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यादों के नाम पर बस तस्वीरें ही बची हैं

२८ नवम्बर २०१५

उनके पास तस्वीरें ही बचीं हैं जो यकीन दिलाती हैं कि कभी उनके भी घर में बर्थडे पार्टियां हुआ करती थीं. जान बचाकर भाग रहे शरणार्थी गृहस्थी के सामान में से कुछ भी नहीं ले जा पाते जिसे उन्होंने सालों चुन चुन कर जमा किया था.

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तस्वीर: Reuters/Y. Behrakis

उनके पास अतीत के नाम पर बची हैं तो उनके स्मार्टफोन में कुछ तस्वीरें. 10 साल पुरानी बात है जब मुहम्मद काबुल के अपने ऑफिस में सूट बूट में तैयार बैठा था. गहरी सांस भरते हुए उसने कहा, "मैं एक बड़ी संचार कंपनी के लिए काम कर रहा था और 11 अन्य कर्मचारियों का इंचार्ज था." देश में तालिबान के बढ़ रहे प्रभाव के चलते सितंबर में 26 वर्षीय मुहम्मद ने अपने भाई बहनों के साथ घर छोड़ दिया.

दक्षिण जर्मनी के गार्मिश-पार्टेनकिर्षेन रिसेप्शन सेंटर में 14 देशों के करीब 320 शरणार्थी रह रहे हैं. यह 1930 का पुराना अस्पताल है. रिसेप्शन सेंटर के प्रमुख उलरिके कुन्ये के मुताबिक वहां रह रहे ज्यादातर शरणार्थी सीरिया और अफगानिस्तान से हैं. जाहिर है, इन देशों से यूरोप तक का सफर वे ज्यादा सामान के साथ नहीं कर सकते. उनकी पिछली जिंदगी की तस्वीरें उनके फोन में होती हैं, जहां वे शायद कभी भी नहीं लौट पाएंगे.

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सीरिया में जारी गृहयुद्ध से हुई तबाही में इलाकों के नक्शे ही बदल गए हैं.तस्वीर: Reuters/M. Torokman

28 वर्षीय सुआद के पास घर की जो तस्वीर है उसमें पीले रंग की इमारत इर्द गिर्द हरियाली और पहाड़ों से घिरी है. तस्वीर में दिखाई दे रहा उसका भाई सनग्लास लगाए पहाड़ी पर बैठा कैमरे में देख रहा है. लेकिन दिन बदलने के साथ इलाके का हुलिया भी बदल चुका है. इमारत बमबारी में तहस नहस हो चुकी है. जर्मनी आने से पहले सुआद दो बेडरूम के फ्लैट में अपने पति और बेटी के साथ रहती थीं. वह एक प्रशिक्षित नर्स हैं. वह कहते कहते पीठ फेर लेती हैं, "पता नहीं आज वह सब कुछ कैसा दिखता होगा."

नदीम नहीं समझ पा रहे कि सीरिया छोड़कर उन्होंने ठीक किया या नहीं. वह फोन निकालकर तस्वीरें दिखाने लगते हैं. उनके दो बेटे समेल और मुहम्मद. घर के लिविंग रूम में वे सोफा के सामने खड़े हैं. "मैं उन्हें बहुत याद करता हूं. उम्मीद करता हूं कि वे ठीक हों." लगातार उनके दिल में परिवार की सुरक्षा को लेकर एक डर रहता है.

पास ही तकनीकी संस्थान के छात्रों ने एक प्रदर्शनी लगाई है. वे छात्र तस्वीरों से उन शरणार्थियों की कहानी सुना रहे हैं. एक छात्र ने बताया, "कुछ कपड़ों के अलावा बेबी फूड, साबुन, टूथपेस्ट और फोन का चार्जर" बस यही कुछ सामान है जिसे वे घरों को छोड़ते वक्त अपने साथ ले जा पाते हैं.

एसएफ/आईबी (डीपीए)