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या डिजिटल बॉक्स होगा या दूरदर्शन

२६ जून २०१३

सुना तो आपने भी होगा कि बहुत जल्द पूरे भारत से केबल तार दौड़ाने वालों की दुकानें बंद हो जाएंगी और शहर गांव के हर घर में डिजिटल बॉक्स होंगे. लेकिन क्या वाकई संभव है यह? जिनके पास डिजिटल बॉक्स न हुआ उनका क्या?

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तस्वीर: Pia Chandavarkar

भारत जैसे विशाल देश में एक तिहाई आबादी गावों में रहती है. ऐसे में यह योजना भले ही महत्वकांक्षी लगती हो लेकिन काम चालू है. सरकार और डिजिटल कनेक्शन देने वाली कॉरपोरेट कंपनियां कमर कस के काम कर रही हैं. योजना है कि 2014 के अंत तक पूरे भारत में चैनलों के प्रसारण का डिजिटाइजेशन हो जाए यानि सर के ऊपर से गुजरती केबल तारें नहीं और बीच में केबल में कटिया डालने का भी कोई जुगाड़ नहीं. चैनलों का प्रसारण केवल सेट टॉप बॉक्स की मदद से हो सकेगा. भारत में डिजिटाइजेशन में शामिल बड़ी कंपनियों में इंडसइंड मीडिया एंड कम्यूनिकेशंस भी प्रमुख है. कंपनी के महानिदेशक रवि चंदूर मनसुखानी ने डॉयचे वेले हिन्दी से विशेष बातचीत में इस पूरी योजना के बारे में विस्तार से चर्चा की. उसके कुछ अंश.

क्यों किया जा रहा है डिजिटाइजेशन?

GMF Foto Ravi Chandur Mansukhani
तस्वीर: GMF

इससे पहले हमारे पास एनेलॉग सिस्टम था जिसमें कई चैनलों को हमेशा शिकायत रहती थी कि वे लोगों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं क्योंकि केबल ऑपरेटर अपनी मर्जी से चैनल दिखाते हैं. अब तक यह उपभोक्ता के हाथ में नहीं था लेकिन अब डिजिटाइजेशन की मदद से उपभोक्ता अपनी मर्जी से जो चैनल चाहें वह चुन सकते है.

इसके अलावा सरकार को भी कर का नुकसान हो रहा था. एक कारण यह भी है कि आने वाला समय एचडी और डिजिटल टीवी चैनलों का है, तकनीक तेजी से बदल रही है. उसके आगे का दौर शायद सुपर एचडी का हो, इन परिवर्तनों के लिए हमें तैयार रहना होगा.

(गावों गावों में फिल्में)

लक्ष्य है भारत को 2014 तक पूरी तरह डिजिटाइज कर देने का, क्या यह काम समय पर पूरा हो पाएगा?

सब कुछ योजना के अनुसार तो नहीं चल रहा है लेकिन सरकार की कोशिश है कि काम समय पर खत्म हो. शायद देश को पूरी तरह डिजिटाइज करने में 2017 तक का समय लग जाए. पहला फेज समय पर खत्म नहीं हुआ लेकिन दूसरा समय पर शुरू कर दिया गया. यानि फेज एक दूसरे पर ओवरलैप किए जा रहे हैं ताकि काम समय पर निबटाया जा सके. चार की जगह छह साल भी लग सकते हैं लेकिन कम से कम काम अपनी रफ्तार से जारी है. मुंबई और दिल्ली में काम पूरा हो चुका है, कोलकाता में पूरा होने को है और चेन्नई में कुछ काम कोर्ट केस की वजह से फंसा है जो कि जल्द ही निबट जाएगा.

(टीवी मार्केट से गायब भारत)

क्या यह सरकार के लिए बहुत महत्वकांक्षी लक्ष्य नहीं है, गरीब कैसे डिजिटल बॉक्स घर पर लगाएंगे?

सरकार के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं है क्योंकि इसमें सरकार तो कुछ कर ही नहीं रही है. सारी जिम्मेदारी कॉरपोरेट सेक्टर पर आ गई है जो इस मामले में लगा हुआ है. वे ही हैं जो न केवल लेटवर्क को फैला रहे हैं बल्कि डिजिटल बॉक्स बनवा रहे हैं और इतना ही नहीं, लोगों को सस्ती दरों पर ये बॉक्स मुहैया करा रहे हैं. इस समय दरों में कमी सिर्फ बॉक्स के लिए नहीं बल्कि कनेक्शन के लिए भी है. अभी तो यह पूरी प्रक्रिया काफी तकलीफदेह लग रही है लेकिन आने वाले समय के लिए यह सिर्फ एक बेहतर बिजनेस प्लान ही नहीं, सुचारू रूप से चलने वाला तंत्र होगा.

(हाई डेफिनिशन दूरदर्शन)

कार्यक्रम की खास बात क्या है और इससे सरकार को क्या फायदा होगा?

आप यह देखिए कि इससे सरकार को कितना पैसा मिलेगा. पहले 10 में से सरकार को सिर्फ एक ही कनेक्शन का पैसा मिल रहा था क्योंकि पारदर्शिता नहीं थी. अब सरकार को हर कंपनी से पारदर्शी रूप से पैसा मिलेगा. मनोरंजन कर और सर्विस टैक्स के अलावा वोटर भी खुश होंगे. उन्हें बढ़िया कार्यक्रम और चैनल चुनने का विकल्प मिलेगा.

उपभोक्ता इस बदलाव के लिए कितने तैयार हैं?

देखिए गावों और कस्बाई भारत के लिए एकदम से इसे स्वीकारना संभव नहीं है. जाहिर है, बॉक्स खरीदना और उसमें हर महीने पैसे खर्च करना आसान नहीं है. ऐसे में जो लोग इसे नहीं लगवा सकते, ऐसा नहीं है कि वे बिलकुल अंधेरे युग में पहुंच जाएंगे. उनके पास राष्ट्रीय प्रसारण चैनल दूरदर्शन होगा. और आगे परिस्थिति के अनुसार जब वे इसे लगवा पाएंगे तब लगवा लेंगे. यह दूरदर्शन के लिए भी बहुत अच्छा होगा, अपने दर्शकों पर पकड़ खो रहे दूरदर्शन को भी उन्हें फिर से जुटाने का मौका मिलेगा.

यह परिवर्तन बिलकुल वैसा ही है जैसा कि मोबाइल के साथ था. आज भारत के हर व्यक्ति के पास मोबाइल है और यह आज के जमाने में अनिवार्य भी है. उसी तरह हमें डिजिटाइजेशन पर जाना ही पड़ेगा. तेज रफ्तार से आगे बढ़ रही तकनीक की दुनिया में इस रास्ते पर न जाने का कोई विकल्प नहीं है.

गरीब ग्रामीणों के अलावा बाकी तबकों को इस परिवर्तन से कोई एतराज नहीं क्योंकि उनके सामने तो विकल्प बढ़ने वाले हैं और वे इससे खुश हैं.

इंटरव्यू: समरा फातिमा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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