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यूपीएससी परीक्षा और भाषा विवाद

७ अगस्त २०१४

संघ लोकसेवा आयोग भारत के प्रशासकों को चुनने वाली संस्था है और पिछले एक माह से भीषण विवाद में फंसी हुई है. परीक्षा प्रक्रिया में हुए बदलाव के खिलाफ कुछ उम्मीदवार प्रदर्शन कर रहे हैं जो भाषा विवाद का रूप लेता जा रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/ZB

संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में हिन्दी माध्यम चुन कर बैठने वाले छात्र दिल्ली की सड़कों पर लगातार धरने प्रदर्शन कर रहे हैं और कई बार पुलिस की लाठियों की मार झेल चुके हैं. लेकिन उनका आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा. उनकी सबसे बड़ी शिकायत सिविल सर्विसेज एप्टिट्यूड टेस्ट (सीसैट) से है. लेकिन इस आंदोलन के कारण एक बार फिर अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं के बीच का तनाव चर्चा के केंद्र में है और उत्तर भारत में अंग्रेजी बनाम हिन्दी की बहस फिर से शुरू हो गई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को कुछ समझ में नहीं आ रहा कि वह इस आंदोलन के साथ किस तरह निपटे. संसद की कार्यवाही कई कई दिन इस मुद्दे पर स्थगित हो चुकी है और लगभग समूचा विपक्ष इस मामले पर संयुक्त संसदीय समिति की मांग कर रहा है. लेकिन सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर विचार विमर्श करने की बात कही है जबकि उसे सभी दलों के विचार पता हैं क्योंकि उनके सांसद संसद के भीतर उन्हें प्रकट कर चुके हैं.

दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने आंदोलनकारियों को संतुष्ट करने के लिए जो मांग मानी है उसे आंदोलनकारियों ने कभी उठाया ही नहीं था. परीक्षाएं स्थगित करने की जिस मांग पर वे अड़े हुए हैं, उसे सरकार ने ठुकरा दिया है और घोषणा की है वे निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 24 अगस्त से शुरू होंगी. लेकिन परीक्षाफल में अंग्रेजी भाषा के 20 अंकों को नहीं जोड़ा जाएगा और 2011 के परीक्षार्थियों को अगले वर्ष एक और मौका दिया जाएगा. तथ्य यह है कि आंदोलनकारियों ने अंग्रेजी के अंक न जोड़े जाने की मांग कभी की ही नहीं थी. यानि गतिरोध बना हुआ है और सरकार ऊटपटांग घोषणाएं करके मामले को उलझाने और आंदोलनकारियों का मनोबल तोड़ने की रणनीति अपना रही है.

दरअसल मूल समस्या भाषा की उतनी नहीं, जितनी इस बात की है कि 2011 में सीसैट यानि नई परीक्षा प्रणाली लागू होने के पहले तक यूपीएससी की परीक्षा में सफल होने वालों में हिन्दी माध्यम के परीक्षार्थियों की संख्या अच्छी खासी होती थी. यही नहीं, इनमें उनकी तादाद भी ठीक ठाक थी जो विज्ञान के नहीं बल्कि मानविकी और समाज विज्ञान के विषयों के छात्र थे. लेकिन सीसैट प्रणाली लागू होने के बाद से परीक्षा में सफल होने वाले इन छात्रों के संख्या अचानक काफी कम हो गई. इसके दो कारण हैं. एक तो यह कि अधिकतर प्रश्न गणित, प्रबंधन और इंजीनियरिंग से संबंधित होते हैं और दूसरे हिन्दी माध्यम के छात्रों को जो प्रश्नपत्र मिलते हैं, उनमें प्रश्न ऐसी हिन्दी में होते हैं जिसे समझना किसी के लिए भी असंभव है.

जब परीक्षार्थी प्रश्न ही नहीं समझ पाएगा तो वह उसका सही जवाब कैसे लिखेगा. आंदोलनकारियों का आरोप है कि प्रश्नपत्रों में ‘स्टील प्लांट' के लिए ‘इस्पात का पौधा', ‘लैंड रिफॉर्म' के लिए ‘अर्थव्यवस्था के सुधार', ‘स्टार परफॉर्मर' के लिए ‘नायक कर्ता', ‘न्यूक्लियर फैमिली' के लिए ‘नाभिकीय परिवार' और ‘ज्वाइंट वेंचर रूट' के लिए ‘संयुक्त संधि मार्ग' जैसे शब्दों का प्रयोग होता है.

इसका कारण बेहद चौंकाने वाला है. यूपीएससी जैसा साधन संपन्न संस्थान मूल प्रश्नपत्र अंग्रेजी में बनवाता है. आरोप है कि इसका अनुवाद किसी अनुभवी अनुवादक से न करा कर गूगल ट्रांस्लेटर के माध्यम से कराता है. नतीजा सबके सामने है. इस वर्ष मार्च में गठित तीन सदस्यीय वर्मा समिति ने भी इस बात पर चिंता जताई थी कि हिन्दी अनुवाद का स्तर बेहद खराब है. लेकिन यूपीएससी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.

इस कारण भी भाषा का प्रश्न विवाद का केंद्रीय प्रश्न बनता जा रहा है क्योंकि हिन्दी सहित दूसरे भारतीय भाषाओं के छात्र अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. उनकी यह शिकायत भी जायज है कि एप्टिट्यूड टेस्ट में मानविकी और समाज विज्ञान के छात्रों के साथ भेदभाव बरता जा रहा है और विज्ञान एवं प्रबंधन के छात्रों के लिए सुविधाजनक प्रश्नपत्र तैयार किए जा रहे हैं. लेकिन इसे अंग्रेजी हिन्दी विवाद में बदलने की कोशिश के कारण आंदोलन और उसकी मांगों का रंग बदलता जा रहा है और उसके प्रति लोगों का रुख भी बदल रहा है.

अंग्रेजी के महत्व से इनकार करना हकीकत से आंखें चुराना है. किसी भी भावी प्रशासक के लिए उसका थोड़ा बहुत ज्ञान अनिवार्य है. लेकिन भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा में बैठने वाले छात्रों से अंग्रेजी के गहरे ज्ञान की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि यदि उन्हें यह ज्ञान होता तो वे अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा में बैठते. हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं के छात्रों को अंग्रेजी में कमजोर होने की सजा नहीं दी जा सकती और यूपीएससी को देर सबेर इसके इस शिकायत को दूर करने के लिए कदम उठाने होंगे. यदि यूपीएससी स्वयं ये कदम उठाए तो बेहतर हो. ऐसी संस्थाओं के कामकाज में सरकारी दखलंदाजी को निमंत्रण देना किसी भी तरह से उचित नहीं होगा.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

संपादन: अनवर जे अशरफ