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युद्ध की बलि चढ़ते जानवर

२१ जून २०१४

दक्षिणी सूडान में छह महीने से जारी संघर्ष के बीच सेना और विद्रोही पेट भरने के लिए बड़े स्तर पर शिकार कर रहे हैं. संघर्ष को रोकने के लिए देश में अंतरिम सरकार के गठन पर सहमति बन चुकी है लेकिन तब तक कहीं और देर न हो जाए.

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तस्वीर: KAREL PRINSLOO/AP/dapd

सूडान में अवैध रूप से शिकार पहले से ही आम बात है. लेकिन वन्य संरक्षकों का कहना है कि जबसे सरकार और विद्रोहियों के बीच संघर्ष भड़का है, सरकारी सैनिकों, विद्रोहियों और यहां तक आम नागरिकों द्वारा भी शिकार के मामले खूब बढ़े हैं.

दक्षिणी सूडान के वन्य जीव संरक्षण और पर्यावरण मंत्रालय के लेफ्टिनेंट जनरल अल्फ्रेड अकूच ओमोली ने बताया, "जब से संघर्ष भड़का है अवैध शिकार बहुत बुरी तरह बढ़ा है. एक तरफ विद्रोही तो दूसरी तरफ सरकारी सेना भी शिकार कर रही है क्योंकि वे सभी ग्रामीण इलाकों में लड़ाई कर रहे हैं, जहां खाने के लिए जानवरों का मांस ही है."

मामला हाथ से बाहर

दिसंबर 2013 में राजधानी जूबा में शुरू हुई हिंसा में अब तक हजारों जानें जा चुकी हैं और लाखों लोग बेघर हो चुके हैं. हिंसा का कारण राष्ट्रपति सल्वा कीर और पूर्व उप राष्ट्रपति रीक मशार के बीच सत्ता संघर्ष रहा. राष्ट्रपति कीर ने पिछले साल जुलाई में मशार को उनके पद से हटा दिया था. पिछले दिनों राष्ट्रपति सल्वा कीर और पूर्व उप राष्ट्रपति रीक मशार ने देश में जल्द ही अंतरिम सरकार बनाने पर सहमति बना ली.

अधिकारियों का कहना है कि संघर्ष के चलते हाथियों का भी बड़ी संख्या में शिकार हो रहा है. सूडान में वन्य जीव अधिकारी फिलिप माजाक ने स्थानीय रेडियो को बताया, "हमारी सेना भी खाने के लिए जंगल के जानवरों को मार रही है. अगर आप राजधानी जूबा से थोड़ी ही दूर मंगला और बोर के बीच पहुंचेंगे तो रास्ते में सड़क के किनारे कई जगह जंगली जानवरों का मांस बिकता हुआ पाएंगे."

Symbolbild - Soldaten Südsudan
तस्वीर: Getty Images

संघर्ष के चलते स्थानीय अधिकारियों के लिए भी शिकार को रोक पाना बहुत मुश्किल हो रहा है. इससे वे सरकारी सैनिकों के शांति प्रयासों में विघ्न पैदा कर सकते हैं. ओमोली ने बताया, "वन्य जीव अधिकारी अपने कार्यक्षेत्रों से भाग खड़े हुए हैं, यानि कि शिकार की रोकथाम के लिए अब वे किसी तरह का पहरा नहीं दे रहे. ऐसे में अपराधियों के गुट धड़ल्ले से झाड़ियों में जानवरों का शिकार कर रहे हैं." उन्होंने कहा स्थिति सिर्फ शांति की बहाली से ही बेहतर हो सकती है.

वन्य संरक्षण एवं पर्यटन मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक इससे पहले 20 सालों तक उत्तरी और दक्षिणी सूडान के बीच चले गृह युद्ध में यहां के हाथियों की संख्या एक लाख से घट कर 2005 में मात्र पांच हजार रह गई.

कानून की कमी

पिछले साल न्यूयॉर्क की वन्यजीव संरक्षण संस्था डब्ल्यूसीएस ने 34 हाथियों के गले में जीपीएस सैटेलाइट कॉलर पहनाए थे. यह संस्था दक्षिणी सूडान में हाथियों के संरक्षण पर काम कर रही है. लेकिन जनवरी से अप्रैल के बीच अधिकारियों ने पाया कि इनमें से कई कॉलर सैटेलाइट्स की पकड़ में नहीं आ रहे. डब्ल्यूसीएस की दक्षिणी सूडान में उपनिदेशक मिशेल लोपीडिया को शक है कि ये हाथी मारे जा चुके हैं. उनका कहना है कि उनके पास कुछ ऐसे सबूत हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं. एक कॉलर विद्रोहियों के ठिकाने के पास होने के संकेत मिले.

दक्षिणी सूडान में अवैध शिकार और जानवरों की तस्करी के मामलों के लिए कोई खास कानून मौजूद नहीं है. कई वन्य जीव अधिकारी अक्सर शिकारियों को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर देते हैं. ओमोली ने बताया कि कई बार अदालत में सवाल होता है कि आप शिकार करने वाले व्यक्ति पर किस धारा के तहत मुकदमा चला रहे हैं, और वे छूट जाते हैं.

जूबा के एक स्थानीय रेस्तरां में खाना खाने आए 55 वर्षीय जकरियाई लोमूदे कहते हैं, "मुझे जंगली मांस बहुत पसंद है. मैं इसे बचपन से खा रहा हूं और जब तक जिंदा हूं खाऊंगा. चाहे वन्य जीवों को मारना कानूनी हो या गैर कानूनी."

एसएफ/एमजे (आईपीएस)