करें. हम कॉकरोचों को लाखों साल क्रमिक विकास की जरूरत नहीं पड़ी. जबकि इंसानों को क्रमिक विकास में कमी पूरी करने के लिए अपने आस पास की दुनिया बदल देनी पड़ी." कॉकरोच बने हेंडरसन संग्रहालय के थिएटर ग्रुप के सदस्य हैं.

पानी में आधा घंटा तैर सकने से लेकर डाक टिकट पर लगा गोंद चिपका लेने तक कॉकरोच में जिंदा बने रहने की अद्भुत क्षमता है. प्रोफेसर कॉकरोच मजाक करते हैं कि कॉकरोचों को डरने की कोई जरूरत नहीं है. उनके लिए इंसानी व्यवहार बहुत हैरान कर देने वाला है. शारीरिक रूप से इंसान को आसानी से नुकसान पहुंचाया जा सकता है. वह अपने पर्यावरण को नुकसान क्यों पहुंचाएंगे.

प्रोफेसर हर दिन कॉकरोचों को म्यूजियम में घुमाने ले जाते हैं. वे कॉकरोच की नजर से समझाने की कोशिश करते हैं कि भाप के इंजिन और मॉडल टी फोर्ड जैसी खोज करने के पीछे कारण क्या रहा होगा. प्रोफेसर कहते हैं, "यह कॉकरोचों से जलन के कारण इंसान ने किया है, वह कॉकरोच की ही तरह काला कवच चाहता था."

मोबाइल आकर्षण

इस फिगर को बनाने वाले कलाकार ग्रुप के सदस्य रास्मुस नील्सन कहते हैं, "वह सोचना चाहते हैं कि इंसान ने कुछ अविष्कार क्यों किया. फिर वह औद्योगिक अविष्कारों पर नजर डालते हैं और फिर जलवायु परिवर्तन पर आते हैं."

Kakerlaken Professor in einem Museum in Großbritannien
प्रोफेसर जॉन कॉकरोचतस्वीर: DW/Z. Sullivan

प्रोफेसर कॉकरोच को अपने साथ कॉकरोच बने पर्यटकों के साथ दौड़ना अच्छा लगता है. वो अपने साथियों को प्रेरित करते हैं कि वह हॉल के एक कोने से दूसरे कोने तक तेजी से जाएं. पर्यटकों को भी अक्सर इस सब में मजा आता है. और सामान्य इंसानों की तरह घूम रहे लोग हक्के बक्के इन कॉकरोचों को देखते रह जाते हैं.

मानवीय तकनीक और बदलते मौसम को देखने का यह खास नजरिया धीरे धीरे लोगों में पसंद किया जा रहा है. जहां एक ओर छोटे बच्चे इन बड़े सारे कॉकरोचों को देखकर घबरा जाते हैं वहीं दूसरे लोग कैमेरा लेकर इनकी तस्वीर लेने में जुट जाते हैं. कुछ लोग इन कॉकरोचों से साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह भी करते हैं.

शिक्षा नहीं है

रासमुसेन जोर देते हैं कि इस टूर का उद्देश्य लोगों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ना है न कि उन्हें किसी तरह की नैतिक शिक्षा देना. "भूगोलविज्ञानियों से लेकर हॉलीवुड के निर्देशकों तक सभी ने क्लाइमेट चेंज के बारे में बात की है. हमने कई आपदाओं के वीडियो देखे हैं. यहां वो सब नहीं है. हम सिर्फ एक अलग दृष्टिकोण सामने लाना चाहते थे." ऐसा होता ही कितनी बार है कि कोई सार्वजिनक जीवन में कॉकरोच की ड्रेस पहन कर उसकी नजर से दुनिया देखने की कोशिश करे.

कॉकरोचों को देखकर खुश हो रहा एक पर्यटक कॉकरोचों से कहता है, "आप दुनिया जीत लेंगे. हम तो रेडियोएक्टिविटी के कारण खुद को खत्म कर लेंगे लेकिन कॉकरोच बने रहेंगे."

2010 में इसके शुरू होने से अब तक करीब 5000 लोग कॉकरोच बन चुके हैं.

रिपोर्टः सोई सलिवैन, लंदन (एएम)

संपादनः ईशा भाटिया

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